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समलैंगिक शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती, केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट में दिया हलफनामा

- कहा- भारतीय कानून और पारिवारिक मान्यतायें सिर्फ एक पुरुष और एक महिला की शादी की पक्षधर नई दिल्ली, 25 फरवरी (हि.स.)। समलैंगिक शादियों की अनुमति देने के मामले पर केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि देश के कानून और सामाजिक मान्यताओं के लिहाज से समलैंगिकों के बीच वैवाहिक सम्बन्धों को मान्यता नहीं दी जा सकती है। भारतीय कानून और पारिवारिक मान्यतायें सिर्फ एक पुरुष और एक महिला की शादी को मान्यता देती हैं। केंद्र सरकार ने समलैंगिक वैवाहिक सम्बन्धों को मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा है कि धारा 377 को भले ही कोर्ट के आदेश के बावजूद अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया हो, लेकिन समलैंगिक लोग विवाह को अपने मूल अधिकार होने का दावा नहीं कर सकते हैं। सरकार का कहना है कि दो समलैंगिकों का एक साथ रहना और सेक्सुअल रिलेशन बनाना अलग-अलग बातें हैं। इसकी तुलना भारतीय सामाजिक परिवेश में परिवार नाम की इकाई से नहीं की जा सकती है। वैवाहिक संबंधों की कानूनी मान्यता तय करना विधायिका का काम है, न्यायपालिका को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। केंद्र सरकार ने याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। आज सुबह सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट से कहा था कि इस मामले में दायर सभी याचिकाओं पर आज जवाब दाखिल कर दिया जाएगा। जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में दिल्ली सरकार को भी पक्षकार बनाने की इजाजत दी है। अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे केंद्र सरकार के हलफनामे पर दो हफ्ते के अंदर प्रत्युत्तर दाखिल करें। 19 नवंबर, 2020 को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। 14 सितंबर, 2020 की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करने वाली याचिका का विरोध किया था। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमारी कानूनी प्रणाली, समाज और संस्कृति समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की मान्यता नहीं देता है। याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा ने दायर की है। याचिकाकर्ता की ओऱ से वकील राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा ने कहा है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 में समलैंगिक और विपरीत लिंग के जोड़ों में कोई अंतर नहीं बताया गया है। याचिका में संविधान के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि कानून एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को एक जोड़े के रूप में नहीं देखता है। एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी इच्छा वाले व्यक्ति से शादी करने की इच्छा को दबा कर रह जाते हैं। उन्हें अपनी इच्छा के मुताबिक शादी का विकल्प नहीं देना उनके साथ भेदभाव करता है। याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को भी विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बराबर अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि हिन्दू पुरुष की शादी हिन्दू महिला से ही हो सकता है। इसमें कहा गया है कि किसी दो हिन्दू के बीच शादी हो सकती है।समलैंगिक शादियों पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी कोई रोक नहीं है लेकिन समलैंगिक शादियों का दिल्ली समेत देश भर में कहीं नहीं होता है। याचिका में कहा गया है कि ये एक निर्विवाद तथ्य है कि शादी करने का अधिकार जीवन के अधिकार की संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है। शादी करने के अधिकार को मानवाधिकार चार्टर में भी जिक्र किया गया है। यह एक सार्वभौम अधिकार है और ये अधिकार हर किसी को मिलना चाहिए, भले ही उसकी समलैंगिक हो या नहीं। लैंगिक आधार पर शादी की अनुमति नहीं देना समलैंगिक लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है। हिन्दुस्थान समाचार/संजय

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