gujarat-high-court-takes-corona-crisis-into-consideration-next-hearing-on-15th
gujarat-high-court-takes-corona-crisis-into-consideration-next-hearing-on-15th

गुजरात हाई कोर्ट ने कोरोना संकट को संज्ञान में लिया, अगली सुनवाई 15 को

अहमदाबाद,12 अप्रैल (हि. स.)। राज्य में कोविड -19 की स्थिति संभालने में स्वास्थ्य विभाग की कथित विफलता की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार की ओर से महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने राज्य में कोविड से बचाव और इलाज के बेहतर प्रबंध के बारे में कोर्ट को आश्वस्त किया। इस पर न्यायालय ने गंभीर टिप्पणी की कि हमें नहीं, आम लोगों को भरोसा दिलाने की जरूरत है। ऑनलाइन सुनवाई में राज्य के मुख्य सचिव अनिल मुकीम, स्वास्थ्य विभाग के सचिव डॉ जयंती रवि और स्वास्थ्य आयुक्त जयप्रकाश शिवहरे भी शामिल हुए। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति भार्गव डी करिया की बेंच ने सरकार के पक्ष रखने के बाद, अगली सुनवाई के लिए 15 अप्रैल की तिथि तय की। महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि सामान्य परिस्थितियों में रेमडेसिवर इंजेक्शन की आवश्यकता नहीं है। फिर भी होम आइसोलेशन में भी रोगियों को रेमडेसिवर इंजेक्शन की सलाह दी जा रही है। गुजरात की तुलना में, महाराष्ट्र में केवल 2 कंपनियां यह इंजेक्शन बनाती हैं, लेकिन वहांं लंबी लाइनें नहीं हैं। महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने कहा कि देश में प्रतिदिन 1 लाख,75 हजार इंजेक्शन की आवश्यकता है। अकेले गुजरात सरकार को एक दिन में 30 हजार इंजेक्शन मिलती हैं।इस समय हर दिन 1 लाख.25 हजार परीक्षण भी किए जाते हैं। निजी प्रयोगशालाओं में भी वृद्धि की गई है और 70 हजार आरटीपीसीआर परीक्षण किए गए हैं। राज्य सरकार के प्रयासों से, झायडस कंपनी ने उपचारात्मक इंजेक्शन की कीमतों में भी कमी की है। कुल 141 निजी अस्पतालों को कोविड अस्पताल के रूप में अनुमोदित किया गया है। कई नर्सिंग होम्स को भी कोविड केयर सेंटर में बदल दिया गया है। एक दिन में, 1 हजार 087 बेड वाले कोविड केंद्र स्थापित किए गए हैं। हॉस्टल में भी कोविड केंद्र बनाए गए हैं। गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है, जहाँ 70 प्रतिशत ऑक्सीजन स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आरक्षित है। जबकि वर्तमान में पूरे गुजरात में 17 हजार से अधिक बेड खाली हैं। महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने यह भी बताया कि जूनागढ़ का आयुर्वेदिक डॉक्टर कोरोना रोगियों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर 21 दिनों में एंटीबॉडी बनाने में सफल हुआ है। इस तरह हमें किसी राज्य से तुलना करने की आवश्यकता नहीं है। इस पर उच्च न्यायालय ने सवाल किए कि गुजरात के इतने आधुनिक होते हुए भी यह स्थिति क्यों है। आम आदमी को तीन दिन में परीक्षण की रिपोर्ट क्यों मिलती है। वीआईपी को जल्द परिणाम मिलते हैं। आम लोगों को जल्द परिणाम क्यों नहीं मिलते हैं। सुनवाई में, उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल 50 प्रतिशत कर्मचारियों को कार्यालय में बुलाया जाना चाहिए। कर्फ्यू के दौरान ढील दी जा रही है। रात्रि कर्फ्यू लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि शादी और दफन को छोड़कर सभी कार्यक्रमों पर रोक लगाई जानी चाहिए। एक शादी के अवसर पर 100 लोगों की अनुमति को और कम करें। कॉर्पोरेट क्षेत्र में और निजी क्षेत्र में भी कर्मचारियों को कम करें। गुजरात उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यदि आप चुनाव के समय बूथों के अनुसार प्रबंधन करते हैं, तो कोरोना में बूथवार प्रबंधन क्यों नहीं हो सकता है? उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की "जो कोई कोविड 19 के ऐसोपी का अनुपालन नहीं करता है, उसे कोविड केंद्र भेजा जाना चाहिए।" उच्च न्यायालय ने कहा, "लोगों को आश्वस्त करें कि सरकार हमारे लिए काम कर रही है। वर्तमान में, लोगों को सरकार पर भरोसा नहीं है।" हमें इस कष्ट के साथ रहना है, इसलिए परीक्षण केंद्रों को बढ़ाएं। सरकार बहुत काम करती है लेकिन सही दिशा में काम करती है, इस बारे में लोगों को विश्वास दिलाएं । हमें अच्छा महसूस न कराएं, लोगों को अच्छे परिणाम दें। इस संबंध में, उच्च न्यायालय ने कहा कि पिछले पांच-छह दिनों से, समाचार पत्र राज्य की बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति को कवर कर रहे हैं। समाचार उन गंभीर मामलों की ओर इशारा करते हैं, जिन्हें नजअंदाज नहीं किया जा सकता है। अब अदालत के हस्तक्षेप का समय है। गुजरात राज्य अब चिकित्सा संकट के कगार पर है और अगर जल्द ही कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। हिन्दुस्थान समाचार/हर्ष/पारस / प्रभात ओझा

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in