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कोरोना संकटः स्थिति को संभालने की चुनौती

डॉ दिलीप अग्निहोत्री कोरोना संकट के पहले चरण पर बड़ी हद तक नियंत्रण स्थापित हुआ था। लेकिन यह सभी लोगों को पता था कि संकट समाप्त नहीं हुआ है। इसके बाबजूद प्रायः सभी स्तरों पर लापरवाही हुई। तब स्थिति को संभालने में लॉकडाउन भी कारगर साबित हुआ था। यह सही है कि देश की बड़ी आबादी को मुसीबतों का सामना करना पड़ा लेकिन इसका कोई विकल्प भी नहीं था। भारत जैसे विशाल आबादी में संक्रमण अधिक फैलने के दुष्परिणाम अधिक भयावह होते। किंतु ऐसा लगता है कि अनलॉक के पहले चरण से जो लापरवाहियां शुरू हुई वह निरन्तर बढ़ती गई। कहा जा सकता है कि इस दौरान चुनावी रैली न होती तो बेहतर था। इसके लिए सभी पार्टियों को सहमति बनानी चाहिए थी। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव टालने पर भी समय रहते निर्णय होना चाहिए था। इस मुद्दे का का दूसरा पहलू भी विचारणीय है। जहां चुनाव नहीं थे, वहां लोग कितने सजग थे। यह भी सही है कि बिना चुनाव के भी बाजारों में रैली जैसी ही भीड़ होती थी। यह नजारा अनलॉक की शुरुआत में ही दिखाई देने लगा था। होली के अवसर पर भी अनेक स्थानों पर छोटी-छोटी रैलियों जैसे ही दृश्य थे। यह लापरवाही आमजन से लेकर शासन-प्रशासन सभी स्तर पर थी। दो गज दूरी मास्क जरूरी ऐसा नारा बन गया, जिस पर अमल नहीं किया गया। निजी, पारिवारिक या सरकारी गैर सरकारी आयोजनों में भी आत्मसंयम का नितांत अभाव था। यह मान लिया गया कि कोरोना पहले जैसे रूप में वापस नहीं होगा। चिकित्सा के क्षेत्र में भी कोरोना के दृष्टिगत पहले जैसी सजगता नहीं रही। विपक्ष ने भी आपदा काल में अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया। कई विपक्षी नेता लॉकडाउन को गलत साबित करने में लगे थे। किसी ने कहा कि वह कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाएंगे क्योंकि यह भाजपा की वैक्सीन है। सभी विपक्षी नेता दिल्ली सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे थे। इनमें से किसी ने नहीं कहा कि कोरोना संकट समाप्त नहीं हुआ। इसलिए महीनों तक इतनी भीड़ बनाये रखना ठीक नहीं है। किसानों के नाम पर यहां लोगों का अनवरत आना-जाना लगा रहता था। इसी माहौल में गणतंत्र दिवस पर लाल किले के निकट भारी भीड़ ने उपद्रव किया। लापरवाही में कोई किसी से पीछे नहीं था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि विगत दिनों में होली, पंचायत चुनाव एवं कृषि कार्य में सहभागिता के दृष्टिगत प्रदेश में लोगों का आगमन बढ़ा है। परिणामस्वरूप कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि केंद्र व उत्तर प्रदेश की सरकारों ने पिछली बार आपदा प्रबंधन की मिसाल कायम की थी। विपक्षी नेताओं ने उस समय ताली थाली व दीप प्रज्वलन का मजाक बनाया था। लेकिन वह इसके पीछे को मनोविज्ञान को समझने में नाकाम थे। इसका कारण यह भी था कि आज किसी अन्य नेता के आह्वान का राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा प्रभाव हो भी नहीं सकता। नरेंद्र मोदी के आह्वान पर पूरे देश ने एकजुटता दिखाई थी। इसका कोरोना के विरुद्ध जंग में सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। उत्तर प्रदेश में सरकार के साथ-साथ सामाजिक संस्थाओं ने बेहतरीन कार्य किये थे। उत्तर प्रदेश में कोरोना का जब पहला केस आया था, तब प्रदेश में कोरोना टेस्ट की सुविधा नहीं थी। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में एक दिन में दो लाख अठारह हजार से अधिक कोरोना टेस्ट कर रहे हैं। यह देश में सर्वाधिक है। इस संख्या को हम लगातार बढ़ाने के लिए भी तत्पर हैं। आने वाले दिनों में राज्य सरकार लैब सुविधाओं की क्षमता को दोगुना तक करने जा रही है। संक्रमण की बढ़ती तीव्रता के क्रम में कोविड अस्पतालों में बेड की सुविधा के साथ ही ऑक्सीजन एवं वेण्टीलेटर सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है। प्रदेश सरकार कोविड मरीजों के लिए चार हजार से अधिक एम्बुलेंस की व्यवस्था कर रही है। प्रदेश सरकार लोगों को भी कोरोना के दृष्टिगत जागरूक कर रही है। इसके लिए सभी धर्म गुरुओं का सहयोग लिया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि धर्मगुरु सभी अनुयायियों एवं श्रद्धालुओं को जागरूक करते हुए लक्षित आयु वर्ग के अधिक से अधिक टीकाकरण के लिए प्रेरित करें। इस वैश्विक महामारी में योग एवं साधना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हम सभी भारत सरकार एवं राज्य सरकार के कोरोना प्रोटोकाॅल का अनिवार्य रूप से पालन करें। मास्क का निरन्तर उपयोग करें। जरूरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलें तथा व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष ध्यान दें। जाहिर है कि कोरोना संकट का यह दौर आरोप-प्रत्यारोप का अवसर नहीं है। इसमें पहले जैसी एकता व आत्मसंयम का परिचय देते हुए आगे बढ़ना है। कोरोना कमजोर पड़ा था, लेकिन समाप्त नहीं हुआ था। इस अवधि में जो लापरवाही हुई उसकी चर्चा दूर तक जाएगी। यह केवल बंगाल, केरल चुनाव तक सीमित नहीं रहेगी। चार महीने से अधिक समय तक राष्ट्रीय राजधानी में किसानों के नाम पर भीड़ जमा रही, प्रमुख बाजार, सामाजिक समारोह भी रैलियों से कम नहीं थे। इन सब पर आरोप-प्रत्यारोप से अच्छा होगा कि वर्तमान संकट का मुकाबला पिछली बार की तरह एकजुटता से किया जाए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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