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गौठान ग्रामों में यूकेलिप्टस की सूखी पत्तियों से मिलेगा सगंध व औषधीय तेल

कलेक्टर के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केंद्र का नवाचारी प्रयास बैकुंठपुर/रायपुर ,28 मार्च (हि.स.)। कोरिया जिला स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र में नीलगिरी की सूखी पत्तियों से भाप आसवन संयंत्र द्वारा तेल निकाला जा रहा है। कलेक्टर एसएन राठौर के मार्गदर्शन में केवीके द्वारा इस नवाचारी प्रयास के माध्यम से कृषकों के लिए आमदनी के नये रास्ते खुल रहे हैं। गौठान ग्रामों के आस-पास रोपित नीलगिरी की पत्तियों को कृषकों के द्वारा एकत्रित करवा कर तेल निष्कासन का कार्य किया जा रहा है। यूकेलिप्टस वृक्षारोपण स्थल पर नीचे गिरी सूखी पत्तियों को एकत्रित करके उनसे भाप आसवन संयंत्र से सगंध व औषधीय नीलगिरि तेल निकाला जा रहा है। दिनभर में एक क्विंटल तक सूखी पत्तियां एकत्रित कर ली जाती है। एक क्विंटल से करीब 700 से 800 ग्राम तेल प्राप्त हो रहा है। जिसका बाजार में मूल्य 1700-1800 रुपये है। तेल निकालने के उपरांत 01 क्विंटल सूखी पत्तियों से 500-600 रुपये अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है। आने वाले समय में नीलगिरी से प्राप्त तेल का उपयोग गौठान ग्रामों में सुगंधित अगरबत्ती बनाने, मॉस्क्टिो रेपेलेंट तरल, हस्तनिर्मित साबुन आदि सामग्री बनाने हेतु किया जाएगा। कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरएस राजपूत ने बताया कि नीलगिरी की 100 किलोग्राम पत्तियों का यदि स्टीम डिस्टलेशन किया जाए तो 700-800 ग्राम तेल प्राप्त होता है। इस तरह एक एकड़ क्षेत्रफल से 11-12 किलो ग्राम तेल प्रतिवर्ष प्राप्त होता है। नीलगिरी का तेल बाजार में 2500 से 3000 रुपये प्रति लीटर बिकता है। इस तरह एक एकड़ से किसानों को 27 से 30 हजार रुपये की सकल आय नीलगिरी के तेल से प्राप्त हो सकती है। स्टीम डिस्टलेशन के व्यय उपरांत भी कृषकों को 20-22 हजार रुपये की शुद्ध आमदनी प्राप्त हो सकती है। यूकेलिप्टस में छुपे हैं ये गुण भारत में यूकेलिप्टस प्रजाति ऑस्ट्रेलिया से आए म्यातेरेसी परिवार की है। यूकेलिप्टस पेड़ को एक संयंत्र के रूप विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए अभ्यस्त माना जाता रहा है। यूकेलिप्टस पत्ती से सगंध व औषधीय तेल, तना से लुगदी उद्योग, फर्नीचर तथा यूकेलिप्टस फूल को शहद उत्पादन के लिए नियोजित किया जा सकता है। नीलगिरी तेल सबसे महत्वपूर्ण वाष्पशील तेल में से एक है। तेल को नए और सूखे पत्तों से अलग किया जाता है। नीलगिरी तेल में जैविक प्रभाव, जीवाणुरोधी, एंटीवायरल और एंटी-फंगल सेगमेंट होते है और ठंड, फ्लू, अन्य श्वसन बीमारियों, राइनाइटिस और साइनसिसिस के प्रभाव के खिलाफ लंबे समय तक नीलगिरी तेल के उपयोग का इतिहास रहा है। दुनिया भर में प्राप्त रिपोर्ट की गणना अनुसार यूकेलिप्टस की पत्तियां जीवाणुरोधी और एंटीऑक्सिडेंट का गुण दिखाती है। भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रजातियों के यूकेलिप्टस में सगंध तेल एक अच्छा उत्पाद है। नीलगिरी तेल का वाणिज्यिक मूल्य की मात्रा से निर्धारित किया जाता है। भारत के नीलगिरि तेल में बीटा-इड्समॉल सबसे अधिक मात्रा में मौजूद है जो अन्य सभी देशों के यूकेलिप्टस प्रजाति में अनुपस्थित है। हिन्दुस्थान समाचार /केशव शर्मा

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