दौलत बेग ओल्डी के पुनर्निर्माण का अभिमान है सूर्यकांत चाफेकर
दौलत बेग ओल्डी के पुनर्निर्माण का अभिमान है सूर्यकांत चाफेकर

दौलत बेग ओल्डी के पुनर्निर्माण का अभिमान है सूर्यकांत चाफेकर

नागपुर, 23 जुलाई (हि.स.)। चीन के साथ चल रहे मौजुदा संघर्ष में विश्व कि सबसे उंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी भारत के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है। नागपुर के एअर वाईस मार्शल (निवृत्त) सूर्यकांत चाफेकर ने इस एअर स्ट्रीप के पुनर्निर्माण में अहम भूमिका निभाई है। शौर्यचक्र से नावाजे गए चाफेकर ने 16 हजार 700 फिट कि उंचाई पर बनी इस हवाई पट्टी पर 31 मई 2008 को सफल लौंडिग की थी। चाफेकर के प्रयासों के चलते आज यह एअर फिल्ड एक्टिव है और वायुसेना के लिए बेहद उपयोगी साबित हुई है। मौजूदा हालात को देखते हुए चाफेकर ने कहा है कि उन्हें इस हवाई पट्टी के पुनर्निर्माण का अभिमान है। पूरी दुनिया को कोरोना महामारी के जरिए संकट की खाई में धकेलने वाले चीन ने विस्तारवादी नीति पर चलकर भारत के साथ बखेड़ा खड़ा कर दिया है। ऐसी संकट कि स्थिति में भारत के लिए सामरीक दृष्टि से दौलत बेग ओल्डी (उंचाई 16 हजार 700 फीट), फुकचे (14 हजार 500 फिट) और नियोमा (उंचाई 13 हजार 500 फीट) हवाई पट्टीयां बड़ी कारगर साबित हो रही है। इन एअर स्ट्रीप के जरिए आपातकालीन स्थिति में भारतीय जवान हजारों फीट की ऊंची पहाड़ियों पर उतरने में सक्षम है। इन तीनों हवाई पट्टियों में दौलत बेग ओल्डी विश्व की सबसे ऊंची हवाई पट्टी है। इस हवाई पट्टी को कार्यान्वित करने की योजना, प्रस्ताव और उसे क्रियान्वित करने का श्रेय नागपुर के एअर वाईस मार्शल (निवृत्त) सूर्यकांत चाफेकर को जाता है। इतना ही नहीं विश्व की सबसे ऊंची एअर स्ट्रीप पर एएन-32 जहाज से सफलतापूर्वक लैंडिंग के लिए उन्हें शौर्यचक्र से नवाजा गया है। दौलत बेग ओल्डी का महत्व: एअर वाईस मार्शल (निवृत्त) चाफेकर ने विश्व की सबसे ऊंची हवाई पट्टी का सामरीक महत्व समझाते हुए बताया कि यदि तकनीकि मापदंडों पर चलें तो हिमालय की ऊंची पहाड़ियों में स्थित दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी की 16 हजार 700 फीट कि उंचाई पर दुनिया का कोई भी प्लेन लैंड नहीं हो सकता। क्योंकि इतनी उंचाई पर ऑक्सीजन 40 फीसदी कम हो जाती है। नतीजतन इस हवाई पट्टी पर हवाई जहाज का इंजन बंद किया तो दुबारा शुरू नहीं होता। इसलिए यहा लैंडिंग के बाद फायटर प्लेन का इंजन शुरू रहता है तथा काम होने के तुरंत बाद प्लेन टेक-ऑफ होता है। चाफेकर ने बताया कि लैंडिंग के लिए हमे प्लेन की तकनीकी मर्यादाओं को लांघकर काम करना पड़ता है। इस एअर स्ट्रिप के चारो ओर ऊंची-ऊंची पहाड़ियां हैं। यह पूरा इलाका एक बाऊल (बर्तन) की तरह है। जिसके चलते यहा लैंडिंग और टेक-ऑफ करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है लेकिन मातृभूमि की सुरक्षा के लिए भारतीय वायुसेना हंसते-हंसते इस मशक्कत को पूरा करने में सक्षम है। एअर स्ट्रिप के पीछे सावरकर की प्रेरणा: भारतीय वायुसेना में सूर्यकांत चाफेकर पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिनके जेहन में 43 साल बाद दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी के पुनर्निर्माण का ख्याल आया। चाफेकर केवल विचार तक सीमित नहीं रहे बल्कि उन्होंने इस विचार को यथार्थ के धरातल पर उतारने के लिए दिन-रात एक कर दिए। चाफेकर ने बताया कि वह स्वातंत्रवीर विनायक दामोदर सावरकर के विचारों से बेहद प्रभावित हैं। भारत आजाद होने से पहले कि सावरकर ने चीन को लेकर आगाह किया था। वही देश आजाद होने के बाद सावरकर ने कहा था कि चीन के साथ हमारी सीमाएं निर्धारित कर उसे आंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलवाई जाए। साथ ही सावरकर हमेशा कहते थे कि देश की सीमाएं चरखे से नहीं बल्कि तलवार की नोक पर खींची जाती हैं। पाकिस्तान के साथ हमारी सीमा इंच-इंच निर्धारित है, इसलिए लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) कहलाती है। वहीं चीन के साथ हमारी सीमा निर्धारित नहीं होने की वजह से लाइन ऑफ ऍच्युअल कंट्रोल (एलएसी) कहलाती है। चाफेकर ने बताया कि हमारा काम सीमाओं को निर्धारित करना नहीं है, लेकिन उसकी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना हमारी जिम्मेदारी है। चाफेकर ने कहा कि इसी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी का पुनर्निर्माण करवाया। बार्बोरा के साथ बेजोड़ समन्वय: एअर वाइस मार्शल (निवृत्त) सूर्यकांत चाफेकर वायुसेना के पहले और इकलौते अफसर हैं जिन्होंने वायुसेना की वेस्टर्न कमांड के तहत आनेवाली चंडीगढ़ एअर फील्ड में बतौर फ्लाइट कमांडर, कमांडिंग अफसर (सीओ) और एअर ऑफिसर कमांडिंग (एओसी) तीनों पदों पर काम किया है। चाफेकर जब चंडीगढ़ में तैनात थे, तब वायुसेना के वेस्टर्न एअर कमांड की जिम्मेदारी प्रणवकुमार बार्बोरा के कंधों पर थी। इन दोनों अफसरों की तैनाती 1 जनवरी 2008 को एक ही दिन हुई थी। दौलत बेग ओल्डी में एअर स्ट्रीप के पुनर्निर्माण को लेकर भारतीय वायुसेना तीन बार गहराई से अध्यन कर चुकी थी। इन तीनों कमेटियों ने यहां एअर स्ट्रीप बनाने को लेकर निगेटिव रिपोर्ट की थी लेकिन चाफेकर हर हाल में हवाई पट्टी का पुनर्निर्माण करवाना चाहते थे। उनके जज्बे को बार्बोरा का सहयोग मिला। उसके बाद चाफेकर ने थलसेना की सहायता से दौलत बेग ओल्डी एअर स्ट्रिप का पुनर्निर्माण करवाया। इस इलाके में 1966 को आए भूकंप के चलते एअर स्ट्रीप के बीचोबीच दरार पड़ी थी। भारतीय थलसेना के बहादुर जवानों ने हवाई पट्टी की जगह को समतल बनाया। भूकंप से पड़ी दरारें खतम की और धूल न उड़े इसके लिए वहां ऑयल का छिड़काव किया गया। इसके बाद 31 मई 2008 को चाफेकर ने खुद इस एअर स्ट्रिप पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की। इसके बाद चाफेकर के प्रयास और योजना से नवंम्बर 2008 को फुकचे और सितम्बर 2009 में निओम एअर स्ट्रीप बनवाई गई। चाफेकर ने बताया कि इस तरह के पुनर्निर्माण के कार्य करने के लिए सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं होती है। केवल वित्तीय और सामरिक कार्य करने के लिए सरकार से अनुमति और सहयोग जरूरी होता है। इस हवाई पट्टी के पुनर्निर्माण का काम बार्बोरा के सहयोग और उनकी महेनत के दम पर पूरा किया गया। बालाकोट के बाद ऊंचा उठा मनोबल: चीन के साथ चल रहे मौजूदा संघर्ष को लेकर चाफेकर ने कहा कि बीते 15 जून को हमारे वीर जवानों ने चीन को नाको चने चबवा दिये। बीते 72 साल में पहली बार ऐसा हाई मोरल देखने को मिला है। सैन्य दलों के इस बढ़े हुए मनोबल का श्रेय बालाकोट एअर स्ट्राइक को जाता है। चाफेकर ने कहा कि इससे पूर्व पाकिस्तान बार-बार न्यूक्लीयर हमले की धमकी देता रहता था। वहीं हमारी ओर से उसकी सैंकड़ों गुस्ताखियों के बाद भी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती थी लेकिन मौजूदा सरकार ने बालाकोट हवाई हमले की अनुमति देकर पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दी। इस कारवाई के बाद हमारी सेना का मनोबल ऊंचा उठ गया है। दरअसल, सेना के साथ सरकार मजबूती से खड़ी रही और नतीजा बेहतर सामने आया। हिन्दुस्थान समाचार/मनीष कुलकर्णी/बच्चन-hindusthansamachar.in

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