भारत स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करने को बिजली वाहनों से संबंधित योजनाएं मजबूत करने में जुटा

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नई दिल्ली, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कार बाजार है और इसके निकट भविष्य में शीर्ष तीन में से एक बनने की क्षमता है, जहां वर्ष 2030 तक लगभग 40 करोड़ ग्राहकों को मोबिलिटी सॉल्यूशंस की जरूरत होगी। पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए ऑटोमोबाइल ग्राहकों की बढ़ती संख्या पारंपरिक ईंधन की खपत में वृद्धि का कारण नहीं बनेगी। भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की शुरुआत पर जोर दे रही है और इससे न केवल लंबी अवधि में भारत के तेल आयात बिल कम होंगे, बल्कि एक स्वच्छ वातावरण भी सुनिश्चित होगा। भारत की पहल कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को भी इसी तरह की रणनीति अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी। हाल ही में, ऑटोमोटिव पेशेवरों और जनता के बीच समान रूप से बढ़ती सहमति है कि वाहनों का भविष्य इलेक्ट्रिक है और महत्वपूर्ण खनिजों के स्रोत के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का हालिया सौदा इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन के उसके प्रयास में मदद करेगा। भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है जो वैश्विक ईवी30 एट द रेट 30 अभियान का समर्थन करते हैं, जिसका लक्ष्य 2030 तक कम से कम 30 प्रतिशत नए वाहनों की बिक्री (जिसमें इलेक्ट्रिक वाहन हों) करना है। ग्लासगो में सीओपी26 में जलवायु परिवर्तन के लिए भारत की पांच तत्वों की वकालत - पंचामृत उसी के लिए एक प्रतिबद्धता है। ग्लासगो शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा विभिन्न विचारों का समर्थन किया गया था, जैसे कि अक्षय ऊर्जा भारत की ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत पूरा करे, 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 1 अरब टन कम किया जाए और 2070 तक शुद्ध शून्य (नेट जीरो) प्राप्त हो। भारत सरकार ने देश में ईवी पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे : रीमॉडेल्ड फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्च रिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम 2) योजना, आपूर्तिकर्ता पक्ष के लिए उन्नत रसायन विज्ञान सेल (एसीसी) के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माताओं के लिए ऑटो और ऑटोमोटिव घटकों (कंपोनेंट्स) के लिए हाल ही में शुरू की गई पीएलआई योजना। ईवीएस समग्र ऊर्जा सुरक्षा स्थिति में सुधार करने में योगदान देगा, क्योंकि देश अपनी कुल कच्चे तेल की जरूरत का 80 प्रतिशत से अधिक आयात करता है, जो कि लगभग 100 अरब अमेरिकी डॉलर का होता है। नीति आयोग के अनुसार, 2030 तक भारत में 80 फीसदी दोपहिया और तिपहिया, 40 फीसदी बसें और 30 से 70 फीसदी कारें इलेक्ट्रिक वाहन होंगी। जैसा कि राष्ट्र अपने शून्य-उत्सर्जन 2070 के सपने की ओर अग्रसर है, धन और ध्यान (फंड्स एंड फोकस) विद्युत गतिशीलता की ओर निर्देशित किया जा रहा है। मार्च 2022 में, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री, नितिन गडकरी ने संसद में उल्लेख किया कि 2019-2020 और 2020-2021 के बीच, दोपहिया ईवी वाहनों में 422 प्रतिशत की वृद्धि हुई, तिपहिया वाहनों में 75 प्रतिशत और चौपहिया वाहनों में 230 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इलेक्ट्रिक बसों की संख्या में भी 1,200 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई। रोजगार सृजन के लिए स्थानीय ईवी विनिर्माण उद्योग में ईवी पर जोर देना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा, कई ग्रिड समर्थन सेवाओं के माध्यम से, इलेक्ट्रिक वाहनों से ग्रिड को मजबूत करने और सुरक्षित और स्थिर ग्रिड संचालन को बनाए रखते हुए उच्च नवीकरणीय ऊर्जा प्रवेश को समायोजित करने में मदद की उम्मीद है। बैटरी निर्माण और भंडारण के अवसर : हाल ही में प्रौद्योगिकी व्यवधानों के साथ, ई-मोबिलिटी और नवीकरणीय ऊर्जा (2030 तक 450 गीगावॉट ऊर्जा क्षमता लक्ष्य) को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहलों पर विचार करते हुए देश में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए बैटरी भंडारण के लिए बहुत अच्छा अवसर है। प्रति व्यक्ति आय के बढ़ते स्तरों के साथ, मोबाइल फोन, यूपीएस, लैपटॉप और पावर बैंकों के क्षेत्रों में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की जबरदस्त मांग रही है, जिन्हें उन्नत रसायन बैटरी की जरूरत होती है। यह उन्नत बैटरी के निर्माण को 21वीं सदी के सबसे बड़े आर्थिक अवसरों में से एक बनाता है। बिजली मंत्रालय ने राजमार्ग के दोनों किनारों पर तीन किलोमीटर और हर 25 किलोमीटर के ग्रिड में कम से कम एक चार्जिग स्टेशन लगाने का प्रावधान किया है। भारत के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने मॉडल बिल्डिंग बाय-लॉज, 2016 (एमबीबीएल) के तहत आवासीय और वाणिज्यिक भवनों में ईवी चाजिर्ंग सुविधाओं के लिए 20 प्रतिशत पार्किं ग स्थान को अलग रखना अनिवार्य कर दिया है और ऐसा उदाहरण विकासशील अर्थव्यवस्थाओं द्वारा अनुकरण करने योग्य है। जब तक ईवी सस्ती नहीं हो जाती, तब तक भारत सरकार ने अम्ब्रेला फेम-2 योजना के तहत कई प्रोत्साहनों के साथ कदम रखा है। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए प्रोत्साहन का स्तर अब तक का सबसे अधिक है - इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिए 32,000 रुपये तक, इलेक्ट्रिक कारों के लिए 3 लाख रुपये और बसों के लिए 35-55 लाख रुपये। इलेक्ट्रिक कार खरीदने के लिए लिए गए कर्ज पर अतिरिक्त आयकर छूट है। सीईईडब्ल्यू सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) के एक अध्ययन के अनुसार, बाजार के अवसर लगभग 206 अरब अमेरिकी डॉलर (14,42,000 करोड़ रुपये) का है, जिसमें सभी वाहन खंडों में संचयी ईवी बिक्री वित्तवर्ष 2030 तक 10 करोड़ से अधिक यूनिट्स तक पहुंचने का अनुमान है। यह अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक वाहन उत्पादन और चार्जिग बुनियादी ढांचे में 180 अरब अमेरिकी डॉलर (12,50,000 करोड़ रुपये) से अधिक के निवेश की आवश्यकता होगी और यह विदेशी निवेशकों के लिए एक बड़ा अवसर पेश करता है। यही वह अवसर है, जिसने कई स्टार्टअप्स को इस क्षेत्र में आकर्षित किया है। समाधान भी इनोवेटिव हैं। उदाहरण के लिए, एक वर्ष पुराना बेंगलुरु स्थित चार्जर देश के हर शहर की हर सड़क पर एक इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर चार्जिग स्टेशन स्थापित करना चाहता है। अब ऐसे वाहन सड़कों पर उतर रहे हैं और इससे ध्वनि प्रदूषण के साथ ही वायु प्रदूषण में भी कमी आएगी। आने वाले समय में ऐसी व्यवस्थाएं होंगी कि लोग मॉल, पार्किं ग स्थल, रात भर घर पर, सुपरचार्जिग स्टेशन पर तो अपने ईवी वाहनों को चार्ज कर ही पाएंगे, साथ ही वे अपने पड़ोस के किराना स्टोर पर भी रिचार्ज की सुविधा प्राप्त कर सकेंगे। इसके अलावा उनके पास एक डिस्चार्ज हो चुकी बैटरी को ही एक नई बैटरी के तौर पर स्वैप करने का भी विकल्प होगा। यही मोबिलिटी का भविष्य है। --आईएएनएस एकेके/एसजीके

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