high-court-warning-to-all-jail-authorities-about-medical-report
high-court-warning-to-all-jail-authorities-about-medical-report

मेडिकल रिपोर्ट के बारे में सभी जेल प्रशासन को उच्च न्यायालय की चेतावनी

जितेंद्र तिवारी नई दिल्ली, 11 अप्रैल (हि.स.)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन जेल प्रशासन को चेतावनी जारी की है, जो सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदियों के लिए फर्जी तरीके या घुमा फिराकर मेडिकल रिपोर्ट अदालत में जमा करते हैं, जिसकी बदौलत न्यायालय से उन्हें आसानी से जमानत मिल जाती है। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायधीश सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने हिमांशु डबास बनाम स्टेट मामले की सुनवाई के दौरान गत दिवस यह फैसला सुनाया। न्यायालय ने दिल्ली के सभी जेल अस्पपाल अधीक्षकों को यह निर्देश दिया कि आगे से कैदियों के बारे में बीमारी की विस्तृत जानकारी और इलाज की प्रकिया को स्पष्ट किए बिना मेडिकल रिपोर्ट जारी नहीं की जा सकती। रिपोर्ट का पठनीय होना भी आवश्यक है। इस संबंध में कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट बनाने संबंधी एक दिशा निर्देश भी जारी किया है। याचिकाकर्ता की ओर इस मामले की पैरवी करने वाले अधिवक्ता सुमीत शौकीन और पावस पीयूष ने उच्च न्यायालय के समक्ष अभियुक्त बिजेन्द्र उर्फ विंदर को निचली अदालत से मिली अंतरिम जमानत को चुनौती दी थी। उन्होंने यह दलील दी थी कि अभियुक्त ने अंतरिम जमानत के लिए अपनी बीमारी संबंधी गलत जानकारी जेल प्रशासन और अन्य अस्पतालों को दी थी। उसकी गलत सूचना के आधार पर ही जेल प्रशासन और एक अन्य अस्पताल ने तथ्यों के विपरीत मेडिकल रिपोर्ट कोर्ट में जमा करवाई थी। उसी के आधार पर अभियुक्त अंतरिम जमानत लेने में सफल रहा। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायधीश सुब्रमण्यम प्रसाद ने अपने निर्णय में यह कहा कि जेल अस्पताल किसी भी सजायाफ्ता कैदी या विचाराधीन बंदी की मेडिकल रिपोर्ट बनाते समय स्पष्ट रूप से बीमारी के बारे में विस्तृत जानकारी दें। बीमारी कब से है, जांच रिपोर्ट में क्या कहा गया है, चिकित्सीय परीक्षण किस तरह हुआ है, बीमारी के उपचार के बारे में डाॅक्टरों की राय भी स्पष्ट एवं सामान्य भाषा में लिखी होनी चाहिए। उच्च न्यायालय ने कहा है कि मेडिकल रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि बीमारी का इलाज क्या है, सामान्य तौर पर जेल के अस्पताल में इलाज हो सकता है कि नहीं। यदि कोई आपात स्थिति है तो यह भी उल्लेख किया जाना चाहिए कि यह किस किस्म की आपात स्थिति है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि किसी कैदी या बंदी को इलाज के लिए बाहर के किसी अस्पताल में भेजने की आवश्यकता हो तो उसकी मेडिकल रिपोर्ट में सामान्य और समझ में आने वाली भाषा में यह लिखा होना चाहिए कि उपचार क्या होना है। यह भी पता होना चाहिए कि क्या बीमारी का इलाज परंपरागत मेडिकल प्रबंधन के जरिए होना है या उसके लिए ऑपरेशन जरूरी है, यदि ऑपरेशन होना है तो किस तरह का है। यदि कोई ट्यूमर या गांठ है तो क्या वह कैंसरस है या कुछ और। यदि आगे कोई जांच होनी है तो यह जांच किस प्रकार की है। क्या इसे जेल के अस्पताल में नहीं किया जा सकता। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि किसी भी कैदी या बंदी की मेडिकल रिपोर्ट अपुष्ट या अस्पष्ट है तो उस पर अंतिम फैसले के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in