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बजट : महामारी से घटा राजस्व और कमजोर वर्गों पर बढ़ा खर्च, राजकोषीय घाटा हुआ जीडीपी का 9.5 प्रतिशत

नई दिल्ली, 1 फरवरी (हि.स.)। केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में बजट 2021-22 पेश करते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव के कारण राजस्व का कम प्रवाह हुआ। उसके साथ-साथ समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर गरीबों, महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की अनिवार्य राहत के लिए काफी धनराशि प्रदान की गई। इसके चलते राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 9.5 प्रतिशत हो गया है। इसे 2025-26 तक जीडीपी के 4.5 प्रतिशत से नीचे लाने का प्रयास किया जाएगा। संशोधित अनुमान सीतारमण ने कहा कि महामारी के दौरान छोटे-छोटे विभिन्न पैकेज दिए गए ताकि बिगड़ती स्थिति को ठीक रखा जा सके। स्वास्थ्य की स्थिति स्थिर होने पर धीरे-धीरे लॉकडाउन हटाये जाने के दौरान सरकार का व्यय बढ़ाने का प्रयास किया गया ताकि घरेलू मांग में सुधार हो सके। इसके परिणामस्वरूप 30.42 लाख करोड़ रुपये व्यय वाला मौलिक बजटीय अनुमान 2020-21 के स्थान पर संशोधित अनुमान 2020-21 को 34.50 लाख करोड़ रुपये रखा गया है। सरकार ने व्यय की गुणवत्ता को कायम रखा है। संशोधित अनुमान 2020-21 में पूंजीगत व्यय का अनुमान 4.39 लाख करोड़ रुपये है, जबकि बजटीय अनुमान 2020-21 में यह धनराशि 4.12 लाख करोड़ रुपये है। वित्त मंत्री ने बताया कि संशोधित अनुमान 2020-21 में राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 9.5 प्रतिशत हो गया है। इसे सरकारी ऋणों, बहुपक्षीय ऋणों, लघु बचत निधियों और अल्पकालिक ऋणों के माध्यम से धन उपलब्ध कराया गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि अतिरिक्त 80,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, जिसके लिए हम इन दो महीनों में बाजारों तक पहुंच कायम करेंगे। बजटीय अनुमान सीतारमण ने कहा कि अर्थव्यवस्था पर आवश्यकतानुसार जोर देने के लिए बजटीय अनुमान 2021-22 का व्यय 34.83 लाख करोड़ रुपये है। इसमें पूंजीगत व्यय के रूप में 5.54 लाख करोड़ रुपये शामिल है, जो बजटीय अनुमान 2020-21 में 34.5 प्रतिशत वृद्धि को दर्शाता है। बजटीय अनुमान 2021-22 में राजकोषीय घाटे का अनुमान सकल घरेलू उत्पाद का 6.8 प्रतिशत है। अगले वर्ष बाज़ार से सकल ऋण लगभग 12 लाख करोड़ रुपये होगा। राज्यों के लिए ऋण सीतारमण ने कहा कि 15वें वित्त आयोग की दृष्टि से सरकार ने वर्ष 2021-22 में राज्यों के लिए कुल ऋणों की सामान्य सीमा जीएसडीपी के 4 प्रतिशत को अनुमति दी है। इस सीमा का एक हिस्सा वृद्धि योग्य पूंजीगत व्यय के लिए खर्च करना निर्धारित होगा। स्थितियों के अनुसार जीएसडीपी के 0.5 प्रतिशत की अतिरिक्त ऋण सीमा भी प्रदान की जायेगी। वित्त मंत्री ने कहा कि 15वें वित्त आयोग की संस्तुतियों के अनुसार राज्यों से आशा की जाती है कि वे 2023-24 तक जीएसडीपी का 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटे में रहेंगे। अतिरिक्त बजटीय संसाधन वित्त मंत्री ने कहा, “जुलाई 2019-20 के बजट में मैंने अतिरिक्त बजटीय संसाधनों पर वक्तव्य-27 प्रस्तुत किया था। इसमें उन सरकारी एजेंसियों के ऋणों का खुलासा किया गया था, जिसने भारत सरकार की योजनाओं के लिए वित्तपोषण किया था और जिसकी ऋण वापसी का भार सरकार पर था। मैंने अपने बजट 2020-21 में, सरकार द्वारा भारतीय खाद्य निगम के लिए ऋणों को शामिल करके उपर्युक्त वक्तव्य की संभावना और दायरा को बढ़ा दिया था। इस दिशा में एक और कदम आगे बढ़ते हुए, इस वर्ष बजटीय अनुमान 2020-21 में मैं बजट प्रावधान बनाकर खाद्य सब्सिडी के लिए भारतीय खाद्य निगम को एनएसएसएफ ऋण को हटाने का प्रस्ताव करती हूं तथा 2021-22 के बजटीय अनुमान में इसे जारी रखने का प्रस्ताव करती हूं।” एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन वित्त मंत्री ने कहा कि वित्तीय सुदृढ़ीकरण की राह पर निरंतर चलने की योजना है। हम 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 प्रतिशत से नीचे लाना चाहते हैं। सबसे पहले हम उन्नत अनुपालन के माध्यम से कर राजस्व में वृद्धि द्वारा तथा दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और भूमि सहित संसाधनों के मौद्रीकरण से अधिक धन जुटाकर सुदृढ़ीकरण के लक्ष्य तक पहुंचने की आशा करते हैं। सीतारमण ने संसद को बताया कि उपर्युक्त व्यापक उपायों के साथ केन्द्र सरकार के राजकोषीय घाटे तक पहुंचने की दिशा में एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया जायेगा। राज्यों को कर संग्रह में हिस्सेदारी वित्त मंत्री ने वित्तीय संघवाद के प्रति संकल्प को दोहराया और कहा कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप राज्यों की ऊर्ध्व (वर्टिकल) हिस्सेदारी को 41 प्रतिशत पर बनाये रखेंगी। 14वें वित्त आयोग के अनुसार जम्मू-कश्मीर को राज्य के तौर पर हिस्सेदारी पाने का अधिकार है। अब केन्द्रशासित प्रदेशों- जम्मू–कश्मीर और लद्दाख को केन्द्र की ओर से धनराशि दी जायेगी। सीतारमण ने वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप 2021-22 में 17 राज्यों को 1,18,452 करोड़ रुपये राजस्व घाटा अनुदान के तौर पर देने का प्रावधान किया है, जबकि 2020-21 में 14 राज्यों को 74,340 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की गई थी। हिन्दुस्थान समाचार/अनूप-hindusthansamachar.in

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