
हम सांस्कृतिक, पारदर्शी व सभ्य होते जा रहे समाज के लोग हैं। हमें कुछ भी छिपाने की क्या ज़रूरत है। कभी मास्क पहन लेते हैं तो लगता है मानो झूठ का मुखौटा पहन लिया। वास्तव में बात यह है कि जब दूसरे नहीं पहनते तो फिर हमसे भी नहीं पहना क्लिक »-www.prabhasakshi.com