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हिमाचल ने औषधीय पौधों की खेती पर दिया जोर

शिमला, 28 जून (आईएएनएस)। प्राकृतिक उत्पादों की बढ़ती मांग के साथ हिमाचल प्रदेश, समृद्ध जैविक विविधता के साथ, किसानों की आय के लिए औषधीय पौधों की खेती को सपोर्ट कर रहा है, जो बड़े पैमाने पर छोटे जोत वाले हैं। आयुष विभाग के तहत राज्य के औषधीय पौधे बोर्ड किसानों को उनकी आय के पूरक के लिए खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके लिए राज्य सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत औषधीय पौधों की खेती के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। इसके लिए विभिन्न किसानों के ग्रूप तैयार किए गए हैं। वित्तीय सहायता का फायदा पाने के लिए एक क्लस्टर के पास कम से कम दो हेक्टेयर भूमि होनी चाहिए। प्रत्येक क्लस्टर में 15 किलोमीटर के दायरे में तीन आसपास के गांव शामिल हैं। गिरवी रखी गई भूमि का उपयोग औषधीय पौधों की खेती के लिए भी किया जा सकता है। जनवरी 2018 से 318 किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए 99.68 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। राष्ट्रीय आयुष मिशन ने साल 2019-20 में राज्य में औषधीय पौधों के घटक के लिए 128.94 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है। इसमें से अतिस, कुटकी, कुठ, शतावरी, स्टीविया और सरपगंधा की खेती के लिए 54.44 लाख रुपये स्वीकृत किए गए हैं। राज्य ने मंडी जिले के जोगिंदर नगर, हमीरपुर जिले के नेरी, शिमला जिले के रोहड़ू और बिलासपुर जिले के जंगल झलेरा में हर्बल गार्डन स्थापित किए हैं। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इन हर्बल उद्यानों में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों की पूर्ति करने वाले विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधे उगाए जा रहे हैं। आयुष मंत्रालय के राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ने जोगिंदर नगर में भारतीय चिकित्सा प्रणाली में अनुसंधान संस्थान में उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय-सह-सुविधा केंद्र की स्थापना की है। यह केंद्र छह पड़ोसी उत्तरी राज्यों - पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश में औषधीय पौधों की खेती और संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है। जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए आयुष विभाग द्वारा वृक्षारोपण अभियान चरक वाटिका चलाया गया। इस अभियान के तहत 11,526 पौधों के रोपण के साथ 1,167 आयुर्वेदिक संस्थानों में चरक वाटिका की स्थापना की गई। चरक वाटिका का दूसरा चरण 7 जून को शुरू हुआ था। विविध जलवायु परिस्थितियों वाला राज्य चार कृषि-जलवायु क्षेत्रों में वितरित औषधीय पौधों की 640 प्रजातियों का घर है। जनजातीय जिले जैसे किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू और कांगड़ा और शिमला जिलों के कुछ हिस्से, जो 2,500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित हैं, अत्यधिक औषधीय पौधों का उत्पादन करते हैं। इनमें से कुछ में पतिस, बत्सनाभ, अतिस, ट्रागेन, किरमाला, रतनजोत, काला जीरा, केसर, सोमलता, जंगली हींग, चार्मा खुरसानी अजवाइन, पुष्कर मूल, हौवर, धोप, धमनी, नेचनी, नेरी, केजावो और बुरांश शामिल हैं। --आईएएनएस एचके/आरजेएस

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