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नई दिल्ली: 18 वर्ष में लिखी गई 250 साल पुरानी, 6 फिट लंबी कुरान को दी जा रही पुरानी शक्ल

नई दिल्ली, 13 अगस्त (आईएएनएस)। दिल्ली के इंटरनेशनल नूर माइक्रो फिल्म सेंटर ईरान कल्चर हाउस में एक ऐसी तारीखी कुरान शरीफ को उसकी पुरानी शक्ल में लाया जा रहा है, जो ढाई सौ साल पुराना है। इसे ढाई सौ साल पहले 18 साल की एक कड़ी मेहनत कर काजल का इस्तेमाल कर मोहम्मद गौस नाम के ईरानी कातिब ने लिखा था। कुरान शरीफ की लंबाई और चौड़ाई करीब 6 फीट है। कुरान को मोहम्मद गौस ने गुजरात के गायकवाड़ परिवार के महाराजा को भेंट की थी। दरअसल 2005 में बारिश की वजह से इस कुरान को नुकसान पहुंचा और फिर बड़ोदरा जामा मस्जिद ने ईरान कल्चर हॉउस से इसे ठीक कराने के लिए बात की, तबसे ईरान कल्चर हाउस में इसे ठीक किया जा रहा है। दिल्ली के नूर माइक्रो फिल्म सेंटर में इसे ठीक करने वाले सयैद अबु हैदर जैदी ने आईएएनएस को बताया कि, जिस वक्त ये कुरान शरीफ आया इसकी हालत बेहद खराब थी, जिसको हम कड़ी मेहनत से ठीक कर रहे हैं। कुरान शरीफ को ठीक करने का काम नामुमकिन था। बारिश में भीग जाने के कारण कुरान के पन्नो की हालत बेहद खराब हो चुकी थी, कई जगह से पन्ने फटे हुए थे, क्योंकि यह काजल से लिखी गई तो भीगने के कारण यह काजल फैल गया। उन्होंने आगे बताया कि, कुरान के पन्ने लकड़ी के बुरादे की तरह हो गए थे, ढाई सौ साल पहले जिस अंदाज से यह लिखा गया था उसी अंदाज से हम लिखने की कोशिश कर रहे हैं, साथ ही जिन पन्नो का इस्तेमाल किया उन्ही पन्नो को इस्तेमाल कर हम इसे पुरानी शक्ल में ला रहे हैं। फिलहाल कुरान के कुछ हिस्से बड़ोदरा ठीक कर भिजवाया जा चुका है, लेकिन अभी भी कुछ हिस्से बाकी हैं, जिन्हें ठीक करना रह गया है। दिलचस्प बात यह है कि इस कुरान की देखरेख भारतीय क्रिकेटर इरफान पठान और यूसुफ पठान के पिता कर चुके हैं। जानकारों के मुताबिक, यह कुरान दुनिया का सबसे बड़ा और अपने आप में सबसे अलग इकलौता कुरान शरीफ है जो वडोदरा की जामा मस्जिद में था। जिस मस्जिद में इसे रखा गया वहां से साल में दो बार इस कुरान शरीफ को पढ़ने के लिए बाहर निकाला जाता था। मोहम्मद गौस नामी ईरानी कातिब ने इसे मुस्लिम साल हिजरी 1200 में 18 वर्ष में कुरान को अपने हाथों से लिखा था, यानि कि आज से 250 साल पहले। अरबी में लिखे गए इस कुरान के बॉर्डर पर फारसी में तजुर्मा भी किया गया है। इसमें जिस कागज का उपयोग किया गया है वो भी मोहम्मद गौस ने खुद अपने हाथों से बनाया था। इसमें जिस शाही इंक का उपयोग हुआ है वो आंखों में लगाने वाला काजल है। इसके बॉर्डर को सजाने के लिए सोने के वरख का भी उपयोग किया गया है। --आईएएनएस एमएसके/एएनएम

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