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नागरिक सुरक्षा तंत्र में बदलाव की जरूरत

विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस पर विशेष डॉ. रमेश ठाकुर कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति की सुरक्षा, हुकूमत की पहली प्राथमिकता होती है। आज विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस है जिसका मकसद व उद्देश्य नागरिकों को जागरूक करना और आम नागरिक सुरक्षा के महत्व के प्रति सचेत करना है। नागरिक सुरक्षा को लेकर हिंदुस्तान में कई स्वैच्छिक संगठन ईमानदारी से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। सिविल डिफेंस और होमगार्ड ऐसी यूनिटें हैं जो आम नागरिकों की सुरक्षा से सीधा वास्ता रखती हैं। लेकिन, इनकी कार्यशैलियों में बीते कुछ वर्षों में खासा बदलाव आया है, जिनके कारण कुछ ऐसे भी हैं जिसपर सार्वजनिक रूप से चर्चा भी नहीं की जा सकती। मौटे तौर पर कह सकते हैं कि सिविल डिफेंस को अब पहुंच वाले लोगों की निजी सेवा में ज्यादा व्यस्त कर दिया है जिनमें रसूखदार, बड़े अफसर व सफ़ेदपोश आदि वर्ग मुख्य रूप से शामिल हैं। उनकी रखवाली के अलावा सरकारी कार्यालयों की रक्षा के लिए भी सिविल डिफेंस से जुड़े लोगों की सेवाएं ली जाती हैं। काबिलेगौर बात ये है कि ऐसा करने से आम आदमी की सुरक्षा कहीं गायब हो जाती है। जबकि पहला अधिकार उसी का है। सिविल डिफेंस जैसे संगठनों की स्थापना आमलोगों की सुरक्षा के लिए हुई थी। सिविल डिफेंस से जुड़े सुरक्षाकर्मियों का वास्तविक उद्देश्य संकट के समय नागरिक आबादी के रक्षक के रूप में कार्य करना होता है। क्योंकि नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड देश की रक्षा के लिए जुड़वा स्वैच्छिक संगठन हैं। ये संगठन आम आदमी की सुरक्षा की अवधारणा पर परिलक्षित है और उन्हीं पर आधारित भी हैं। सिविल डिफेंस कर्मियों का अदम्य साहस सदैव प्रभावित करता है। चाहे कुदरती आपदाएं हों या मानवीय हिमाकतें, हर जगह जान की बाजी लगा देते हैं। संकट के डरावने माहौल में जब सरकार का सुरक्षा तंत्र भी हांपने लगता है, तब ये लोग अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटते। जान की परवाह किए बिना कूद पड़ते हैं। सिविल सिस्टम का कोरोना काल जैसे संकट में भी समूचे हिंदुस्तान ने साहस देखा। लाॅकडाउन में जब हम घरों में कैद थे, जब भी ये लोग हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाले थे। सिविल डिफेंस की स्थापना सन् 1962 में हुई थी, तक से लेकर आज तक लंबा सफर तय किया है। ये संगठन केंद्र सरकार के गृह विभाग के अधीन कार्यरत है। पुलिस, सेना आदि सुरक्षा एजेंसियों के मुकाबले इन्हें कमतर नहीं आंक सकते। बेशक, उनके जैसी सरकारी सुविधाएँ इन्हें नसीब न होती हों। बावजूद इनके कार्य करने की दीवानगी में कमी नहीं दिखती। सिविल डिफेंस का संपूर्ण इतिहास देखें तो प्रारंभ में, केवल चार खंड हुआ करते थे। जैसे, फायर सेक्शन, सिविल डिफेंस, होम गार्ड और कम्युनिकेशन सेक्शन। इनके दो खंडों को बाद में अलग तरह से परिभाषित किया गया। अव्वल, होम गार्ड को सितंबर 2004 को महानिदेशक, राष्ट्रीय आपातकालीन प्रतिक्रिया बल और नागरिक सुरक्षा के रूप में फिर से नामित किया गया था। वहीं, सिविल डिफेंस को भी दिसंबर 2006 में महानिदेशक, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल और नागरिक सुरक्षा के रूप में समृद्ध किया गया। सिविल डिफेंस और होमगार्ड जैसे नागरिक सुरक्षा खंडों के अलावा नागरिक सुरक्षा का एक और मुख्य किरदार है अग्निशमन सेवा। अग्निशमन सेवा विंग को भी कभी हल्के में नहीं लिया जा सकता। बहरहाल, नागरिक सुरक्षा को नए तरीके से परिभाषित करने की दरकार है। हाल ही में देश के कई हिस्सों में मॉब लींचिंग की दर्दनाक कई घटनाएँ हुई हैं। वे घटनाएँ रोकी भी जा सकती थीं, अगर सुरक्षा सिस्टम ठीक से काम करता। सिविल डिफेंस को विस्तार देने की आवश्यकता है। पुलिस-सेना की भांति अधिकृत रूप से सिविल डिफेंस की तैनाती हो और उन्हें थोड़े-बहुत अधिकार भी दिए जाएं। सिविल डिफेंस को सीमित अधिकार दिए गए हैं। स्थिति अब और खराब हो गई है। इस संगठन से जुड़े लोगों को दिहाड़ी-मजदूर समझा जाता है। जरूरत पड़ने पर ही इन्हें याद किया जाता है। यह एक अजीब और पुराना तरीका है जिसकी प्रासंगिकता समाज में स्थिरता आने और कानून-व्यवस्था के ऊपर भरोसे के लिहाज से समाप्त हो जाती है। इसलिए जरूरी हो जाता है कि नागरिक सुरक्षा के लिहाज से सिविल डिफेंस की विश्वसनीयता बनी रहनी चाहिए। विश्व नागरिक सुरक्षा दिवस का मतलब होता है। इस विषय पर समूचे संसार को समान रूप से मनन-मंथन करना चाहिए। क्योंकि सामूहिक सुरक्षा हेतु एकत्रित राष्ट्रों के बीच सुरक्षा संबंधित मुख्य बातों को लेकर समान विचार होना चाहिए। साथ ही सामूहिक सुरक्षा से संबद्ध राष्ट्रों को इस कार्यवाही हेतु अपने परस्पर विरोधी विचारों को भी त्यागना चाहिए। नागरिक सुरक्षा से जुड़े राष्ट्र मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यथास्थिति बनाये रखने के तो पक्षधर दिखते हैं। पर, जब आम नागरिकों की सुरक्षा की बात आती है तो वहां लंबी खाई खिच जाती है। जब तक आम नागरिकों की सुरक्षा पर मंथन नहीं होगा, नागरिक सुरक्षा दिवस को मनाने के कोई मायने नहीं हो सकते। आम लोगों की सुरक्षा किसी भी हुक़ूमत के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। कभी-कभार ऐसा भी प्रतीत होता है सिस्टम में बैठे लोगों को अपनी सुरक्षा की परवाह ज्यादा रहती है। इसकी तस्वीर देखने को भी मिलती है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या राज्यपालों की बात न भी करें, मोहल्ले के पार्षद को ही ले लें। उनकी सुरक्षा में भी दर्जनों सुरक्षाकर्मी लगे होते हैं। जबकि एक जमाना था, जब स्थानीय जनप्रतिनिधि खुलेआम इलाकों में घूमा करते थे। शायद सुरक्षा रखना एक स्टेटस सिंबल बन गया है। कुछ भी हो पर आम नागरिकों की सुरक्षा की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। नागरिक सुरक्षा के लिए बनाया हुआ तंत्र हिंदुस्तान में बहुत पुराना हो चुका है, थोड़ा बदलाव और उसे आधुनिक किये जाने जाने की आवश्यकता है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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