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नकारात्मक राजनीति के नुकसान

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री लोकतंत्र के प्रभावी संचालन में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन इसका सकारात्मक होना भी आवश्यक है। नकारात्मक विरोध अंततः विपक्ष की छवि को ही धूमिल बनाते है। इसका अपरोक्ष लाभ सत्ता पक्ष को ही मिलता है। यहां बात केवल संख्या बल तक ही सीमित नहीं है। स्वतन्त्रता के बाद कई दशक तक देश की राजनीति में कॉंग्रेस का वर्चस्व था। तब जनसंघ, सोशलिस्ट और बाद में भाजपा संख्या बल के हिसाब से बहुत कमजोर हुआ करते थे। एक समय यह भी था कि लोकसभा में भाजपा के मात्र दो सदस्य थे। लेकिन उसने अपने वैचारिक आधार को कभी कमजोर नहीं होने दिया। तब विपक्ष की दलीलें सरकार को बेचैन बनाती थी क्योंकि उनमें राष्ट्रीय हित की नसीहत हुआ करती थी। राष्ट्रीय संकट के अनेक पड़ाव आये, तब यही विपक्ष सरकार के साथ हुआ करता था। लेकिन विगत छह वर्षों में विपक्ष की राजनीति का आधार नकारात्मक ही रहा है। ये अपने संगठन की दम पर सरकार विरोधी एक भी आंदोलन या सत्याग्रह नहीं कर सके। हर समय ऐसा लगता रहा जैसे ये नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं कर सके है। इन्हें जहां भी नरेंद्र मोदी के विरोध का धुआं उठता दिखाई दिया, ये वहीं दौड़ गए। ऐसा करते समय अपनी मर्यादा या लाभ हानि पर भी विचार नहीं किया। असहिष्णुता व सम्मान वापसी से शुरू हुई यह राजनीति आज तक जारी है। कुछ दिन पहले कॉंग्रेस पर कथित रूप से टूल किट जारी करने का आरोप लगा था। इसमें कितनी सच्चाई थी, यह जांच का विषय हो सकता है। इसलिए टूलकिट को फिलहाल छोड़ देते हैं। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद जिस प्रकार की राजनीति हुई, उसके आधार पर क्या निष्कर्ष निकाला जाए। क्या सबकुछ सुनियोजित नहीं लगता, क्या भारत का विपक्ष पूरी दुनिया में बिल्कुल अलग दिखाई नहीं दे रहा था। क्या सरकार के विरोध की धुन में राष्ट्रीय सम्मान को धूमिल करने का जाने अनजाने प्रयास नहीं हुआ था। कोरोना से विकसित देशों को भारत के मुकाबले औसत अधिक नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन वहां के विपक्ष ने इसे राजनीति का अवसर नहीं माना। सेंट्रल विस्टा के निर्मांण को रोकने का ट्वीट अभियान चलाया गया। यह दिखाने का प्रयास हुआ कि सरकार का खजाना खाली है, इसलिए सेंटर विस्टा निर्माण का धन भी आपदा प्रबंधन में लगाना चाहिए। जबकि सरकार का कहना था कि इस निर्माण व कोरोना के बीच कोई संबन्ध नहीं है। सरकार के पास आपदा प्रबंधन के लिए धन की कोई कमी नहीं है। बाद में पता चला कि केंद्र सरकार के करीब दो दर्जन विभाग निजी भवनों में चलते हैं। अनेक भवन राजनीति के चर्चित लोगों के है। इनको हजारों करोड़ रुपये किराया मिलता है। सेंट्रल विस्टा बनने के बाद ये सभी कार्यालय वहीं शिफ्ट हो जाएंगे। इसलिए विरोध हो रहा था। सरकार को घेरने के लिए हरिद्वार कुंभ का मुद्दा उठाया गया। बाद में उजागर हुआ कि कुम्भ के कारण कोरोना नहीं फैला था। आपदा के पूरे दौर में कैसे कैसे ट्वीट किए गए। ऐसा करने वाले लोग स्वयं भी सत्ता में रह चुके है। तब उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाएं कितनी बढ़ा दी थी। प्रश्न केवल ऑक्सीजन व वेंटिलेटर तक सीमित नहीं था। इनके संचालन हेतु मैनपावर भी जरूरी था। ट्वीट करने वालों को बताना चाहिए कि उनके शासन में कितने मेडिकल कॉलेज खुले थे। इस मामले में नरेंद्र मोदी के सात वर्ष उन सभी पर भारी है। उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद जितने मेडिकल कॉलेज बने उससे करीब दुगुने योगी आदित्यनाथ सरकार के समय बनाये जा रहे है। वैक्सीन पर जमकर हंगामा किया गया। कॉंग्रेस शासित राज्यों को केंद्र से जितनी वैक्सीन मिली थी, उसका भी ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया। राजस्थान में बड़ी संख्या में वैक्सीन कचरे में फेंके गए। पंजाब सरकार पर निजी अस्पतालों को वैक्सीन बेचने के आरोप है। पंजाब में वैक्सीन का बड़ा घोटाला सामने आया है। वह डोज जिसे अठारह से चवालीस साल के आयु वर्ग के लिए चार सौ रुपए में खरीदा गया उसे एक हजार रुपए से अधिक प्रति डोज की दर से प्राइवेट अस्पतालों को बेचा गया था। छत्तीसगढ़ में भी वैक्सीन की हर तीन में से एक शीशी के बर्बाद होने का आंकड़ा है। विपक्ष के निशाने पर दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, केरल, राजस्थान, बंगाल सरकार निशाने पर नहीं थी। जबकि इन राज्यों की स्थिति सर्वाधिक खराब थी। अन्य गंभीर बीमारियों के वैक्सिनेशन के संबन्ध में कॉंग्रेस को अपना अतीत भी देखना चाहिए। पोलियो, स्मॉल पॉक्स,हैपेटाइटिस बी की वैक्सीन के लिए देशवासियों ने दशकों तक इंतजार किया था। इस गति से वैक्सिनेशन में चालीस वर्ष और लगते। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही वैक्सीनेशन के लिए मिशन मोड में काम किया। कॉंग्रेस के समय भारत में वैक्सीनेशन का कवरेज सिर्फ साठ प्रतिशत था। मोदी सरकार ने मिशन इंद्रधनुष को लॉन्च किया। छह वर्ष में वैक्सीनेशन कवरेज नब्बे प्रतिशत हो गया। नकारात्मक राजनीति के इस दौर में नरेंद्र मोदी के संबोधन ने सकारात्मक विचार को प्रोत्साहित किया। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव द्वारा वैक्सीन टीका लगवाना भी सकारात्मक कदम था। क्योंकि वैक्सीन पर भ्रम फैलाने में उनके उत्तराधिकारी भी किसी से कम नहीं थे। ये दोनों ही प्रकरण सकारात्मक सन्देश देने वाले थे। नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में पिछले कुछ समय से जारी नकारात्मक राजनीति का उल्लेख किया। ऐसा करने वालों ने हर कदम पर भ्रम फैलाया। ऑक्सीजन से लेकर वैक्सिनेशन तक इसके दायरे में थे। लेकिन इन बातों को पीछे छोड़ते हुए नरेन्द्र मोदी ने सभी राज्यों में वैक्सिनेशन व गरीबों को राशन वितरित करने का संकल्प दोहराया। यह उनके सकारात्मक रुख की अभिव्यक्ति थी। संकट काल में सरकार कुछ अच्छा करे तो उसका समर्थन करना चाहिए। सरकारी मशीनरी चिकित्सकों आदि का उत्साह बढ़ाना चाहिए। इससे अंततः विपक्ष की छवि बेहतर बनती है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सका। अस्सी करोड़ गरीबों को निःशुल्क राशन देने का निर्णय सराहनीय था। अस्सी करोड़ लोगों को पहले आठ महीने राशन देना सामान्य बात नहीं थी। दूसरी लहर में भी यह योजना संचालित की गई है। विपक्ष को देखना चाहिए कि उसकी नकारात्मक राजनीति से देश की जनता प्रभावित नहीं है। वैक्सीन पर नकारात्मक राजनीति के बाद भी तेईस करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज दी जा चुकी है। गैर भाजपा मुख्यमंत्री भी नकारात्मक राजनीति में बहुत आगे थे। अपने प्रदेश के हित की जगह उन्हें यह परेशानी थी कि सफलता का श्रेय केंद्र सरकार को ना मिल जाये। इस कारण इन राज्यों में स्थिति बिगड़ी है। ये राज्य उचित व्यवस्था में विफल रहे। पूछा जाने लगा कि सबकुछ भारत सरकार ही क्यों नहीं तय कर रही। राज्य सरकारों को छूट क्यों नहीं दी जा रही। लॉकडाउन की छूट राज्य सरकारों को क्यों नहीं मिल रही है। वन साइज डज नॉट फिट फॉर ऑल की दलील दी गई। कहा गया कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है इसलिए इस दिशा में शुरुआत की गई। मोदी ने कहा कि केंद्र ने एक गाइडलाइन बनाकर राज्यों को दी ताकि वे अपनी सुविधा के अनुसार काम कर सकें। वैक्सीन आई तो शंकाओं आशंकाओं को बढ़ाया गया। जब से भारत में वैक्सीन पर काम शुरू हुआ, तभी से कुछ लोगों ने ऐसी बातें कहीं जिससे आम लोगों के मन में शंका पैदा हुई। कोशिश ये भी हुई कि वैक्सीन निर्माताओं का हौसला पस्त हो, बाधाएं आईं। भारत की वैक्सीन आई तो अनेक माध्यमों से शंका और आशंका को बढा़या गया। भांति भांति के तर्क प्रचारित किए गए। जो लोग वैक्सीन को लेकर आशंका और अफवाहें फैला रहे हैं,वो भोले भाले लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसी अफवाहों से सतर्क रहने की जरूरत है। देश वैक्सीनेशन को तेज गति से संचालित किया जाएगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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