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सप्ताह की सुर्खीः परिसीमन से बदल जाएगी जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सूरत

डॉ. प्रभात ओझा इस सप्ताह जम्मू-कश्मीर के नेताओं की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठक सर्वाधिक चर्चा में रही। इसी के साथ दुनिया ने जो बड़ी बात देखी, वह बैठक के वक्त सूबे का हिंसा अथवा बंद आदि से दूर रहना है। इसके पहले हर बातचीत के वक्त अलगाववादी संगठनों की ओर से राज्य में बंद अथवा हड़ताल का आह्वान होता रहा है। सच यह है कि राज्य के लोग अमन चैन और राज्य में पर्यटन, व्यापार आदि के ठप होने से परेशान हो उठे हैं। वे किसी भी हाल में व्यापारिक गतिविधि शुरू होते देखना चाहते हैं। इसीलिए सूबे के नेताओं के साथ आम लोगों को भी प्रधानमंत्री के आवास पर हुई बैठक से उम्मीदें बंधी हैं। ध्यान देने की बात बैठक में आया वह सूत्र है, जिसमें विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की बात कही गयी है। प्रधानमंत्री ने बैठक में कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन तेज गति से होना चाहिए ताकि चुनाव हो सकें। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट किया है, “संसद में राज्य का दर्जा बहाल करने का जो वादा किया गया था, उसकी दिशा में परिसीमन की प्रक्रिया और शांतिपूर्ण चुनाव महत्वपूर्ण चरण हैं।” बैठक के बाद बाहर आए 14 नेताओं में से भी अधिकतर ने बैठक में परिसीमन की चर्चा का जिक्र किया। आखिर यह परिसीमन क्या है, जिसे जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक प्रक्रिया के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। असल में, परिसीमन का मुख्य उद्देश्य देश के सभी नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अधिकार दिया जाना है। इसके जरिए पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजन के बाद पैदा राजनीतिक असंतुलन खत्म करने में मदद मिलेगी। जम्मू और लद्दाख के लोगों की यह बराबर शिकायत रही है कि आबादी के हिसाब से उन्हें जम्मू-कश्मीर विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। प्रधानमंत्री आवास पर हुई बैठक के समय भी जम्मू से आवाज उठी कि वार्ता में उनका प्रतिनिधित्व भी होना चाहिए था। बहरहाल, जब इस राज्य के दो केंद्रशासित प्रदेश बन चुके हैं, जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की चर्चा हो रही है। समझना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की बात क्यों हो रही है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के निर्धारण के लिए संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत केंद्र सरकार की ओर से प्रत्येक जनगणना के पश्चात परिसीमन आयोग का गठन करने का प्रावधान है। ज्ञातव्य है कि अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को खत्म कर दिया गया। फिर, 31 अक्तूबर, 2019 से जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बन चुके हैं। अब परिसीमन आयोग ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019’ के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करेगा। ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019’ की धारा 60 के अमल में आने पर इस नए केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 हो जाएगी। जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजन के पहले राज्य विधानसभा में 111 सीटें थीं। इनमें 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए सुरक्षित हैं। बाकी 87 सीटों में से कश्मीर घाटी में 46 सीटें और जम्मू में 34 सीटें हैं। दूसरे केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में 4 सीटें पड़ती हैं। फिलहाल जम्मू कश्मीर में चुनाव योग्य 83 सीटें हैं। गणना और आकलन बताते हैं कि परिसीमन के बाद ये 90 हो जाएंगी। इनमें से अधिक सीटें जम्मू वाले हिस्से को मिल सकती हैं। इससे घाटी के मुकाबले जम्मू को भी उसका हक मिलने की बात कही जा रही है। हालांकि यही डर घाटी वालों को है कि एक विशेष क्षेत्र और समुदाय को पहले के मुकाबले अधिक प्रतिनिधित्व मिल जाने से नई विधानसभा का स्वरूप काफी बदल जायेगा। जो भी हो, केंद्र ने परिसीमन की तैयारी कर ली है। केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में भी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए आयोग का गठन कर दिया गया है। उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई इस परिसीमन आयोग की अध्यक्ष हैं। वह एक वर्ष या अगले आदेश तक आयोग की अध्यक्षता करेंगी। उम्मीद है कि कम से कम जम्मू कश्मीर में चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का काम इस निश्चित समय में ही हो जायेगा। केंद्र सरकार यही तो चाहती है। अलग बात है कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज्य के लिए विशेष दर्जे की वापसी नहीं होने पर चुनाव से अलग रहने की घोषणा कर दी है। यह समय बताएगा कि इस अभियान में महबूबा के साथ कोई आता भी है अथवा नहीं। हिन्दुस्थान समाचार

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