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यूपी में कम्युनिटी के नेतृत्व में चलने वाला एक बैंक ग्रामीणों को साहूकारों से रखता है दूर

बहराइच, 29 सितम्बर (101 रिपोर्टर्स/आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के मिहिनपुरवा गांव ब्लॉक से 47 किमी दूर बिशुनापुर एक छोटा सा गांव है। यह 2,500 लोगों का घर है, जिनमें से 2,200 अनुसूचित जनजाति थारू समुदाय के लोग हैं, यहां के ग्रामीणों का साहूकारों के साथ एक बुरा इतिहास रहा है। निवासियों को उनकी मेहनत की फसल का आधा मूल्य भी नहीं मिल सका क्योंकि महाजन (साहूकार) ऋण चुकाने के एवज में कटी हुई फसल को भारी छूट पर ले लेते थे। अगर कर्जदार के पास अनाज नहीं होता था, तो साहूकारों 10 फीसदी प्रति माह की दर से कर्ज वसूल किया करते थे। हालांकि, ग्रामीणों द्वारा की गई एक प्रभावशाली पहल के माध्यम से स्थिति बदल गई है। ग्यारह साल पहले बिशुनापुर के युवाओं ने आदर्श स्वयं सहायता समूह (आदर्श स्वयं सहायता समूह) नाम से एक बैंक बनाया। इस बैंक से गांव का कोई भी निवासी केवल 1 प्रतिशत की ब्याज दर पर पैसा उधार ले सकता है। लोग निर्णय लेते हैं और बैंक को सूचित करते हैं कि वे ऋण कब चुका सकते हैं। इसके अलावा, अगर कोई 15 दिनों के भीतर पैसे चुकाने में सक्षम है, तो कोई ब्याज नहीं लिया जाता है। इससे ग्रामीणों को साहूकारों के जाल से निकलने में मदद मिली है। बहराइच के बिशुनापुर गाँव में थारू आदिवासियों द्वारा संचालित स्थानीय बैंक ने समुदाय को साहूकारों के शोषण से मुक्त कराने की एक प्रेरणा रहा है। बिशुनापुर के प्रधान और आदर्श स्वयं सहायता समूह के अध्यक्ष बसंत लाल ने कहा कि दस साल पहले, हमारे गांव की हालत खराब थी। फसल तैयार होते ही साहूकार यहां आ जाते थे,फसल तैयार होते ही साहूकार यहां आ जाते, फिर वह चाहे धान हो, गेहूं हो, मक्का हो, दाल हो बोरी नीचे फेंककर बोरी भरने को कहते थे। इसलिए हमारे परिवार के बुजुर्गों को आवश्यक अनाज साहूकारों को देना पड़ता था, यहाँ तक कि गाँव के अन्य लोगों से उधार भी लेना पड़ता था। ऐसे में कर्ज से उबरना मुश्किल था। समुदाय के नेतृत्व वाले बैंक के विचार के सामने आने तक गांव के लोगों ने कई दिनों तक विचार-मंथन किया। सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि फंड बनाने के लिए सदस्य प्रति माह 100 रुपये जमा करेंगे, और इसका उपयोग जरूरतमंद लोगों को सिर्फ 1 प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण देने के लिए किया जाएगा। लाल ने 101 र्पिोटर्स से कहा कि एक-एक करके लोग जुड़ते गए, और अब समूह में 47 सदस्य है। इसमें मासिक जमा राशि के समय पर भुगतान करने में अनुपस्थिति या विफलता पर जुमार्ना भी लगता है। वर्तमान में, बैंक के पास 12,16,081 रुपये की राशि है, जिसमें सदस्यों द्वारा जमा, ब्याज और जुमार्ना शामिल है। हर महीने एक बैठक आयोजित की जाती है, और उसमें सदस्य-शेयरधारकों के लिए उपस्थित होना अनिवार्य है। गांव में तीन लोग आदर्श स्वयं सहायता समूह का प्रबंधन करते हैं, एक व्यक्ति ग्रामीणों को धन जमा करने के लिए प्रेरित करता है, दूसरा व्यक्ति धन एकत्र करने का प्रभारी होता है, जबकि तीसरा व्यक्ति निधि और खातों का रखरखाव करता है। लाल ने कहा कि पहले जब हम साहूकारों से पैसे उधार लेने जाते थे, तो वे जमीन पर बैठकर घंटों इंतजार करते थे। लेकिन अब, साहूकार खुद गाँव में आकर पूछते हैं कि क्या किसी को पैसे की जरूरत है। वे कहते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी हमसे कर्ज लेती आ रही है, तुम क्यों नहीं ले रहे? हमने उनसे कहा कि अब वे दिन नहीं रहे। अब अगर किसी को बोने के लिए, खाद या दवाई खरीदने के लिए, पैसे की जरूरत होती है तो वह हमारे बैंक से पैसे ले सकता है, साहूकार की जरूरत खत्म हो गई है। बेहतर है कि हमारी समस्याओं को हल करने के लिए किसी पर निर्भर न रहें। हम चाहते हैं कि एक ऐसा समूह हर गांव में हो। थारू की बदलती विरासत एनजीओ सेवार्थ फाउंडेशन चलाने वाले और एक दशक से अधिक समय से इस क्षेत्र में काम कर रहे जंग हिंदुस्तानी ने कहा, मिहिनपुरवा तहसील में सात थारू गांव हैं, जिनकी सामूहिक आबादी लगभग 10,157 है। इन सभी थारू गांवों की स्थिति लगभग बिशुनापुर जैसी ही थी। आदर्श स्वयं सहायता समूह की स्थापना के बाद, अन्य थारू गांवों ने भी इसका पालन किया है। हालांकि, बिशुनापुर संगठन सबसे पुराना होने के कारण इसके पास अधिक धन है और अधिक लोग की मदद करने में सक्षम है। थारू आदिवासी वफादार और सीधे-सादे होने के लिए जाने जाते हैं। एक बार जब थारस किसी व्यक्ति के साथ विश्वास का रिश्ता स्थापित कर लेता है, भले ही वे केवल एक दुकान के मालिक हों, वे उनके साथ व्यापार करना जारी रखेंगे, और तब तक, जब तक कि उन्हें धोखा न दिया जाए। हिन्दुस्तानी ने कहा, ऐतिहासिक रूप से तैयार धन के साथ घरों का भरोसा रखने वाले महाजनों ने इस विशेषता का वर्षों तक लाभ उठाया है। लेकिन अब युवा पीढ़ी बहुत स्मार्ट और जागरूक हो गई है। डॉ अग्रवाल ने कहा कि बहराइच, बलरामपुर और लखीमपुर के थारू का अध्ययन करने वाली और वर्तमान में नेशनल पीजी कॉलेज, लखनऊ में पढ़ाने वाली डॉ नीलम अग्रवाल के अनुसार, थारूओं का एक रंगीन इतिहास रहा है। राणा थारू महाराणा प्रताप की रानियों के वंशज माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब महाराणा प्रताप पर हमला हुआ, तो उनकी रानियां अपने सेवकों के साथ जंगलों में भाग गईं और जल्द ही उनका समुदाय स्थापित हो गया। यही कारण है कि थारू में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत अधिक है। डगोरिया और कठोटिया थारू खुद को नेपाल के राजाओं का भी वंशज मानते हैं। बिशुनपुर गांव के मूल निवासी मुन्नी लाल ने कहा कि जनजाति, जिसका खून कभी शाही राज्यों और महलों से होकर गुजरता था, उनको साहूकारों के दरवाजे पर याचना करनी पड़ती थी। इससे समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचती थी और उन्हें अपनी गरीबी पर शर्म आती थी। लेकिन अब और नहीं। (लेखक बहराइच स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101 र्पिोटर्स डॉट कॉम के सदस्य हैं, जो जमीनी स्तर के पत्रकारों का एक अखिल भारतीय नेटवर्क है।) --आईएएनएस एमएसबी/आरजेएस

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