
आश्चर्य की सीमा नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति की छलाँग बालि ने लगाई, उसे लगाने में बड़े-बड़े योगी जन भी असमर्थ सिद्ध हुए हैं। यही चातुर्य का सदुपयोग है। जिस चतुराई से चतुर्भुज मिले, भला ऐसी चतुराई में क्या हानि। चातुर्य तो वहाँ विनाश का कारण बनता क्लिक »-www.prabhasakshi.com