राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की हारी हुई सीट पर जीत दिलाने वाली कैबिनेट मंत्री कमल रानी कोरोना से हारी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की हारी हुई सीट पर जीत दिलाने वाली कैबिनेट मंत्री कमल रानी कोरोना से हारी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की हारी हुई सीट पर जीत दिलाने वाली कैबिनेट मंत्री कमल रानी कोरोना से हारी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की हारी हुई सीट पर जीत दिलाने वाली कैबिनेट मंत्री कमल रानी कोरोना से हारी - तीन साल पहले कमल रानी ने हिन्दुस्थान समाचार से उस यादगार जीत को किया था साझा - चुनाव के दौरान तीन माह तक जनता के बीच रहकर घर से रहीं दूर - लोकसभा और विधानसभा में पहली बार भाजपा को घाटमपुर से दिलायी जीत कानपुर, 02 अगस्त (हि.स.)। उत्तर प्रदेश सरकार की प्राविधिक शिक्षा मंत्री रही कमल रानी वरुण भले ही कोरोना की जंग न जीत सकी हों, पर राजनीति में अपने दम पर वह कर दिखाया जो एक साधारण गृहणी के लिए असंभव था। पार्षद से राजनीतिक सफर शुरु करने वाली कमल रानी को पार्षद रहते ही भाजपा ने 1996 में घाटमपुर की लोकसभा सीट से टिकट देकर ऐसी चुनौती दी जिसको पार पाना आसान नहीं था, क्योंकि राम मंदिर लहर होने के बाद भी 1991 में इसी सीट से वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद चुनाव हार चुके थे। रामनाथ कोविंद उन दिनों कानपुर परिक्षेत्र में भाजपा के बड़े दलित नेताओं में गिने जाते थे, क्योंकि उनकी पहचान पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई के निजी सचिव पर तो थी ही, साथ ही सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता के रुप में थी। इन सबके बावजूद चुनौतियों को स्वीकार करते हुए घर से तीन माह दूर रहकर जनता के बीच अपनी छवि निखार कमल रानी वरुण भाजपा को जीत दिला देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था संसद पहुंचने में सफल रहीं। उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट मंत्री रही कमल रानी वरुण का जन्म लखनऊ में 3 मई 1958 को हुआ था। उनकी शिक्षा समाज शास्त्र से परा स्नातक तक की थी। 25 मई 1975 को उनकी शादी कानपुर निवासी एलआईसी के प्रशासनिक अधिकारी किशनलाल वरुण से हुई थी। किशनलाल आरएसएस से जुड़े थे। बहू के रुप में कमलरानी 1977 में उस समय राजनीति के लिए घर की दहलीज पार की जब कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त विरोध चल रहा था। 1977 के चुनाव में कमल रानी बूथों पर भाजपा की ओर से पर्ची बांटने की जिम्मेदारी निभाई। 1977 से लेकर 1987 तक इसी तरह चुनावों में भाजपा की ओर से बूथों पर पर्ची बांटने का काम करती रहीं। राजनीति में उनकी इच्छा देख पति भी प्रोत्साहित करने लगे और पति के कहने पर 1987 में वह सेवा भारती से जुड़ गयीं। आरएसएस द्वारा मलिन बस्तियों में संचालित सेवा भारती के सेवा केंद्र में बच्चों को शिक्षा और गरीब महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का प्रशिक्षण देने लगीं। वह कानपुर दक्षिण में सेवा भारती की मंत्री भी रहीं। इसी बीच 1989 में नगर निगम के सभासद चुनाव में द्वारकापुरी वार्ड से टिकट मिला और वह चुनाव जीतकर सभासद बन गईं। इसके बाद 1995 में वह फिर चुनाव मैदान में उतरीं और लगातार दूसरी बार सभासद चुनी गईं। इसके बाद वह भाजपा की राजनीति में सक्रिय हो गईं और लोगों के बीच अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी। उन्होंने घाटमपुर क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया और ग्रामीण लोगों की समस्याओं का समाधान कराने में जुट गईं। यह देख भाजपा ने भी 1996 के लोकसभा चुनाव में घाटमपुर सीट से टिकट दे बड़ी चुनौती दे दी, क्योंकि इससे पहले 1991 के लोकसभा चुनाव में राम मंदिर लहर के बावजूद वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसी सीट से चुनाव हार चुके थे। तीन माह घर से दूर रहकर जनता के बीच बनायी छवि 2017 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद हिन्दुस्थान समाचार ने करीब तीन वर्ष पहले कमल रानी वरुण से राजनीतिक चर्चा कर यह जानने का प्रयास किया था कि कैसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की हारी हुई सीट को जीत में आपने बदला। इस पर उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा था कि भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी और शहरी क्षेत्र में लोग बराबर भाजपा से जुड़ रहे थे। इसी बीच पार्टी ने मुझे पार्षद का टिकट दिया और लगातार दो बार जीतने में सफल रही। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में राम मंदिर लहर के बाद भी भाजपा की पैठ कमजोर रही और इसी का खामियाजा रहा कि वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी 1991 के लोकसभा चुनाव में घाटमपुर सीट से हार गये, जबकि शहर से जगतवीर सिंह द्रोण सांसद बनने में सफल हुये और भाजपा को पहली बार कानपुर में जीत मिली। बताया कि दूसरी बार पार्षद बनने के बाद अपनी राजनीतिक कर्मभूमि घाटमपुर को बनाना शुरु किया और पार्टी ने विश्वास जताया और 1996 में लोकसभा का टिकट भी दिया। इस पर पति ने कहा कि यह आपके सामने बड़ी चुनौती है और इसको हर हाल में सामना करना है। पति से मिली प्रेरणा और उनके कहने पर तीन माह अपने घर को त्याग दिया और इन दिनों गांव-गांव, गली-गली लोगों को पार्टी के साथ जोड़ती रही। इस त्याग का परिणाम रहा कि उन दिनों क्षेत्रीय पार्टी के रुप में तेजी से उभर रही बहुजन समाज पार्टी के धनी राम संखवार को जनता के आर्शीवाद से हराने में सफल हुई। इसके बाद अगला चुनाव 1998 का भी भाजपा के नाम रहा और संसद पहुंचने में सफल रही। दो चुनावों में मिली हार लगातार दो बार सांसद बनने के बाद इसी सीट से कमल रानी वरुण को लगातार दो बार हार का भी सामना करना पड़ा। 1999 के लोकसभा चुनाव में महज 595 वोटों से कमल रानी वरुण को हार मिली और बसपा के प्यारे लाल संखवार को जीत मिली। इस चुनाव में दूसरे नंबर पर सपा की अरुणा कोरी रही। 2004 में पार्टी ने फिर कमल रानी पर भरोसा जताया, पर फिर तीसरे नंबर पर रही और सपा के राधेश्याम कोरी चुनाव जीत गये। वर्ष 2009 के चुनाव का समय आया तो परिसीमन बदल चुका था और घाटमपुर लोकसभा सीट खत्म हो गई थी। वर्ष 2012 में भाजपा ने कमलरानी को रसूलाबाद विधानसभा सीट से टिकट दिया, लेकिन वह जीत नहीं सकीं। वर्ष 2017 के चुनाव में जब भाजपा पूरी मजबूती से आगे बढ़ रही थी तब उन्हें घाटमपुर विधानसभा सीट से टिकट मिला। कमलरानी ने घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर भाजपा को पहली जीत दिलाई। इसके बाद वह प्रदेश सरकार में 21 अगस्त 2019 को प्रावधिक शिक्षा मंत्री बनीं। इस प्रकार घाटमपुर लोकसभा और विधानसभा में भाजपा को पहली जीत दिलाने वाली कमल रानी वरुण रही। हिन्दुस्थान समाचार/अजय-hindusthansamachar.in

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