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पाकिस्तानी अखबारों सेः मौलाना साद की गिरफ्तारी से मचे उत्पात पर बुलानी पड़ी मंत्रिमंडल की बैठक

- सरकारी सस्ती चीनी के साथ महंगी वाली भी हुई बाजारों से गायब, रमजान का मजा पड़ा फीका नई दिल्ली, 14 अप्रैल (हि.स.)। पाकिस्तान से बुधवार को प्रकाशित अधिकांश समाचारपत्रों ने धार्मिक नेता मौलाना साद रिजवी की गिरफ्तारी के बाद उत्पन्न हालात की समीक्षा करने के लिए मंत्रिमंडल की बैठक बुलाए जाने की खबरें काफी प्रमुखता से प्रकाशित की हैं। अखबारों का कहना है कि मंत्रिमंडल की बैठक में स्थिति की समीक्षा की गई है और देशभर में मौलाना के समर्थकों के जरिए किए जा रहे धरना-प्रदर्शनों और तोड़फोड़ का कड़ाई से विरोध किया गया है। मौलाना साद समेत कई अन्य धार्मिक नेताओं पर कत्ल का मुकदमा दर्ज किए जाने की भी खबर भी अखबारों ने दी है। अखबारों ने प्रधानमंत्री इमरान खान का मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान दिए गए भाषण का कुछ अंश प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि किसी को भी देश के अमन-शांति से खेलने की इजाजत नहीं दी जाएगी। उनका कहना है कि हम बात कर रहे थे और वह रैली करने की तैयारी कर रहे थे। उनका कहना है कि मौलाना की मांगों को संसद में रखा जाएगा। इस हंगामे के दौरान सैकड़ों लोग जख्मी हुए हैं और पुलिस के साथ-साथ शहरी भी कई लोग मारे गए हैं। दर्जनों गाड़ियों और सरकारी इमारतों को भी नुकसान पहुंचाया गया है। अखबारों ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के उस बयान को भी प्रमुखता दी है जिसमें उन्होंने कहा है कि विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को वोट डालने का अधिकार दिए जाने की तैयारी की जा रही है। उनका कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से वोट डालने का काम शुरू होने के बाद विदेशों में रहने वाले नागरिकों को भी वोट डालने में आसानी हो जाएगी। अखबारों ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो-बाइडेन का एक बयान अमेरिकी अखबारों के हवाले से प्रकाशित किया है जिसमें कहा गया है कि अमेरिका 11 सितंबर से अफगानिस्तान में तैनात अपने सैनिकों को हटाने का काम शुरू कर देगा। अखबार का कहना है कि जो-बाइडेन का यह बयान अफगानिस्तान में चल रही अमन बहाली की प्रक्रिया के संदर्भ में ही देखा जा रहा है। अखबारों ने पाकिस्तान में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकार की तरफ से रमजान में बाजारों में भीड़ नहीं किए जाने के फैसले को सख्ती से लागू किए जाने की खबरें दी है। अखबारों का कहना है कि राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए हैं कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा घरों में ही रहने के लिए बाध्य किया जाए और बिना वजह घरों से निकलने वालों का चालान काटा जाए। यह सभी खबरें रोजनामा औसाफ, रोजनामा जिन्नाह, रोजनामा नवाएवक्त, रोजनामा खबरें, रोजनामा पाकिस्तान और रोजनामा जंग ने अपने पहले पृष्ठ पर प्रकाशित की हैं। रोजनामा खबरें ने यह खबर काफी अहमियत से प्रकाशित की है जिसमें बताया गया है कि पाकिस्तान में कल रमजान का चांद नजर आते ही बाजारों से महंगी चीनी भी गायब हो गई है। अखबार का कहना है कि रोजेदार शरबत और चाय से भी महरूम हो हो गए हैं और दुकानदारों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। अखबार का कहना है कि बाजार में सरकार की तरफ से उपलब्ध कराई गई सस्ती चीनी का तो अता-पता ही नहीं है बल्कि जो महंगी चीनी भी मौजूद थी, वह भी अब आसानी से उपलब्ध नहीं है। अखबार का कहना है कि पाकिस्तान में पिछले 15-20 दिनों से चीनी की किल्लत हो रही है लेकिन रमजान आते ही बाजारों से चीनी गायब होने से आम लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। रोजनामा पाकिस्तान ने धार्मिक नेता मौलाना साद रिजवी की गिरफ्तारी के बाद जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के लीडर मुफ्ती किफायतुल्लाह को गिरफ्तार किए जाने की खबर दी है। अखबार का कहना है कि पीडीएम अध्यक्ष मौलाना फजलुर्रहमान के साथी मुफ्ती किफायतुल्लाह को उनके घर से पुलिस ने गिरफ्तार किया है। अखबार का कहना है कि इमरान खान सरकार के मंत्रिमंडल ने सरकार के खिलाफ बोलने के आरोपों में मौलाना को गिरफ्तार किए जाने का फैसला लिया था। मौलाना पिछले 2 महीने से कहीं छिपे हुए थे लेकिन अब उनके सामने आने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। रोजनामा जंग ने के अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी का एक बयान काफी अहमियत से प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने रमजान के पवित्र महीने का हवाला देते हुए तालिबान से अफगानिस्तान में जंगबंदी की अपील की है। राष्ट्रपति गनी का कहना है कि तालिबान को पवित्र रमजान माह के दौरान लड़ाई को बंद कर देना चाहिए और अफगानिस्तान में चल रही शांति प्रक्रिया की बहाली के लिए काम करना चाहिए। हालांकि तालिबान की तरफ से राष्ट्रपति अशरफ गनी की इस अपील के बारे में कोई जवाब नहीं दिया गया है। रोजनामा औसाफ ने भारतीय मूल की महिला के संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के उम्मीदवार बनने की खबर काफी महत्व के साथ प्रकाशित की है। संयुक्त राष्ट्र संघ का हिस्सा बनने वाली अरोड़ा आकांक्षा की गिनती संयुक्त राष्ट्र के बड़े लीडरों में होती है। उनका कहना है कि मुझे अपनी नौकरी के 2 साल की मुद्दत में ही महसूस होने लगा था कि यह संगठन लोगों की मदद करने में नाकाम साबित हो रहा है। जनवरी 2018 में उन्होंने फैसला लिया कि इस संगठन में परिवर्तन के लिए इसका नेतृत्व करने से बेहतर कोई रास्ता नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब वह संयुक्त राष्ट्र संघ के अगले महासचिव के पद की रेस में शामिल हैं। अगर वह चालू वर्ष के अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के पद के लिए कामयाब हो जाती हैं तो इन्हें दो सम्मान हासिल हो जाएगा। पहला यह कि वह इस पद पर आने वाली सबसे कम उम्र की उम्मीदवार होंगी। दूसरे वह संयुक्त राष्ट्र संघ का नेतृत्व करने वाली पहली महिला महासचिव बन जाएंगी। हिन्दुस्थान समाचार/एम ओवैस/मोहम्मद शहजाद

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