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डॉ. आंबेडकर ने दिया था संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव: चीफ जस्टिस बोबडे

नागपुर, 15 अप्रैल (हि.स.)। भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव दिया था। आंबेडकर को उम्मीद थी कि संस्कृत भाषा का दक्षिण राज्यों में भी विरोध नहीं होगा, लेकिन प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था। यह खुलासा सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायमूर्ति शरद बोबडे ने किया। प्रधान न्यायमूर्ति शरद बोबडे कल संविधान निर्माता बीआर आंबेडकर की 130वीं जयंती पर महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एमएनएलयू) के नागपुर में स्थित शैक्षणिक भवन के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। बोबडे ने कहा कि आंबेडकर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को अच्छी तरह समझते थे और यह भी जानते थे कि लोग क्या चाहते हैं। आंबेडकर को नमन करते हुए प्रधान न्यायमूर्ति ने कहा कि आज डॉ. आंबेडकर की जयंती है, जो मुझे याद दिलाती है कि बोलने के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली भाषा और काम के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के बीच का संघर्ष बहुत पुराना है। उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट को कई आवेदन मिल चुके हैं कि अधीनस्थ अदालतों में कौन सी भाषा इस्तेमाल होनी चाहिए पर मुझे लगता है इस विषय पर गौर नहीं किया गया है। प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने कहा, ‘लेकिन डॉ. आंबेडकर को इस पहलू का अंदाजा हो गया था और उन्होंने यह कहते हुए एक प्रस्ताव रखा कि भारत संघ की आधिकारिक भाषा संस्कृत होनी चाहिए। आंबेडकर की राय थी कि चूंकि उत्तर भारत में तमिल स्वीकार्य नहीं होगी और इसका विरोध हो सकता है। जैसे कि दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध होता है। लेकिन उत्तर भारत या दक्षिण भारत में संस्कृत का विरोध होने की कम आशंका थी और यही कारण है कि उन्होंने ऐसा प्रस्ताव दिया किंतु इस पर कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने भाषा के मुद्दे पर एक प्रस्ताव पेश किया, जिस पर कुछ मौलवियों, पुजारियों और स्वयं डॉ. आंबेडकर ने हस्ताक्षर किए थे। जस्टिस बोबडे ने कहा कि मैं यह नहीं जानता कि प्रस्ताव पर क्या हुआ। लेकिन यह संस्कृत को भारत संघ की आधिकारिक भाषा बनाने वाला था। यह प्रस्ताव अंततः पारित नहीं हुआ। इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, केंद्रीय मंत्री और नागपुर से सांसद नितिन गडकरी समेत अन्य कई लोगों ने वर्चुअल तरीके से कार्यक्रम में भागीदारी की। हिन्दुस्थान समाचार /

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