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डीयू डिजिटल इंडिया का पावर हाउस है: निशंक

- 'पैकेज के बजाये पेटेंट पर फोकस' करने का मंत्र - डीयू ने कोविड के बावजूद पिछले पांच सालों में सर्वाधिक 670 पीएचडी डिग्री दी - भगत सिंंह और उनके साथियों को जहां रखा गया, वह 'वाइस रीगल लॉज' देश का तीर्थ स्थल है नई दिल्ली, 27 फरवरी (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया अभियान’ से प्रेरित दिल्ली विश्वविद़यालय (डीयू) कोरोना की चुनौती के बीच वर्ष भर ऑनलाइन शैक्षणिक कार्यों के बाद 1 लाख 78 हजार 719 विद़यार्थियों को ‘डिजिटल डिग्री’ प्रदान करने वाला देश का पहला संस्थान बन गया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने शनिवार को डीयू के 97वें दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि यह बात कही। केंद्रीय शिक्षा मंत्री निशंक ने डिग्री के बाद मोटी रकम वाली नौकरी पाने की मानसिकता को बदलने का आह्वान करते हुए कहा कि एक समय था जब देश में इस बात की होड़ लगी हुई थी, लेकिन आज समय बदल गया है। ऐसे में भारत को पूरी दुनिया में अपने आप को सिद्ध करने के लिए पेटेंट हासिल करने की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि जिस दिन टैलेंट को कंटेंट से जोड़ा जाएगा, तो उससे पेटेंट निकलेगा। उन्होंने डिग्री प्राप्त करने वालों को शोध और अनुसंधान पर फोकस करने की सलाह देते हुए कहा कि दुनिया के 129 विश्वविद्यालय इस समय भारत के साथ शोध और अनुसंधान कर रहे हैं। ऐसा करके आप नौकरी पाने वालों की बजाये नौकरी देने वाले बन सकेंगे। केंद्र सरकार ने शोध के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन में पांच साल के लिए 50 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। निशंक ने प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया अभियान का उल्लेख करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय को डिजिटल इंडिया का पावर हाउस बताया। उन्होंने कहा कि एक बटन दबाकर 1 लाख 78 हजार से अधिक छात्रों को उनके ई-मेल पर डिग्री प्राप्त हो गई। यह इस बात का प्रमाण है कि डिजिटल इंडिया यहां से ही शुरू होता है। उन्होंने इसे असल प्रगति करार देते हुए कहा- 'असल में यही मेरा डिजिटल इंडिया है।' आजादी से पूर्व स्थापित दिल्ली विश्वविद्यालय को देश के संघर्ष का साक्षी बताते हुए निशंक ने वाइस रीगल लॉज (वर्तमान में डीयू कुलपति कार्यालय) को देश के तीर्थ स्थल की संज्ञा दी। उन्होंने कुलपति कार्यालय के प्रांगण में भूमिगत इमारत का जिक्र करते हुए कहा कि यह जानकर वे आश्चर्यचकित हुए कि यहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को रखा गया था। उन्होंने देश की आजादी के लिए कुर्बान होने वाले क्रांतिकारियों के तीर्थ स्थल को देखने का आहृवान किया। उन्होंने कहा कि जब तक वे इस तीर्थ के दर्शन नहीं कर लेते तब तक इस विश्वविद्यालय को न छोड़ें। उन्होंने विश्वविद्यालय में आजादी से पूर्व चलने वाली छात्र संसद को भी शुरू करने का आहवान किया। नई शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए निशंक ने कहा कि यह स्वर्णिम भारत की आधारशिला होगी। दिल्ली विश्वविद्यालय एक मिशन और जुनून के साथ इसका क्रियान्वयन करेगा। कोरोना काल में जहां दुनिया के देशों में स्वयं को एक वर्ष पीछे कर लिया, वहीं भारत ने घरों को ही स्कूल और कॉलेज में ऑनलाइन माध्यम से तब्दील कर दिया। सर्वप्रथम अणु कण का सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले महर्षि कणाद पर शोध करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आज देश को महान वैज्ञानिक कणाद के सूत्रों को जाने की आवश्यकता है। दिल्ली विश्वविद़यालय अब इस विषय पर शोध करेगा। इस मौके पर संघ लोक सेवा आयोग के चेयरमैन पीके जोशी विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे। हिन्दुस्थान समाचार/सुशील

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