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कठमुल्ला बांग्लादेश में खतरे में कैसे आया इस्लाम ?

आर.के. सिन्हा बांग्लादेश में हाल ही में जमकर हिंसा और तोड़फोड़ हुई। यह वहां तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश दौरे पर गए हुए थे। प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के ख़िलाफ़ बांग्लादेश में लगातार तीन दिन झड़पें हुईं। भयानक हिंसा के पीछे कट्टरपंथी इस्लामी संगठन 'हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम' था। समझ नहीं आ रहा इस जाहिल कठमुल्ला संगठन को किसने यह समझा दिया कि मोदी जी इस्लाम के लिए खतरा साबित हो सकते हैं। दूसरी बात यह कि जिस देश की आबादी का 90 फीसद तक हिस्सा मुसलमानों का है, वहां इस्लाम खतरे में कैसे आ सकता है? भारत का 1947 में बंटवारा हुआ। पंजाब और बंगाल सूबों के कुछ हिस्से पाकिस्तान में चले गए। आगे चलकर पाकिस्तान का वह भाग, जिसे पूर्वी पाकिस्तान कहते थे, 1971 में मुक्ति वाहिनी संघर्ष के बाद एक स्वतंत्र देश के रूप में विश्व मानचित्र पर उभरा। नए देश का नाम बांग्लादेश के रूप में जाना गया। वहां शुरू से ही घनघोर कठमुल्ले छाए रहे। उनकी जहालत की एक तस्वीर सारी दुनिया ने हाल ही में देखी। हिंसा में सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाई गई और हिन्दुओं और प्राचीन हिन्दू मंदिरों पर जमकर हमले हुए। बांग्लादेश में इस्लामिक कठमुल्ले आमतौर पर हिन्दुओं की जान के पीछे पड़े रहते हैं। उन्हें तो बस मौके की तलाश होती है। बांग्लादेश में पिछले संसद के चुनाव में शेख हसीना की विजय के बाद ही हिन्दुओं पर हमले चालू हो गए थे। वहां एक प्राचीन काली मंदिर को तोड़ने की कोशिश भी हुई। शरारती तत्वों ने इसे आग के हवाले कर दिया था। बांग्लादेश में राजधानी ढाका और राजशाही, जैसोर, दीनाजपुर जैसे शहरों में हिन्दुओं पर लगातार हमले होते रहते हैं। उनकी संपत्ति को हानि पहुंचाई जाती है। उत्तरी और दक्षिणी बांग्लादेश के गांवों में हिंसा की वारदातों के बाद हिन्दू परिवारों को दर-दर की ठोकरे खानी पड़ती है। यह सच में बेहद अफसोसजनक है कि बांग्लादेश में सरकार आजतक हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पाई, जबकि असलियत यह है कि बांग्लादेश में सदियों से बसे हिन्दुओं ने बंग बंधु शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। यकीन मानिए कि जिस बांग्लादेश में 'हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम' जैसा जहरीला संगठन सक्रिय होगा उसका भगवान ही मालिक है। जरा देख लें कि अपने देश के निरक्षर लोगों को यह कैसे समझा देता है कि इस्लाम खतरे में है। कैसे खतरे में है? कोई यह भी तो बता दे। बांग्लादेश सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि बंग्लादेश की धरती पर हो रहे जिहादियों के इस नंगे नाच को रोका जाए। बांग्लादेश में घटते अल्पसंख्यक जब 1947 में भारत का बंटवारा हुआ था, उस समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हिन्दू वहां की आबादी के 30 से 35 फीसदी के बीच थे। पर 2011 की जनगणना के बाद वहां हिन्दू देश की कुल आबादी का मात्र 8 फीसदी ही रह गए हैं। यह जानकारी बांग्लादेश के एक अखबार ब्लिट्ज में प्रकाशित विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में दी गई है। बांग्लादेश में शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता होगा, जब किसी हिन्दू महिला के साथ कट्टरवादी बदतमीजी न करते हों। दरअसल बंगलादेश में हिन्दू महिलाओं को विशेष रूप से निशाने पर रखा जाता रहा है। राह चलती किसी लड़की को सरेआम उठाकर कहा जाता है कि उसने इस्लाम कबूल कर लिया है और उसका निकाह जबरदस्ती किसी मुस्लिम से करा दिया जाता है। ऐसी घटनाएं अब बांग्लादेश में भी पाकिस्तान की तरह ही सामान्य हैं। तो ये नीच हरकतें करने वाले अब यह कह रहे हैं कि इस्लाम खतरे में है। इन वजहों की रोशनी में कुछ लोग सवाल उठाने लगे हैं कि क्या कुछ साल बाद पाकिस्तान और बंगलादेश हिन्दू-विहीन हो जाएंगे? आपको याद होगा कि तस्लीमा नसरीन ने भी अपने उपन्यास "लज्जा" में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की दर्दनाक स्थिति को ही बयां किया है। इसलिए उनकी जान के दुश्मन हो गए ये मुस्लिम कट्टरपंथी। उसी विरोध के कारण तस्लीमा को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था। बांग्लादेश में हालात सिर के ऊपर से निकल रहे हैं। वक्त का तकाजा है कि बांग्लादेश के हिन्दुओं को बचाया जाए। इंसान नहीं समझा जाता हिन्दुओं को बांग्लादेश की स्थापना के बाद लग रहा था कि वहां हिन्दुओं की स्थिति सुधर जाएगी। उन्हें इंसान समझा जाएगा, पर यह हो न सका। भारत की चाहत रही है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना सत्तासीन रहें। यानी वहां अवामी लीग के नेतृत्व वाली सरकार रहे। भारत कम से कम खुलकर तो वहां कट्टरपंथी खालिदा जिया के नेतृत्व वाली सरकार को नहीं चाहता। खालिदा बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की नेता हैं। उन पर भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे हैं। वे जब भी सत्ता पर काबिज रहीं तो हिन्दुओं की स्थिति खराब ही हुई। कुछ साल पहले बांग्लादेश में अमेरिकी ब्लॉगर अविजित रॉय की निर्मम हत्या और उनकी पत्नी पर हुए जानलेवा हमले से वहां पर इस्लामिक चरमपंथियों की बढ़ती ताकत का पता चल गया था। वहां धर्मनिरपेक्ष ताकतों के लिए जगह जीवन के सभी क्षेत्रों में घट ही रहा है। अविजित रॉय बांग्लादेश मूल के अमेरिकी नागरिक थे। वे हिन्दू थे। वे और उनकी पत्नी बांग्लादेश में कट्टपंथी ताकतों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे अपने ब्लॉग के जरिए। अविजित की हत्या से बांग्लादेश में हिन्दुओं की लगातार खराब होती स्थिति पर एक बार फिर से पूरी दुनिया का ध्यान गया है। क्यों नहीं लिया एक्शन बहरहाल, एक बात समझ से परे है कि जब हाल में बांग्लादेश जल रहा था तब सरकार ने उपद्रवियों पर कठोर एक्शन क्यों नहीं लिया। सरकार के एक प्रवक्ता कह रहे थे- "हम सबंधित लोगों से इस तरह के नुक़सान और किसी भी तरह की अव्यवस्था को रोकने के लिए कह रहे हैं। नहीं तो सरकार लोगों की ज़िंदगियों और संपत्ति को बचाने के लिए कड़े क़दम उठाएगी।" क्या उपद्रव में लगे तत्व इस तरह की सभ्य भाषा से कुछ सीखेंगे? सरकार को चाहिए था कि वह 'हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम' के गुंडों की कमर तोड़ देती। ये सच में दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि सरकार ने अतीत में कई बार हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम की मांगों को माना भी है, जिसमें किताबों में बदलाव करना और बांग्लादेश में मूर्तियों को हटाना शामिल है। क्या बांग्लादेश सरकार अपनी पुरानी गलतियों को सुधारते हुए हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम को खत्म करेगी? (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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