डिस्लेक्सिया पीड़ित छात्रों की मदद के लिए एआईसीटीई की दस युक्तियां
नई दिल्ली, 2 नवंबर (आईएएनएस)। डिस्लेक्सिया से पीड़ित छात्रों की मदद के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) दस युक्तियों के साथ सामने आया है। यह युक्तियां शिक्षकों को डिस्लेक्सिया या सीखने की अक्षमता वाले छात्रों का प्रबंधन करने में मदद करेगी। एआईसीटीई के उपाध्यक्ष प्रोफेसर एमपी पूनिया ने बताया कि डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों का प्रबंधन कैसे किया जाए इसपर कई संस्थानों के साथ लगातार बातचीत की जा रही है। एआईसीटीई 10 युक्तियों के साथ आया है, जो शिक्षकों को ऐसे बच्चों को सीखने में मदद करेगा जो सीखने में अक्षम हैं। प्रोफेसर पूनिया ने कहा, पहला टिप हमेशा ऐसे छात्रों की प्रशंसा करना है। कभी भी उनकी आलोचना न करें, आलोचना से उनके आत्मविश्वास का कोई भला नहीं होगा। दूसरा, ऐसे छात्रों को पूरी कक्षा के सामने जोर से पढ़ने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। तीसरा, हम शिक्षकों से यह भी कहते हैं कि जिन छात्रों को सीखने में कठिनाई होती है उन्हें दंडित न करें। चौथा, शिक्षकों को उनसे अधिक लिखित कार्य की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। पांचवां, शिक्षकों को अपनी प्रतियों पर कक्षा कार्य या गृहकार्य चिपकाने के लिए प्रिंटआउट का उपयोग करना चाहिए। उन्हें बोर्ड या किताब से काम की नकल करने के लिए भी नहीं कहा जाना चाहिए। शिक्षकों को भी इन छात्रों को कंप्यूटर के माध्यम से अपना होमवर्क ऑनलाइन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्हें एक ऐसा वातावरण भी बनाना चाहिए जो इन छात्रों को सब कुछ स्पष्ट रूप से समझने में मदद करे। और अंत में ऐसे छात्रों को हमेशा मौखिक रूप से जवाब देने का मौका दिया जाना चाहिए। डिस्लेक्सिया पर जागरूकता फैलाने के लिए, एआईसीटीई ने शिक्षाविदों, चिकित्सा पेशेवरों और कई अन्य पेशेवरों को शामिल किया है। एआईसीटीई की इस पहल में डॉ. इंदुमती राव, सीबीआर नेटवर्क, बैंगलोर के संस्थापक और क्षेत्रीय सलाहकार, बालेंदु शर्मा दादिच, निदेशक - स्थानीयकरण और अभिगम्यता, माइक्रोसॉफ्ट और प्रो शेफाली गुलाटी, चीफ चाइल्ड न्यूरोलॉजी, दिल्ली एम्स बाल रोग विभाग डिवीजन शामिल रहे हैं। इस विषय पर दो-श्रृंखला वाले वेबिनार का आयोजन भी किया गया। यह डिस्लेक्सिया और सीखने की अक्षमता वाले बच्चों के साथ काम करने में सक्रिय रूप से शामिल हैं, ताकि जल्दी पता लगाने और एक प्रणाली बनाने के तरीकों का पता लगाया जा सके। एआईसीटीई चाहता है कि समाज आगे आए और प्रारंभिक अवस्था से ही बच्चों के लिए एक मजबूत समर्थन प्रणाली बनाकर डिस्लेक्सिया और सीखने की अक्षमता के भ्रम को तोड़ दे। एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल डी सहस्रबुद्धे ने कहा, डिस्लेक्सिया के आसपास के सामाजिक कलंक को तोड़ दिया जाना चाहिए, और यह जागरूकता कार्यक्रमों से ही संभव होगा। एक डिस्लेक्सिक बच्चे को माता-पिता और शिक्षकों से भावनात्मक समर्थन की आवश्यकता होती है। हम ²ढ़ता से आशा करते हैं कि एआईसीटीई इस बहुत सराहनीय बदलाव का प्रेरक कारक बन जाएगा। --आईएएनएस जीसीबी/आरजेएस