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गोरखपुर : चीन-थाईलैंड पहुंचाई जाती है तस्करी के कछुओं की खेप

गोरखपुर, 16 जून (हि.स.)। कछुए की तस्करी का जाल उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से लेकर बिहार, बंगाल, असम आदि राज्यों तक फैला है। इन राज्यों से कछुओं की तस्करी करके बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया और चीन आदि देशों में भेजा जाता है। पुलिस अब न सिर्फ इनके विभिन्न राज्यों से जुड़े संबंधों को खंगालने का मन बना रही है बल्कि इनकी विदेशी धरती से जुड़े तार को भी ढूंढ रही है। रेलवे पुलिस ने मंगलवार को गोरखपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर 09 पर कछुए की तस्करी करने वालों को धर-दबोचा। पहले तो पुलिस को देखकर एक महिला समेत चार लोग भागने लगे लेकिन उन्हें दौड़ाकर पकड़ा गया। इनके पास कई गठरियां मौजूद थीं। पुलिस ने जब गठरियों को खोलकर देखा तो दुर्लभ प्रजाति के 46 कुछए बरामद हुए। पुलिस के मुताबिक एक-एक कछुओं का वजन करीब 15 से 20 किलो है। पुलिस अब इनके विदेशी कनेक्शन ढूंढने में जुटी है। इस तस्करी में महिलाओं का अहम रोल बताया जा रहा है। जीआरपी की गिरफ्त में आये चार तस्करों से मिल रही जानकारियां यह बताने को काफी हैं कि इनका जाल सिर्फ भारत के विभिन्न राज्यों तक ही नहीं सिमटा है, बल्कि विदेशी धरती से भी इसके तार जुड़े हैं। यहां तक कि चीन में भी इन कछुओं की खेप पहुंचाई जाती है। कछुओं की मिलती है मुंह मांगी कीमत जगदीशपुर, अमेठी के रहने वाले पकड़े गए आरोपितों में सलीम, छविलाल, राकेश और जत्थी देवी ने पुलिस की पूछताछ में बताया कि वह लोग अमेठी व आसपास के इलाकों से कछुओं की तस्करी करके बंगाल ले जाकर बेचते हैं। इसके लिए उन्हें मज़दूरी के अलावा अलग से धनराशि मुहैया कराई जाती है। कहते हैं जानकर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर अनुपम अग्रवाल ने बताया कि दुर्लभ प्रजाति के इन कुछओं का इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवाएं बनाने में किया जाता है। साइड के हिस्सों की कीमत बंगाल व त्रिपुरा में 5 से 8 हजार रुपये प्रति किलो है, जबकि थाईलैंड, बंगलादेश, मलेशिला व चीन में इसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपये प्रति किलो मिल जाती है। हेरिटेज फाउंडेशन के ट्रस्टी ने कहा हेरिटेज फाउंडेशन के ट्रस्टी अनिल कुमार त्रिपाठी ने बताया कि भारतीय सॉफ्ट शेल कछुआ (निल्सोनिया गंगेटिका) या गंगा सोफ्टशेल प्रजाति का कछुआ, गंगा और सिंधु सरीखी नदियों में पाया जाता है। यह तालाब या पोखरे में नहीं पाया जाता। कमजोर कछुआ 94 सेमी. (37 इंच) तक की लंबाई तक पहुंचता है। यह ज्यादातर मछली, उभयचर, कैरियन और जलीय पौधों को भोजन के रूप में ग्रहण करता है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक में सूचीबद्ध जानवरों के कब्जे में 3 से 7 साल तक की कैद हो सकती है। 337 कछुओं के साथ 10 तस्करों की 2018 में हुई थी गिरफ्तारी नवम्बर, 2018 में पूर्णिया (बिहार) में इंडियन सॉफ्ट शेल्ड प्रजाति के कछुओं की दो खेप पकड़ी गई थी। इनमें 337 कछुए बरामद हुए थे। इन कछुओं का वजन दो से लेकर 30 किलोग्राम तक था। इस काम में शामिल 10 तस्करों को गिरफ्तार किया गया था। बोले डीएफओ डीएफओ गोरखपुर अविनाश कुमार ने बताया कि गंगा बेसिन में पाए जाने वाले सॉफ्ट शेल्ड कछुओं के कवच और हड्डियों से शक्तिवर्द्धक दवा बनाए जाने की बात सामने आ रही है। इसके मांस की भी मुंहमांगी कीमत मिलती है, इसलिए इनकी तस्करी हो रही है। हिन्दुस्थान समाचार/आमोद/सुनीत

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