'चीन' की 'चालबाजियों' में फंसे 'ओली' के आरोपों का जवाब है 'अयोध्या का नेपाली मंदिर'
'चीन' की 'चालबाजियों' में फंसे 'ओली' के आरोपों का जवाब है 'अयोध्या का नेपाली मंदिर'

'चीन' की 'चालबाजियों' में फंसे 'ओली' के आरोपों का जवाब है 'अयोध्या का नेपाली मंदिर'

आमोदकान्त मिश्र अयोध्या, 01 अगस्त (हि.स.)। भारत-नेपाल के बनते-बिगड़ते सांस्कृतिक रिश्तों के बीच अयोध्या में 05 अगस्त से शुरू होने वाले श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। कोरोना वायरस के खिलाफ सारा विश्व संघर्ष नहीं कर रहा होता तो यहां श्रद्धालुओं का जमघट लगा होता। विश्व के तमाम देशों के साथ नेपाल के हिन्दू धर्मावलंबियों की भी अयोध्या में भारी भीड़ होती। इतना ही नहीं, अयोध्या स्थित नेपाली मंदिर में भगवान कुर्मनारायण के रूप में स्थापित शालिग्राम ने तो नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के उस दावे की पोल खोल दी है कि भगवान श्रीराम की जन्मभूमि भारत का अयोध्या में नहीं अपितु नेपाल का एक गांव में हुआ था। वरिष्ठ पत्रकार राजीवदत्त पांडेय की माने तो भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की सच्चाई पर उंगली उठाने वाले नेपाली पीएम ओली यह जानकर परेशान होंगे कि सदियों से चली आ रही भारत-नेपाल की सांस्कृतिक एकता क्षणिक नहीं है, बल्कि यह वैदिक काल से चली आ रही। नेपाल राष्ट्र की एक बहू राजकुमारी देवी ने वर्ष 1895 में अयोध्या में नेपाली मंदिर में भगवान कुर्मनारायण की शालिग्राम के रूप में स्थापना कर भारत-नेपाल के सांस्कृतिक संबंधों को और पुख्ता किया था। अगर कोरोना वायरस के खिलाफ पूरा विश्व संघर्ष नहीं कर रहा होता, ओली के इस झूठे दावे का नेपाली जनता खुद जवाब बनकर सामने खड़ी होती। अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास में उन्हें शामिल होने को खुद ओली भी नहीं रोक पाते। यहां की जनभावना को न तो चीन की चालबाजियों से लुभाकर देखा जाता और न ही वह इतराते। वजह, तत्कालीन नेपाल नरेश जंग बहादुर राणा की बहू राजकुमारी देवी ने वर्ष 1895 में ही इसकी नींव रख दी थी। नेपालियों के रोम-रोम में बसने वाले 'अयोध्या के श्रीराम' का मंदिर अयोध्या में स्थापित करवा कर उन्होंने भारत-नेपाल के सांस्कृतिक संबंधों को और प्रगाढ़ कर दिया था। नेपाली मंदिर का इतिहास मंदिर निर्माण का विषय भी बहुत रोचक है। इसे लेकर एक कथा प्रचलित है। कहते हैं कि एक बार नेपाल के मुक्तिधाम से निकलने वाली काली गंडक नदी से कुछ लोगो को 15 इंच डायमीटर के विशाल शालिग्राम प्राप्त हुआ। फिर उन लोगों ने इसके धार्मिक महत्व को ध्यान में रखकर अच्छे मूल्य पर बेंचने को राजभवन पहुंचे। राज परिवार ने इसका अच्छा मूल्य भी दिया और घर मे ही स्थापित करवाने को पुरोहित की बुलवाया, लेकिन पुरोहित ने इतने बड़े शालिग्राम को घर मे स्थापित करने से मना करते हुए स्थापना से मना कर दिया। बावजूद इसके राजकुमारी देवी ने इसे घर मे ही रखने का दबाव बनाया और ऐसा ही हुआ भी। परंतु रात में सोते समय देखे स्वप्न के बाद राजकुमारी बेचैन रहने लगीं और इसे स्वप्न के मुताबिक भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में इसे स्थापित करने का मन बनाया। इसके बाद राजपरिवार अयोध्या पहुंचा और विभीषण कुंड के पास एक मंदिर बनाकर यहां शालिग्राम की स्थापना हुई। वर्ष 1895 में शुरू हुए मंदिर में भगवान कुर्मनारायण को शालिग्राम के रूप में स्थापित करने का यह कार्य पंडित मोदनाथ शर्मा के प्रबंधकत्व में वर्ष 1900 में पूरा कर लिया गया। तब से अब तक नेपाली समाज और हिन्दू धर्मावलंबी भारतीय यहां पूजन अर्चन करते आ रहे हैं। क्या है शालिग्राम नेपाल समेत विश्व के सभी हिन्दू धर्मावलंबी शालिग्राम को पूजते हैं। इनकी पूजा भगवान विष्णु के रूप में होती है। इसकी पूजा ठाकुर जी के रूप में आज भी हर हिन्दू के परिवार मे होती है। किसी भी शुभ कार्य से पहले होने वाली पूजा की शुरुआत ठाकुरजी की आराधना और पूजन के साथ ही होती है। हिन्दुस्थान समाचार-hindusthansamachar.in

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