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स्वाद के लिए जीव हत्या त्रासद

हृदयनारायण दीक्षित कोरोना महामारी के बाद अब बर्डफ्लू का संकट है। पक्षियों के मांस से खाना बनाने वाले तमाम होटलों का व्यापार घटा है। नए भोजन विशेषज्ञ पैदा हो रहे हैं। वह समाचार पत्रों में पक्षियों का मांस खाने की तरकीब बता रहे हैं कि एक खास डिग्री तापमान पर उबालने या भोजन बनाने से बर्डफ्लू का खतरा नहीं रह जाता है। उधर चिकित्सक चिड़ियों के मांस को खतरनाक बता रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के पक्षियों की बहुतायत वाले केन्द्र बन्द कर दिए गए हैं। पक्षियों के मांस में स्वाद खोजने वाले परेशान हैं। अण्डा खाने वाले भी डरे हुए हैं। मांस प्राकृतिक खाद्य नहीं है, लेकिन कुछ लोग इसे खाते हैं। खानपान निजी चयन होता है। ये व्यक्ति का मौलिक अधिकार भी है कि वह क्या खाय? तो भी प्रकृति किसी-न-किसी रूप में नुकसानदेह खाद्य पदार्थों की ओर मनुष्य का ध्यान आकर्षित करती रहती है। बर्डफ्लू ऐसी ही बीमारी है। कटी चिड़ियाँ को देखना हृदयविदारक है। कई अवसरों पर मैंने अपनी गाड़ी में ही बैठे-बैठे सड़क के किनारे पक्षियों को कटते देखा है। उस रात नींद नहीं आई। खून से लथपथ चिड़ियाँ पंख फड़फड़ा रही थीं। संवेदनशील लोगों के लिए ऐसा दृश्य देखना भी बहुत कठिन है। हम चिड़ियों को चहकते हुए देखते रहे हैं। गाँव में हमारे कच्चे घर की मुड़ेर पर बैठी चिड़ियाँ बार-बार हमारी ओर देखती थीं। हाथ उठाते वे उड़ जाती थी। अब मैं विधानसभा अध्यक्ष हूँ। घर के भीतर लगे बड़े-बड़े वृक्षों पर ढेर सारी चिड़ियाँ आती हैं। उनका कलरव मोहित करता है। उन्हें देखना अपने आप में आनंद का विषय है। गाँव में गौरैया थीं। सरकारी आवास वाले घर में सैकड़ों चिड़ियाँ कूदती हैं, फुदकती हैं, गीत गाती हैं, नृत्य करती हैं। उनके पंखों के रंग बार-बार मन को सहलाते हैं। कुछ चिड़ियाँ अपने मुंह में दाना भी भर लाती हैं और अपने छोटे बच्चों को खिलाती हैं। चिड़ियों के बच्चे बड़े प्यारे लगते हैं। संभवतः दाना लाने वाली चिड़ियाँ बच्चों की माता हो सकती हैं। बच्चे मुंह खोलते हैं और दाना डाल देती हैं। अपने यहाँ कहावत भी है कि दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। चिड़ियाँ खाने के लिए नहीं हैं। उनका अपना जीवन चक्र है। वह भी इसी प्रकृति का भाग हैं। उन्हें मारकर खाना त्रासद है। केवल स्वाद के लिए जीवों की हत्या घोर अन्याय है। वे फुदकते हुए, उछलते हुए, गीत गाते हुए आनंदमगन करती हैं। प्रकृति में प्रत्येक चिड़ियाँ और जीव को अपना जीवन चक्र पूरा करने का अधिकार है। उन्हें मारकर प्रकृति की जैव विविधता पर आक्रमण किया जाता है। प्रकृति कोप में आती है और बदला भी लेती है। संवेदनशीलता और करुणा के वास्तविक दर्शन मैंने बचपन में ही किए थे। चिड़ियों का एक व्यापारी बड़ा पिंजड़ा लिए हुए हमारे मोहल्ले में आया था। उसने हमारे माता-पिता से कहा कि हम पैसा या अन्न लेकर चिड़ियों को मुक्त करते हैं। हमारी माँ भावुक हुई। उन्होंने आधा किलो गेहूं दिए। उससे हाथ भी जोड़े कि इनको मारिए नहीं। छोड़ दीजिए। उसने अन्न के बदले पक्षी मुक्त कर दिये। उनका मुक्त होकर उड़ना प्रीतिकर लगा था। ऋग्वेद के एक मंत्र में ऋषि बाज पक्षी से प्रार्थना करते हैं कि “हे बाज हमारे घर की मुड़ेर पर बैठे सुंदर बोली बोलने वाले पक्षी को न मारो।” यहाँ संवेदनशीलता का चरम है। बाज पक्षी अपने से छोटी चिड़िया मार देता है। ऋषि उससे भी पक्षी संरक्षण की प्रार्थना करते हैं। सृष्टि को परमात्मा या प्रकृति ने बनाया है। ईश्वर आस्तिक मानते हैं कि सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई है। भौतिकवादी इसे प्रकृति का निर्माण कहते हैं। जो भी हो परमात्मा या प्रकृति ने ही सृष्टि में लाखों तरह के जीवों की रचना की है। प्रकृति गलती नहीं करती। प्रकृति का प्रत्येक अंश या जीव सुविचारित, सुनियोजित योजना का परिणाम है। उसकी रचना का कोई-न-कोई हेतु है। गोरैया व्यर्थ नहीं है। कौवा भी बेकार नहीं है। गिद्धों का भी उपयोग है। मोर का अपना आनंद है। पक्षी प्यार किए जाने योग्य है। प्रकृति को सहज, सरल और स्वभाविक रूप में देखने का वास्तविक दृष्टिकोण यही हो सकता है। जैसे हम पृथ्वी परिवार के अंश हैं वैसे ही सारे पशु और पक्षी भी हैं। दुनिया के तमाम देशों में लोग शाकाहार की तरफ बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिक अनुसंधानों में मांसाहार को तमाम रोगों का कारण बताया जा रहा है। यहाँ मांसाहार बनाम शाकाहार की बहस का प्रश्न नहीं है। मूलभूत प्रश्न है कि जैव विविधता को नष्ट होने से बचाना है। पशु-पक्षी पर्यावरण संतुलन में सहायक है। पक्षियों को आदर और सम्मान देने की दृष्टि से ही विष्णु का वाहन गरुण पक्षी है। कार्तिकेय देव का वाहन मोर है। शिव के गले में सांपों की माला है। यह सब जीवों और पशुओं के सहचर्य की ओर संकेत देता है। पक्षी दूर की यात्रा पर निकलते हैं। आकाश छूने का प्रयास करते प्रतीत होते हैं। भारत में अनेक पक्षियों के केन्द्र हैं। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में नवाबगंज में बहुत बड़ी झील में तमाम देशों के पक्षी आते हैं। उनके रंग, पंख, अंग, सुंदर होते हैं। हमारे जिज्ञासु मन में अनेक प्रश्न उठते हैं। किसने और किस लिए मोर के पंखों में अनेक तरह के रंग भरे हैं? किसने कबूतर को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की स्मृति और क्षमता भरी है? किसने बनाई छोटी-सी गोरैया? किसने प्यारा-सा कुत्ता बनाया? और किसने मुर्गे के सिर पर टोपी जैसी कलंगी लगाई और क्यों लगाई? किसने कौवा को चतुराई दी? किसने कोयल के कंठ में गीत भरे? किस शक्ति ने सभी पक्षियों को सूर्योदय के पहले ही जाग जाने और चहचहाने का अलार्म लगाया। यह सब अपने आप में विस्मयकारी है। इस विस्मय का आनंद प्रकृति के गूढ़ रहस्यों की ओर ले जाता है। आश्चर्य है कि कुछ लोग इस सुंदरता की हिंसा करते हैं। प्रकृति जैव विविधता कीट-पतिंग, पशु-पक्षी और मनुष्य परिवार के कारण ही आनंदित है। पक्षियों को मारकर प्रकृति का एक अंश घटाना उचित नहीं होगा। भारत के प्राचीन इतिहास में सभी जीवों के प्रति आदर रहा है। सभी जीवों के संरक्षण के प्रति भी सतर्कता रही है। यह सतर्कता धीरे-धीरे घट रही है। हम उन्हें अपने परिवार का अंग जानकर ही प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। (लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं।)-hindusthansamachar.in

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