काजीरंगा नेशनल पार्क में मिला देश का एकमात्र गोल्डन टाइगर
काजीरंगा नेशनल पार्क में मिला देश का एकमात्र गोल्डन टाइगर

काजीरंगा नेशनल पार्क में मिला देश का एकमात्र गोल्डन टाइगर

-सोशल मीडिया में तेजी से वायरल गुवाहाटी, 17 जुलाई (हि.स.)। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में एक गोल्डन टाइगर की तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। टाइगर के सुनहरे रंग को देखकर हर कोई हैरान है। सोशल मीडिया पर गोल्डन टाइगर की तेजी से वायरल हो रही तस्वीर में टाइगर के शरीर पर लाल और भूरे रंग की धारिया हैं, जबकि पूरे शरीर का रंग गोल्डन है। इस रंग की वजह से बंगाल टाइगर थोड़ा अलग दिखता है। क्योंकि, टाइगर के शरीर पर काली धारियां होती है। इस गोल्डन टाइगर की तस्वीर आईएफएस अधिकारी परवीन कसवान ने ट्वीट किया है। इस फोटो को ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा था की जींस में आए बदलाव की वजह से इसका रंग ऐसा हो सकता है। लेकिन, यह दुर्लभ है। क्योंकि, आमतौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता है। फारेस्ट अधिकारी परवीन ने इसके साथ कैप्शन में लिखा है कि आमतौर पर यह दुनिया के किसी न किसी कोने में किसी चिड़ियाघर में देखने को मिल सकता है। लेकिन, जंगल में सुनहरे टाइगर को खुलेआम घूमने देखना वाकई एक अद्भुत नजारा है। इस गोल्डन टाइगर की तस्वीरे वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर मयूरेश हेंद्रे ने असम के विश्वविख्यात काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में लिया था। उल्लेखनीय है कि इस गोल्डन टाइगर यानी सुनहरे टाइगर की फोटो को सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद ही काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन ने स्पष्टिकरण दिया है। राष्ट्रीय उद्यान में शोध अधिकारी रवींद्रनाथ शर्मा के मुताबिक जेनेटिक कारण से ही बाघ के रंग ऐसा होता है। इस गोल्डन टाइगर को लोकप्रिय रूप से काज़ीरंगा में 106 एफ के नाम से जाना जाता है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ऐसे चार बाघ हैं। इस बात का पता 2014 में तब चला जब इसे ऑल इंडिया मॉनिटरिंग प्रक्रिया के दौरान पहली बार देखा गया था। इस संदर्भ में रवींद्रनाथ शर्मा ने बताया कि काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में मिला काज़ी 106 एफ नाम की इस बाघिन का क्षेत्रीय व्यवहार का तरीका बाकी दुनिया से अलग है। उन्होंने कहा कि बाघ का रंग हल्का पीला है जिस पर काली धारियां है और पेट पर ज्यादा सफेद इलाका है। यह पीला रंग की पृष्ठभूमि को अगाऊटी जीन और उनके जेनेटिक तत्व के एक समूह के जरिए नियंत्रित किया जाता है। काले रंग की धारियों को टैबी जीन और उसके जेनेटिक तत्व के जरिए नियंत्रित किया जाता है। इनमें से किसी भी जीन के कम होने से बाघ के रंग में भिन्नता हो सकता है। हिन्दुस्थान समाचार/ देबोजानी/ अरविंद-hindusthansamachar.in

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