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कोलकाता में फैल रहा फर्जी कंपनियों का जाल

ओम प्रकाश कोलकाता, 24 फरवरी (हि.स.)। औपनिवेशिक काल में देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता का कनेक्शन आजकल काला धन का कारोबार करने वाले हर एक ब्लैकमनी मिलेनियर से जुड़ने लगा है। महानगर में फर्जी कंपनियों का जाल तेजी से फैलता जा रहा है। एक दिन पहले ही आयकर विभाग ने मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक निलय डागा के ठिकानों पर छापेमारी कर आठ करोड़ रुपये से अधिक की नगदी और 44 लाख से अधिक मूल्य की कई देशों की मुद्रा बरामद की गई है। इसके साथ ही कांग्रेस विधायक के पास से जिन कंपनियों के शेयर बरामद हुए हैं उनका गैरकानूनी ठिकाना कहीं और नहीं बल्कि कोलकाता की ऐतिहासिक "मर्केंटाइल बिल्डिंग" में है। यह बिल्डिंग अंग्रेजी हुकुमत के समय से ही सुर्खियों में रही है। अंग्रेजों के जाने के बाद यह काला धन रखने वालों का फर्जी ठिकाना बनता चला गया। लाल बाजार स्थित कोलकाता पुलिस मुख्यालय के ठीक पास स्थित मर्केंटाइल बिल्डिंग में ही निलय डागा की उन कंपनियों के ठिकाने दर्ज किए गए हैं, जिनके 259 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे गए थे। दरअसल, मध्यप्रदेश के बेतूल में सोया उत्पाद निर्माण समूह ने अपना एक ठिकाना कोलकाता की इस मर्केंटाइल बिल्डिंग में दिखाया है। इसी कंपनी के शेयर को मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक ने खरीदा था। हालांकि आयकर विभाग ने जब इसकी जांच शुरू की तो पता चला कि कंपनी का यह ठिकाना फर्जी है और उक्त बिल्डिंग में ऐसी कोई कंपनी नहीं चलती है। यानी यह कंपनी केवल कागज पर ही अस्तित्व में थी और कोलकाता की इस मर्केंटाइल बिल्डिंग के पते पर पंजीकृत की गई थी। 24 हजार से अधिक फर्जी कंपनियों का सुरक्षित पनाहगाह है बंगाल मनी लॉन्ड्रिंग के साथ-साथ हवाला कारोबार और अन्य फर्जी कारोबार के लिए कोलकाता मुख्य ठिकाना बन कर उभरा है। केंद्रीय वित्त व उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता और अन्य क्षेत्रों में पिछले तीन सालों के दौरान 24 हजार से अधिक फर्जी कंपनियों का पता चला है। सारदा, रोजवैली जैसी चिटफंड कंपनियों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के विभिन्न शहरों के पते पर कागज कलम पर अस्तित्व रखने वाली ऐसी हजारों शेल कंपनियों की भरमार है। अर्थशास्त्री और वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि कोलकाता और अन्य शहरों में चिटफंड से संबंधित काम करने वाले पेशेवर जानकारों की संख्या काफी है जो सस्ती कीमत पर उपलब्ध होते हैं और शेल कंपनियां गढ़ने में माहिर हैं। नोटबंदी के समय भी शेल कंपनियों की जमाबंदी के लिए सुर्खियों में था कोलकाता नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी की घोषणा के समय भी फर्जी कंपनियों के नाम से करोड़ों रुपये की जमा होने की जानकारी मिली थी। काला कारोबार करने वालों की मंशा को देखते हुए केंद्र सरकार ने तत्काल टास्क फोर्स का गठन किया था और करीब दो लाख से अधिक ऐसी फर्जी कंपनियों को चिन्हित कर बंद किया गया था। इनमें से अधिकतर का पंजीकृत ठिकाना कोलकाता के ही पते पर था। औद्योगिक विकास थमने से बढ़ा फर्जी कंपनियों का जाल कोलकाता में फर्जी कंपनियों के लगातार फैलते जाल के बारे में में चार्टर्ड अकाउंटेंट जेएन गुप्ता कहते हैं कि आजादी के बाद पश्चिम बंगाल का औद्योगिक विकास लगभग थम सा गया है। जो लोग भी कंपनी रजिस्ट्रेशन और अन्य कार्यों से जुड़े हुए थे अथवा पेशेवर हैं, उन्हें बेहतर रोजगार नहीं मिलने की वजह से फर्जी कंपनियां गढ़ने की ओर कदम बढ़ाना पड़ा। उन्होंने बताया कि सस्ती कीमत पर बंगाल के लोग ऐसे कामों के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, इसलिए फर्जी कंपनियों का सुरक्षित पनाहगार कोलकाता बनता जा रहा है। इसके अलावा कंपनी रजिस्ट्रार पंजीकरण के लिए कंपनियों के पते की जांच भी नहीं करता। उनके पास इतनी मैन पावर अथवा प्रावधान भी नहीं है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की नीति के तहत 3 दिनों में पंजीकरण करने की शुरुआत की गई है। पंजीकरण के लिए कंपनी के पते के प्रमाण के स्वरूप केवल कोर्ट डीड जमा किया जाता है जिसकी परख करने का प्रावधान नहीं होने के कारण फर्जी कंपनी बनाने वाले लाभ उठाते हैं और बड़ी संख्या में ऐसे कारोबार फैल रहे हैं। हिन्दुस्थान समाचार

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