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नंदीग्राम विस क्षेत्रः ममता व पुराने सहयोगी शुभेंदु में टकराव, तृणमूल की अस्मिता से जुड़ी है सीट

कोलकाता, 03 मार्च (हि.स.)। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस सत्ता में दोबारा वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है तो भाजपा राज्य में सरकार बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। 294 विधानसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल में सबसे खास है पूर्व मेदिनीपुर की नंदीग्राम सीट। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी का इस सीट से खास नाता है। वाममोर्चा के 33 सालों के शासनकाल को उखाड़ फेंकने में यह क्षेत्र ममता के लिए आधार बना था। 2007 में जब तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने यहां उद्योग के लिए किसानों की जमीन जबरदस्ती अधिग्रहित की थी तब नंदीग्राम सहित आसपास के क्षेत्र के लाखों लोगों ने आंदोलन किया था। विपक्ष की नेत्री के तौर पर इस आंदोलन का मुख्य चेहरा ममता बनर्जी तो थीं लेकिन इसके असली सूत्रधार उन्हीं की कैबिनेट के पूर्व मंत्री और वर्तमान भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी थे। अधिकारी परिवार का पूरे क्षेत्र में दबदबा है और 1949 के बाद से ही इस क्षेत्र में केवल उन्हीं के परिवार के लोग जीतते रहे हैं। नंदीग्राम ने दिलाई थी ममता को सत्ता नंदीग्राम आंदोलन के दौरान तत्कालीन सरकार के इशारे पर हिंसा हुई थी और गांव के 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस हत्याकांड की आंच पूरे राज्य में फैल गई और ममता के पक्ष में जबरदस्त माहौल बना था। जिसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस के जीते हुए सांसदों की संख्या वाममोर्चा के सांसदों से अधिक हो गई जो राज्य में परिवर्तन का संकेत था। उसके बाद 2011 में ममता बनर्जी राज्य में सत्ता परिवर्तन में सफल रही थीं। दो बार से रहा है तृणमूल का कब्जा, इसबार भाजपा के पक्ष में माहौल लगातार दो बार 2011 और 2016 में इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर शुभेंदु अधिकारी जीतते रहे हैं और ममता ने उन्हें कैबिनेट में महत्वपूर्ण प्रभार सौंपा। सत्ता में आने के बाद से ही लगातार ममता बनर्जी नंदीग्राम दिवस मनाती हैं और यहां के शहीदों को आधार बनाकर राजनीतिक घोषणाएं करती हैं। इसबार बाजी पलट गई है। शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी पर भतीजे अभिषेक बनर्जी को वरिष्ठ नेताओं से अधिक अहमियत देने का आरोप लगाकर भाजपा की सदस्यता ले ली है और सीएम के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। शुभेंदु के समर्थन में तृणमूल के अधिकतर नेताओं ने यहां से भाजपा की सदस्यता ली है। शुभेंदु के भाजपा में जाने के बाद आवेश में ममता ने नंदीग्राम की एक सभा में घोषणा कर दी कि वे इस सीट से चुनाव लड़ेंगी। शुभेंदु भी उन्हें चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि अगर इस सीट से वे ममता बनर्जी को 50 हजार वोटों से नहीं हरा सके तो राजनीति छोड़ देंगे। अमूमन ममता बनर्जी कोलकाता की भवानीपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ती रही हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को बढ़त मिली, जिसकी वजह से तृणमूल कांग्रेस की किरकिरी हुई थी। इसलिए ममता बनर्जी का इसबार नंदीग्राम से चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा है। क्या है राजनीतिक समीकरण पूर्व मेदिनीपुर में स्थित इस विधानसभा क्षेत्र का 96.65 फ़ीसदी हिस्सा शहरी है और 3.35 फ़ीसदी हिस्सा ग्रामीण है। यहां एससी और एसटी का औसत 16.46 और 0.1 है। 2019 के लोकसभा चुनाव के मुताबिक यहां मतदाताओं की कुल संख्या 246429 है और 278 मतदान केंद्र हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 84.18 फ़ीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया जबकि उसके पहले 2016 के विधानसभा चुनाव में 86.97 फ़ीसदी लोगों ने वोट दिए थे। 2016 में किसे मिले थे कितने वोट इसके पहले 2016 के विधानसभा चुनाव में यहां से तृणमूल के टिकट पर शुभेंदु अधिकारी ने जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 134623 लोगों ने वोट दिया था जबकि दूसरे नंबर पर सीपीआई के अब्दुल कबीर शेख थे, जिन्हें 53393 लोगों ने मतदान किया था। भाजपा तीसरे नंबर पर रही थी। भाजपा उम्मीदवार विजन कुमार दास को महज 10813 वोट मिले थे। इसबार हालात बदल गए हैं और शुभेंदु अधिकारी भाजपा में हैं। यह लगभग तय है कि शुभेंदु को ही टिकट मिलेगा और न केवल भाजपा के बल्कि तृणमूल कांग्रेस के भी मतदाता बड़ी संख्या में उनके पक्ष में हैं। इसबार ममता बनर्जी यहां से चुनाव लड़ती हैं तो उन्हें जीत का स्वाद मिलता है या हार का मुंह देखना पड़ेगा, यह समय बताएगा। हालांकि अभीतक भाजपा या तृणमूल किसी ने भी उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है। हिन्दुस्थान समाचार / ओम प्रकाश

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