गायत्री साधना से इंद्रिय संयम: डॉ पण्ड्या
गायत्री साधना से इंद्रिय संयम: डॉ पण्ड्या

गायत्री साधना से इंद्रिय संयम: डॉ पण्ड्या

हरिद्वार, 23 अक्टूबर (हि.स.)। जिस तरह कछुआ प्रतिकूल अवसर आने पर अपने हाथ-पैर व सिर को सिकोड़कर अंदर समेट लेता है और बाहरी आडम्बरों से अपने अंगों को बचाये रखता है। उसी तरह साधक साधना से अपने इंद्रियों को संयमित कर मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है। नवरात्र के दिनों में मनोयोगपूर्वक गायत्री साधना करने से अपने इंद्रियों को संयमित किया जा सकता है। यह वर्चुअल संदेश डॉ. प्रणव पण्ड्या ने नवरात्र साधना में अपने-अपने घरों में जुटे देश-विदेश के गायत्री साधकों को शुक्रवार को दिया। उन्होंने कहा कि इंद्रियों की कामना पूर्ति करते रहने से इच्छाएं निरंतर बढ़ती जाती हैं, जो कुछ समय बाद विकट परिस्थितियां खड़ी हो जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण अपने परम शिष्य अर्जुन के विविध शंकाओं का समाधान करते हुए कहते हैं कि साधना से अपने इंद्रियों को वश में रखने से ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है। सिद्ध पुरुष साधना के माध्यम से ही अपने वासनाओं, इच्छाओं को वश में रखता है, तभी वे बड़े-बड़े कार्य सम्पन्न कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि गायत्री के सिद्ध पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने गायत्री की प्रचण्ड साधना की और वे अपनी जिह्वा से लेकर समस्त इन्द्रियों को अपनी इच्छानुसार चलाते थे। डॉ. पण्ड्या ने कहा कि जब तक कोई साधक साधना में रम नहीं जाता है, तब तक उसका इन्द्रियभोग से निरत होना असंभव है। गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. पण्ड्या ने कहा कि गायत्री साधना साधक में सतोगुण का विकास करती है और उन्हें रजोगुण से मुक्ति दिलाती है। साधक के अंतःकरण में छिपी या सोई हुए आसुरी वृत्ति को भी नष्ट करती है। साथ ही साधक का चहुंमुखी विकास के द्वार खोलती है। उन्होंने कहा कि देवी शक्ति की आराधना का महापर्व नवरात्र के दिनों में साधना करने से कई तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है। व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं को पाने और वासनाओं-कामनाओं में भटक रहा है। उन्होंने कहा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि बुराइयों को त्यागकर अच्छाइयों की ओर चलो। इस नवरात्र साधना में साधक को अच्छाइयों की ओर अग्रसर होने का प्रयास करना चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत/मुकुंद-hindusthansamachar.in

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