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सावधानी घटी, महामारी बढ़ी

डॉ. प्रभात ओझा कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण में तेजी आयी है। लोग पहले के मुकाबले वैक्सीनेशन के प्रति सचेत हुए हैं। रविवार, 04 अप्रैल के आंकड़े के मुताबिक, देश में पिछले 24 घंटे में 11 लाख से अधिक टेस्ट किए गए। इस दौरान 11 लाख, 66 हजार, 716 टेस्ट हुए। इसके साथ देश में कुल 24 करोड़, 81 लाख, 25 हजार, 908 टेस्ट किए जा चुके हैं। अब तो 45 साल और उसके पार वाला हर व्यक्ति वैक्सीन लगवा सकता है। फिर भी कुछ तो है कि देश में कोरोना फिर से लौट आया है। दिल्ली की राज्य सरकार अपने यहां इसे चौथी लहर बता रही है। पूरे देश के लिए यह दूसरी लहर जरूर है। इस बात की पुष्टि कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डॉक्टर वीके पॉल के एक बयान से हो जाती है। वे कहते हैं कि कुछ राज्यों में चिंता विशेष रूप से अधिक है, लेकिन कोई भी राज्य आत्मसंतुष्ट नहीं हो सकता। जब हम सोच रहे थे कि हमने बचाव के तरीके निकाल लिए हैं, तब यह वायरस वापस आ गया। आखिर कारण क्या हैं कि लाख उपाय के बावजूद हम इस महामारी के घेरे से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। निश्चित ही आमजन की लापरवाही इस संक्रमण के बढ़ने का बड़ा कारण है। दिल्ली में मास्क नहीं लगाने पर जुर्माने का डर अवश्य दिख रहा है। फिर भी सार्वजनिक वाहनों में भीड़ मास्क पहने लोगों को कितना सुरक्षित कर पा रही है, यह सवाल बना हुआ है। देश की राजधानी में दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध सेंट स्टीफंस कॉलेज में एक साथ 13 छात्र और दो स्टाफ सदस्य के संक्रमित पाए जाने पर कैंपस में ताले जड़ दिए गए हैं। देश में सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र की लोकल ट्रेनों से रेस्तरां और बार तक की भीड़ के कहने ही क्या। कमोबेश यही हाल पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के हैं। इनके अतिरिक्त चुनाव वाले प्रदेशों में भी लोगों की लापरवाही साफ देखी जा सकती है। हाल यह है कि 04 अप्रैल को देश में बीते 24 घंटे में कोरोना मरीजों की संख्या 93 हजार, 249 हो गई। इसके साथ मरीजों की संख्या 1 करोड़, 24 लाख, 85 हजार, 509 हो गई। इस एक दिन में ही 513 लोगों की मौत भी हुई। इस बीमारी से मरने वालों की संख्या 1 लाख, 64 हजार, 623 तक पहुंच गई है। मरीजों की यह कुल संख्या कोरोना की पहली लहर से करीब 05 हजार ही कम है। इसके पहले 16 सितंबर को 97 हजार, 860 मरीज मिले थे। हालत यह है कि हम ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद कोरोना मामलों में तीसरा सबसे बड़ा देश बन गए हैं। मरीजों के बढ़ने का यही सिलसिला रहा तो भारत सात दिनों में ही सबसे ऊपर होगा। इसमें कोई शक नहीं कि यह हालत पिछली लहर से ज्यादा खराब दिख रही है। पिछले वर्ष अगस्त और सितंबर में भारत कोरोना के मामलों में सबसे ऊपर था। इसबार यह जरूर है कि अभीतक इस महामारी से होने वाली मौत 1.34 प्रतिशत है। पहली लहर के समय यह 1.63 फीसद थी। फिर भी चिंता की बात है कि एक महीने पहले तक संक्रमण से मरने वालों की संख्या 100 से बढ़कर 31 मार्च तक के सप्ताह में 319 तक पहुंच गई थी। कल्पना कर दिल सिहर उठता है कि यह औसत कायम रहा तो क्या होगा। अपने देश के कुछ प्रदेशों, खासकर महानगरों में अतिशय भीड़ में असावधानी को भी गौर करना होगा। दुनिया भर में कुल मरीजों के 11 प्रतिशत भारत में हैं, तो 30 मार्च को साप्ताहांत में भारत के मरीजों का 58 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में ही थे। देश में मरीजों के करीब 80 फीसद मामले छह राज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, छत्तीसगढ़, गुजरात और मध्य प्रदेश में देखे गए। निश्चित ही महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब और गुजरात के कई महानगर भीड़भाड़ वाले हैं। मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, सूरत, बंगलौर, चंडीगढ़, दिल्ली और कोलकाता जैसे शहर देश की औद्योगिक प्रगति के रीढ़ माने जाते हैं। इनको फिर से पूरी तरह बंद करना अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंचाने जैसा है। देखना है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की चेतावनी क्या रूप लेती है। फिर भी इसपर तो विचार किया ही जा सकता है कि कैसे पालियों में काम करने के इंतजाम कर भीड़ को कुछ नियंत्रित किया जाय। (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार की पाक्षिक पत्रिका ‘यथावत’ के समन्वय संपादक हैं।)

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