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नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव

अशोक कुमार सिन्हा नेपाल का प्राचीन नाम देवघर था जो अखण्ड भारत का हिस्सा था। भगवान राम की पत्नी सीता माता का जन्मस्थल जनकपुर, मिथिला नेपाल में है। भगवान बुद्ध का जन्म भी लुम्बिनी नेपाल में है। 1500 ईसापूर्व से ही हिन्दू आर्य लोगों का यहां शासन रहा है। 250 ईसा पूर्व यह मौर्यवंश साम्राज्य का एक हिस्सा रहा। चौथी शताब्दी में गुप्तवंश का यह एक जनपद था। तत्पश्चात मल्लवंश फिर गोरखाओं ने यहां राज किया। सन 1768 में गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 46 छोटे-बड़े राज्यों को संगठित कर स्वतन्त्र नेपाल राज्य की स्थापना की। 1904 में बिहार के सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से सन्धि कर नेपाल को आजाद देश का दर्जा देकर अपना एक रेजीडेट कमिश्नर बैठा दिया था। 1940 के दशक में नेपाल में लोकतन्त्र समर्थक आन्दोलन की शुरुआत हुई। 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ। दुनिया का यह एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था लेकिन वर्तमान में वामपंथी वर्चस्व के कारण अब यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है। नेपाल और भारत के राजवंशियों का गहरा आपसी रिश्ता है। भारत और नेपाल के मध्य लम्बे समय से द्विपक्षीय सम्बन्ध हैं। 1950 में भारत-नेपाल के मध्य व्यापार एवं वाणिज्यिक संधि तथा शान्ति और मित्रता की 2 संधियां हुईं। दोनों देशों के नागरिक विशेषाधिकार के अन्तर्गत निर्बाध एक देश से दूसरे देश में आते हैं तथा दोनों देशों के मध्य रोटी और बेटी के सम्बन्ध हैं। 2008 में नेपाल में राजतन्त्र समाप्त होने के बाद राजनैतिक रिक्तता का लाभ उठाकर चीन भारत के प्रभाव को क्षीण करने का प्रयास कर रहा है। चीन तिब्बत हड़पने के बाद से ही सुरक्षा कारणों से नेपाल पर सदैव ध्यान देता रहा। चीन नेपाल से लगभग 1414 कि. मीटर लम्बी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। चीन ने 1988 में नेपाल के साथ कई समझौते किये जिसमें भारत के सुरक्षा हितों की उपेक्षा हुई। चीन ने सड़कें, हवाईअड्डे, रेलमार्गों और अस्पतालों का निर्माण नेपाल में तेज किया। चीन नेपाल राजमार्ग द्वारा ल्हासा को नेपाल से जोड़ने का कार्य हुआ। किंगहाई तिब्बत रेलमार्ग से नेपाल को जोड़ने का कार्य चीन ने ही प्रारम्भ किया। जब से नेपाल में माओवादी शासन आया है तब से भारत की नेपाल में सक्रिय भूमिका को संतुलित करने के लिये चीन को खुला आमंत्रण दिया गया है। यदि भारत-नेपाल और नेपाल-चीन दोनो के सम्बन्धों की समीक्षा की जाय तो नेपाल और भारत के बीच सांस्कृतिक धार्मिक, ऐतिहासिक और नृवंश विज्ञान की अद्भुत समानतायें हैं जो चीन और नेपाल के मध्य नहीं हैं। प्रसिद्ध काठमान्डू पशुपतिनाथ मंदिर सम्पूर्ण भारतीयों के आस्था का केन्द्र है। समस्त नेपाल वंशी काशी विश्वनाथ को उसी श्रद्धा से पूजते हैं। चीन की शघांई कन्स्ट्रक्शन कम्पनी काठमान्डू के चारों ओर रिंगरोड बनाने सहित अन्य चीनी कम्पनियों का नेपाल में भारी आर्थिक निवेश हो रहा है। भारत की नेपाल के प्रति ढीली नीतियों तथा नेपाल में वामपंथी शासन के कारण चीन नेपाल में काफी अन्दर तक आर्थिक रूप से प्रवेश कर गया है। विशेषज्ञों के अनुसार विगत 20 वर्षों में चीन के मुकाबले भारत का प्रभाव नेपाल पर घटा है। नेपाल में चीन का एफडीआई तेजी से बढ़ा है तथा चीन नेपाल की मजबूरी का फायदा उठाकर नेपाल की सीमा में घुसकर निर्माण कर रहा है। चीन सार्क में प्रवेश पाने का प्रयास कर रहा है और नेपाल ने क्षेत्रीय समूह में चीन के प्रवेश का खुला समर्थन किया है। नेपाल और तिब्बत का भाषाई, सांस्कृतिक, वैवाहिक और जातीय सम्बन्ध है। नेपाली राजकुमारी भृकुटी का विवाह तिब्बत के सम्राट सोंत्सपन गम्पो से 600-650 ई. सन में हुआ था। नेपाल की राजकुमारी ने दहेज के रूप में बौद्ध अवशेष और यंगका तिब्बत लाई थी तब से बौद्ध तिब्बत का राजसी धर्म हो गया था। अब तिब्बत चीन का हिस्सा है और चीन इस रिश्ते का फायदा भारत के मुकाबले उठाना चाहता है। नेपाल में राजशाही का अंत भी चीन की योजनानुसार ही हुआ जिसका लाभ चीन को भरपूर मिला। नेपाल ने भारत की भांति तिब्बत के चीन में विलय को मान्यता दी। चीन के इशारे पर ही नेपाल ने भारत के तीन गावों को अपने नक्शे में दिखाया तथा नक्शा संयुक्त राष्ट्रसंघ में स्वीकृति हेतु भेजा। नेपाली संसद में नक्शा पारित भी चीन के इशारे पर किया गया। वैसे तो चीन का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों जैसे लंका, पाकिस्तान व बंग्लादेश में लगातार बढ़ रहा है। चीन ने 2017 में नेपाल से बेल्ट एण्ड रोड परियोजना की द्वीपक्षीय समझौता किया है। नेपाल के कई स्कूलों में चीनी भाषा मन्दारिन को पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है। इस भाषा के शिक्षकों का वेतन चीन दे रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली के अनुसार नेपाल की तरफ से उन प्रयासों को रोका जायेगा जो चीन को उसके नजदीक आने में रुकवाटे पैदा करेंगी। भारत की आपत्ति पर नेपाल ने उत्तर दिया कि नेपाल किसी भी देश के पास सैन्य गठजोड़ न करने की नीति पर कायम है। नेपाल तटस्थ रहने का नारा तो लगाता है परन्तु उसका अनुराग चीन की ओर बढ़ रहा है ओर इसका कारण आर्थिक लाभ तथा वामपंथी सरकार का होना है। ओली कभी भारत समर्थक हुआ करते थे परन्तु अब उनका रुख परिवर्तित दिखाई पड़ता है। नेपाली सत्तारूढ़ दल में संघर्ष चीनी इशारे पर नेपाल में एक दलीय शासन व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान संशोधन कराना है। वामपंथी दलों का एकीकरण चीन की योजना है। नेपाल में चीन 'साइलेन्ट डिप्लोमेसी' चला रहा है। चीन पहले पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आई.एस.आई. के जरिये यह काम कर रहा था अब उसके कमजोर पड़ने पर चीन खुलकर सामने आ गया है। 'विम्सटेक' सम्मेलन में घोषणा के बाद भी भारत में विम्सटेक देशों के संयुक्त सैन्याभ्यास में नेपाली सेना दूर रही, दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर बीबीआईएन (बंग्लादेश, भूटान, इण्डिया, नेपाल) के क्षेत्रीय मुक्त व्यापार परिवहन को बढ़ावा देने पर नेपाल ने असहयोग किया। भगवान राम के जन्मस्थान पर विवादित बयान, कोरोना की आड़ में खुली सीमा को बन्द करने का प्रयास, पशुपतिनाथ मन्दिर के मूल भट्ट को बदलने का फैसला, नेपाल में ब्याही जाने वाली भारतीय बेटियों की नागरिकता के अधिकार से वंचित रखने का कानून चीनी रणनीति के नेपाल में बढ़ते प्रभाव के कारण हो रहा है। नेपाली जनता भारत के साथ है अत: नेपाल में वर्तमान सरकार पर दबाव बढ़ रहा है, जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। ओली ने इस्तीफा देकर वहां की संसद भंग करने की सिफारिश की है जिसे न्यायपालिका ने अमान्य करार दे दिया है। भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को नेपाल भेजकर स्थिति सुधारने का प्रयास किया। भारतीय सेना प्रमुख एम.एम. नरवाणे ने नेपाल जाकर परम्परा का निवर्हन किया। भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने भी जाकर बैठक की। अब नेपाल सरकार जनता के दबाव में है। अब ओली कह रहे हैं कि एक-एक आरोपों का जवाब दिया जायेगा। पाकिस्तान के बाद चीन अब नेपाल को पूरी तरह कर्ज में डुबोने की योजना बना चुका है परन्तु भारत भी सतर्क है तथा निवेश, रोजगार, सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ाकर वह चीन के प्रभाव को कम करने का पूरा प्रयास कर रहा है। निश्चित ही भारत इसमें सफल होगा। नेपाल-भारत अभिन्न है, अभिन्न रहेंगे। मोदी है तो सबकुछ मुमकिन है। (लेखक, पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं।)

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