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भूपेश बघेल की उड़ान पर असम चुनाव के परिणामों ने लगाई रोक

केशव शर्मा रायपुर, 04 मई (हि.स.)। असम विधानसभा चुनाव के नतीजों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की नींद उड़ा दी है। परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि मुख्यमंत्री बघेल और उनके सिपहसालारों की रणनीति पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई है। खुदको प्रदेश में एकमात्र सबसे ताकतवर कांग्रेस नेता बनाने की उनकी कोशिशों को इससे गहरा धक्का लगा है। मंत्रिमंडलीय सहयोगियों खासकर वर्ष 2018 के छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में जीत की पटकथा लिखने वाले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव को अलग-थलग करने की उनकी कोशिशों को भी धक्का लगा है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की सबसे बड़ी भूमिका टीएस सिंह देव ने लिखी थी। उनके चुनावी प्रबंधन और रणनीतिक कौशल ने पार्टी को सत्तारूढ़ किया था। यह भी सही है कि भूपेश बघेल ने उस समय एक दमदार विपक्षी नेता की भूमिका निभाई थी। पर, सिंहदेव की सौम्यता ने जहां मुख्यमंत्री पद गंवाया, वहीं बघेल ने अपने जिद्दी स्वभाव से यह पद हासिल कर लिया। तब यह चर्चा थी कि हाईकमान ने मुख्यमंत्री पद पर दोनों के लिए ढाई-ढाई साल का फार्मूला तय किया है। कांग्रेस के विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि भूपेश ने प्रथम ढाई साल, पहले ही हथिया लिया। मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद बघेल ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की शैली अपनाई और उन्होंने पार्टी के अंदर तथा बाहर अपने विरोधियों को निपटाना शुरू कर दिया। शासन और प्रशासन में बघेल ने उन्हें तरजीह देना शुरू किया जो सिर्फ उनकी आज्ञा का पालन करें। उन्होंने सत्ता एवं संगठन में अपने लोगों को मजबूत बनाना शुरू किया तथा उन लोगों को आगे लाना शुरू किया जो पार्टी में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के समर्थक नहीं है। पार्टी में ही चर्चा है कि संगठन एवं प्रशासन के तौर पर सिंहदेव को हाशिए पर पहुंचा दिया जा रहा है। पर, असम के चुनाव परिणामों ने बघेल की इस रणनीति की धार को भोथरा कर दिया है। कांग्रेस आलाकमान ने बघेल को असम में कांग्रेस का चुनावी पर्यवेक्षक और प्रबंधन का दायित्व सौंपा था। बघेल 18 जनवरी से अपने 700 से ज्यादा समर्थक कार्यकर्ताओं की टीम के साथ असम में जम गए थे। उन्होंने असम की 36 विधानसभा सीटों पर अपना पूरा ध्यान फोकस किया। वह 18 जनवरी को असम पहुंचे और ऊपरी असम, डिब्रूगढ़, बराक घाटी, बारपेटा, दिसपुर सहित विभिन्न जिलों में 38 जनसभाओं को संबोधित किया। उन्होंने पार्टी हाईकमान को फीडबैक दिया कि हम असम में अपनी सरकार बनाने जा रहे हैं। पर जब परिणाम आए तो इन 36 में से कांग्रेस को सिर्फ 11 सीटें मिलीं। बघेल के नेतृत्व में चाय बागान वाले आदिवासियों के बीच में कांग्रेस ने अपना समर्थन खो दिया। उन्होंने असम की जनता से 5 वादे किए थे, जिसमें सीएए लागू ना होने देना, चाय बागान के कर्मचारियों को ₹365 प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान करने, प्रत्येक गृहिणी को ₹2000 मासिक भत्ता देने, 200 यूनिट तक का बिजली बिल माफ करने और 5 लाख रोजगार देना शामिल था। पर, असम की जनता ने उनके इन वादों पर विश्वास नहीं किया। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री असम में जब आलाकमान को विश्वास दिलाने में लगे थे, तब राज्य में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा था। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव अपनी चिंताओं से कई बार मुख्यमंत्री को अवगत कराया, लेकिन बघेल ने हर बार उनको नजरअंदाज किया। अपनी इमेज को बृहद् बनाने की कोशिश में उन्होंने कोरोना काल में ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन कराया। नक्सली मामले को लेकर भी मुख्यमंत्री का रवैया लगभग उदासीन ही रहा। इस दौरान दो बड़ी नक्सली बड़ी घटनाएं हुईं और 27 जवानों ने वीरगति को प्राप्त किया। पर, बघेल का पूरा ध्यान असम पर रहा। क्योंकि वह जानते थे कि यदि असम में कांग्रेस की सरकार बनी तो छत्तीसगढ़ में पार्टी में उनका कोई राजनीतिक प्रतिद्वंदी उनके समकक्ष नहीं रह जाएगा। यहां तक की छत्तीसगढ़ विधानसभा का 24 दिनों का बजट सत्र 12 दिन पहले 10 मार्च को ही समाप्त कर दिया गया। इसके 3 दिन के बाद ही मुख्यमंत्री असम चुनाव प्रचार के लिए निकल गए थे। असम चुनाव बघेल के लिए कितना मायने रखता है यह इस बात से भी साबित होता कि मार्च में बघेल ने अपने ट्विटर हैंडल से लगभग 215 ट्वीट और रीट्वीट किए, जिनमें से 6 ट्वीट में ही कोरोना का जिक्र उन्होंने किया। इनमें भी 8 मार्च को किए गए दो ट्वीट स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव और जयसिंह अग्रवाल के कोरोना संक्रमण से ठीक होने के लिए शुभकामना संदेश थे। अर्थात जब छत्तीसगढ़ में कोरोना अपने पंजे जमा रहा था, मुख्यमंत्री को असम की चिंता थी। यही नहीं राज्य से सतनामी, साहू और आदिवासी समूह के अलग-अलग सांस्कृतिक दलों के 55 कलाकार असम में रह रहे छत्तीसगढ़ मूल के 25 लाख मतदाताओं को साधने के लिए भेजे गए। इसके पहले बिहार चुनाव में भी बघेल कुछ उपलब्धि हासिल नहीं कर पाए। वहां पर भी वह अपनी टीम के साथ जुटे थे। पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने तंज कसा कि बघेल के चुनावी प्रबंध कौशल की ढोल की पोल खुल गई है। वे बड़बोले साबित हुए और उनके सियासी आइसोलेशन का वक्त आ गया है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के आर्थिक संसाधन का बेजा इस्तेमाल करके भी मुख्यमंत्री बघेल अपने छल-कपट के राजनीतिक दांवपेच में बुरी तरह मात खा गए हैं। असम के चुनावी परिणामों ने बघेल को कमजोर किया है। वहीं कोरोना को लेकर की गई अनदेखी और उनकी अधिनायकवादी प्रवृत्ति ने प्रदेश में उनकी पार्टी में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को मजबूत ही किया है। हिन्दुस्थान समाचार

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