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हाइड्रोजन ईंधन की आवश्यकता एवं चुनौतियां

रंजना मिश्रा पेट्रोलियम ईंधन के लगातार महंगे होने और इससे होने वाले प्रदूषण को देखते हुए हरित व नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना देश के लिए बहुत जरूरी हो गया है, इसीलिए आज हाइड्रोजन को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करने के विकल्प ढूंढ़े जा रहे हैं। हाइड्रोजन ब्रह्मांड में प्रचुर मात्रा में मौजूद है, इससे बहुत ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है, यह हल्का है और पेट्रोल दहन से लगभग 2 से 3 गुना ज्यादा प्रभावकारी है। हाइड्रोजन जब जीवाश्म ईंधनों की जगह लेगा तो इससे पर्यावरण प्रदूषण और पेट्रोल की कीमतें प्रभावित होंगी। अभी भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से जीवाश्म ईंधनों के आयात पर निर्भर है, ऐसे में जब हाइड्रोजन ऊर्जा का प्रयोग एक विकल्प के रूप में शुरू होगा तो भारत को आयात की जरूरतों में कमी आएगी। 2021 के बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी मिशन की घोषणा की थी। उन्होंने बताया था कि भारत 2021-22 में नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी मिशन लॉन्च करने वाला है। इस मिशन के अंतर्गत ग्रीन हाइड्रोजन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा और हाइड्रोजन को ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा कि किस प्रकार हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग करना है? कैसे इसकी उपलब्धता को बढ़ाना है और सभी लोगों तक इसका डिस्ट्रीब्यूशन किस प्रकार करना है? हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन इस्पात और सीमेंट जैसे उद्योगों को कार्बन मुक्त करने के लिए भी जरूरी है। किंतु इस मिशन को सफल बनाने के लिए हाइड्रोजन उत्पादन के साथ-साथ हाइड्रोजन ऊर्जा से चलने वाले वाहन भी बनाने होंगे, उनके लिए फ्यूल स्टेशन बनाने होंगे और सुरक्षित प्रौद्योगिकी को तैयार करना पड़ेगा। वाहन, ईंधन और प्रौद्योगिकी कंपनियां मिलकर इस मिशन को सफल बना सकती हैं। इस मिशन में भारत की बढ़ती अक्षय ऊर्जा क्षमता के साथ हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की संभावनाओं को तलाशा जाएगा कि एक फ्यूल इकोनॉमी, जो जीवाश्म ईंधनों और पेट्रोलियम ईंधनों के प्रयोग पर ही ज्यादातर निर्भर है, जब हाइड्रोजन इकोनॉमी में परिवर्तित की जाएगी तो ये किस प्रकार लाभकारी सिद्ध हो सकेगी? इसका फोकस मुख्यतः परिवहन क्षेत्र पर होगा क्योंकि परिवहन क्षेत्र ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में एक तिहाई भूमिका अदा करता है। यदि हमें पर्यावरण से कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना है या रोकना है तो सबसे पहले परिवहन के स्तर पर शुद्ध ऊर्जा का उपयोग करना शुरू करना होगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि पारंपरिक इलेक्ट्रिक वाहनों के मुकाबले हाइड्रोजन ऊर्जा से चलने वाले वाहन ज्यादा लाभकारी साबित होंगे। भारत में पेरिस जलवायु समझौते के अंतर्गत 2050 तक कार्बन उत्सर्जन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य रखा गया है। 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना भारत का उद्देश्य है, इन उद्देश्यों की पूर्ति हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग करके संभव हो सकती है।हाइड्रोजन ईंधन तीन प्रकार के होते हैं- ग्रे हाइड्रोजन, ब्लू हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन। भारत में सबसे ज्यादा ग्रे हाइड्रोजन का उपयोग होता है। ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन हाइड्रोकार्बन जैसे फॉसिल फ्यूल्स और नेचुरल गैसों से किया जाता है जिससे अपशिष्ट के तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। ब्लू हाइड्रोजन और ग्रे हाइड्रोजन में ज्यादा फर्क नहीं है, ब्लू हाइड्रोजन का निष्कर्षण भी फॉसिल फ्यूल्स से होता है, इससे निकलने वाले अपशिष्ट कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड हैं, किंतु ब्लू हाइड्रोजन और ग्रे हाइड्रोजन में यह फर्क है कि ब्लू हाइड्रोजन से निकलने वाले बाय प्रोडक्ट्स को स्टोर करने की सुविधा होगी, ऐसे में ब्लू हाइड्रोजन पर्यावरण के लिए ज्यादा हितकारी होगा। ग्रीन हाइड्रोजन रिन्यूएबल एनर्जी जैसे पवन ऊर्जा या अन्य उर्जा से प्राप्त होती है। विद्युत क्षमता के जरिए पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग-अलग करके उनका उपयोग किया जाता है। ग्रीन हाइड्रोजन से बाय प्रोडक्ट के रूप में पानी या भाप निकलती है। इसलिए ग्रीन हाइड्रोजन बाकी दोनों प्रकार की हाइड्रोजन से ज्यादा किफायती और पर्यावरण फ्रेंडली साबित होगी। हाइड्रोजन ईंधन स्वच्छ ईंधन है, इससे कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन बहुत कम मात्रा में या ना के बराबर होता है। हाइड्रोजन ईंधन के उपयोग से अपशिष्ट के रूप में जल का उत्सर्जन होगा जिसे रेगिस्तानी या बंजर जगहों में इस्तेमाल किया जा सकेगा। बायोमास से हाइड्रोजन का उत्पादन करने पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वृद्धि की संभावना है। हाइड्रोजन ईंधन का उपयोग अंतरिक्ष वाहनों तथा बड़े वाहनों को चलाने में किया जा सकेगा अर्थात इससे बड़े मालवाहक ट्रक, शिप्स आदि को भी चलाया जा सकेगा। हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग करने में कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है। हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित वाहन अभी बहुत महंगे हैं, एक गाड़ी की कीमत लगभग 34-35 लाख रुपए तक है। हाइड्रोजन आधारित ईंधन अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं, ये बहुत तेजी से प्रतिक्रिया करते हैं, इसलिए इनका उत्पादन, स्टोर करना, एक जगह से दूसरी जगह ले जाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एचएफसी वाहनों का अंतर्राष्ट्रीय बाजार भी ज्यादा बड़ा नहीं है, ऐसे में निवेश में नुकसान होने की अधिक संभावना है। इन चुनौतियों का सामना किस प्रकार करना है, इस पर शोध हो रहा है और उम्मीद है कि जल्द ही इस तकनीक का लाभ उठाया जा सकेगा। (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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