गहलोत सरकार आंकड़ों के गणित से हावी तो भाजपा वेट एंड वॉच की मुद्रा में
गहलोत सरकार आंकड़ों के गणित से हावी तो भाजपा वेट एंड वॉच की मुद्रा में

गहलोत सरकार आंकड़ों के गणित से हावी तो भाजपा वेट एंड वॉच की मुद्रा में

जयपुर, 25 जुलाई (हि. स.)। राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पर मंडराए सियासी संकट में अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आंकड़ों की अंकगणित के लिहाज से हावी होने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि विपक्षी भारतीय जनता पार्टी अपने पक्ष के आंकड़ों को लेकर वेट एंड वॉच की मुद्रा में है। पहले सचिन पायलट खेमे से टकराव और अब सत्र बुलाने की मांग पर राजभवन से मतभेदों के बीच सरकार जल्द से जल्द अपने आंकड़े सामने लाकर खुद को सुरक्षित करने का जुगाड़ लगा रही है। 200 विधायक सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत के लिए 101 विधायकों का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ 19 विधायक नाराजगी जताकर अज्ञातवास पर जा चुके हैं। ऐसे में अभी 107 में से 88 विधायक सरकार के साथ है। गहलोत 10 निर्दलीय, भारतीय ट्रायबल पार्टी के 2 और राष्ट्रीय लोकदल व कम्युनिस्ट पार्टी के 1-1 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं। यह आंकड़ा 102 बैठता है। अगर 19 विधायकों की सदस्यता गई तो अगर बागी सचिन पायलट और समर्थित 19 विधायकों पर अयोग्यता की तलवार लटकी तो विधानसभा में 181 विधायक रह जाएंगे। ऐसे में बहुमत के लिए 91 विधायकों का समर्थन जरुरी होगा। पायलट और समर्थित विधायक कांग्रेस के हैं, इसलिए कांग्रेस से इनके निकलने के बाद गहलोत सरकार के पास 88 विधायक बचेंगे, जबकि भारतीय जनता पार्टी के पास राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के 3 विधायक मिलाकर 75 विधायक है। ऐसी स्थिति में विधानसभा में 13 निर्दलीयों, बीटीपी व सीपीएम के 2-2 तथा रालोद के 1 विधायक सरकार बनाने के लिए निर्णायक भूमिका में होंगे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दावा कर रहे हैं कि उन्हें 10 निर्दलीय, बीटीपी के 2 और रालोद व सीपीएम के 1-1 विधायकों का समर्थन हासिल है। ऐसे में गहलोत आसानी से बहुमत साबित कर लेंगे। अगर सभी निर्दलीय व क्षेत्रीय दलों के विधायक मिलकर भाजपा को समर्थन दे दें तो भाजपा का आंकड़ा 93 हो जाएगा, लेकिन ऐसा होना मुमकिन नहीं है। गहलोत सत्र बुलाने पर क्यों अड़े राजस्थान उच्च न्यायालय का अंतरित आदेश आने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग पर मुखर हुए हैं। असल में, सरकार को यह भी आशंका है कि सियासी राजकाज को मुद्दा बनाकर राज्यपाल राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं। यह आशंका इसलिए भी प्रबल हुई हैं, क्योंकि कैबिनेट की ओर से सत्र बुलाने की फाइल भिजवाने के घंटों बाद भी राजभवन से कोई मंजूरी जारी नहीं हुई। आंकड़ों का अंकगणित अभी गहलोत के पक्ष में है। उन्हें यह भी आशंका हो सकती है कि अगर विधायकों को होटल से मुक्त कर दिया गया और एक-दो विधायक इधर-उधर हो गए तो बहुमत में परेशानी पैदा हो सकती है। विधानसभा का सत्र आहूत होने पर पार्टियां व्हिप जारी करेंगी। कांग्रेस का व्हिप नहीं मानने पर पायलट व समर्थित 19 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द हो सकती है। अगर ये विधायक विधानसभा सत्र में आते भी हैं तो उन्हें न सिर्फ कांग्रेस सरकार का फेवर करना पड़ेगा, बल्कि कांग्रेस सरकार की ओर से पेश किए जाने वाले बिल पर सहमति भी देनी पड़ेगी। ऐसा नहीं करने पर उन्हें अयोग्य घोषित करने की कार्रवाई की जा सकेगी। पायलट और समर्थित बागी 19 विधायक अपनी सदस्यता बनाए रखने के लिए अगर लौटकर पार्टी में आ जाए तो उनकी विधायकी बच सकती है, लेकिन गुजरे दिनों में सीएम अशोक गहलोत व उनके बीच जिस तरह से बयानों के तीर चले हैं, उससे यह मुमकिन नहीं है। दूसरा रास्ता यह भी है कि पायलट अपने खेमे में विधायकों की संख्या बढ़ा लें तो वे अलग दल के रूप में मान्यता ले सकेंगे। वर्तमान स्थितियों में यह भी संभव नहीं लगता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगर पायलट खेमे के पक्ष में आता है तो पायलट खेमा विधायक पद से इस्तीफा देकर अयोग्यता से बच सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/संदीप/सुनीत-hindusthansamachar.in

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