जानें रक्षाबंधन मनाने के पीछे पौराणिक कथाएं
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जानें रक्षाबंधन मनाने के पीछे पौराणिक कथाएं

जानें रक्षाबंधन मनाने के पीछे पौराणिक कथाएं लाइफ़स्टाइल डेस्क। हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का बहुत अधिक महत्व है। यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाता है। इस बार रक्षाबंधन 3 अगस्त, सोमवार के दिन पड़ रहा है। इस दिन बहने अपने भाई की खुशी और लंबी उम्र की कामना करते हुए कलाई में राखी बांधती है। वहीं दूसरी ओर भाई अपनी बहन का जीवनभर रक्षा करने का वचन देता है। रक्षाबंधन मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाए प्रचलित है। जो विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में लिखी हुई है। जानिए रक्षाबंधन मनाने की परंपरा कब से शुरू हुई। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सबसे पहले राखी लक्ष्मी जी ने राजा बलि को बांधी थी। बताया जाता है कि यह बात उस समय कि है जब जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे और तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में राजा से उनका सारा राजपाट ले लिया तब राजा बलि को पाताल लोक का राज्य रहने के लिए दिया। तब राजा बलि ने प्रभु से कहा- भगवन मैं आपके आदेश का पालन करूंगा और आप जो आदेश देंगे वहीं पर रहूंगा पर आपको भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी। ऐसे में नारायण ने कहा- मैं अपने भक्तों की बात कभी नहीं टालता। तब बलि ने कहा- ऐसे नहीं प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें कि जो भी मांगूगा वो आप जरूर देंगे। तब नारायण ने कहा- दूंगा.. दूंगा.. दूंगा। अब त्रिबाचा करा लेने के बाद राजा बलि ने कहा- भगवन मैं जब सोने जाऊं तो.. जब उठूं तो.. जिधर भी मेरी नजर जाये उधर आपको ही देखा करूं। ऐसी बात सुनकर नारायण ने कहा- तुमने सबकुछ हार के भी जीतने वाला वर मांग लिया है और अब से मैं सदैव तुम्हारे आसपास ही रहूंगा। तब से लेकर नारायण भी पाताल लोक में रहने लगे। ऐसे होते होते काफी समय बीत गया। उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को भी नारायण की चिंता होने लगी। तब लक्ष्मी जी ने नारद जी से पूछा- आप तो तीनों लोकों में घूमा करते हैं..क्या नारायण को कहीं देखा है। तब नारद जी बोले कि आजकल नारायण पाताल लोक में हैं राजा बलि की पहरेदारी कर रहे हैं। तब लक्ष्मी जी ने नारद जी मुक्ति का उपाय पूछा और तभी नारद ने राजा बलि को भाई बनाकर रक्षा का वचन लेने का मार्ग बताया। नारद जी की सलाह मानकर लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुंची। बलि को भाई मानकर रक्षाबंधन करने का आग्रह किया। तब राजा बलि ने कहा- तुम आज से मेरी धरम की बहिन हो और मैं सदैव तुम्हारा भाई बनकर रहूंगा। तब लक्ष्मी ने तिर्बाचा कराते हुए बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये। इस बचन को पूरा करने की बात आई तो राजा बलि बोले- धन्य हो माता, जब आपके पति आये तो बामन रूप धारण कर सब कुछ ले गये और जब आप आईं तो बहन बनकर उन्हें भी ले गयीं। यह त्यौहार मनाए जाने की ही परंपरा है। Thank You, Like our Facebook Page - @24GhanteUpdate 24 Ghante Online | Latest Hindi News-24ghanteonline.com

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