कुमाऊं में 16वीं शताब्दी से है रंगमंच का वजूद:  जहूर
कुमाऊं में 16वीं शताब्दी से है रंगमंच का वजूद: जहूर

कुमाऊं में 16वीं शताब्दी से है रंगमंच का वजूद: जहूर

नैनीताल, 21 सितम्बर (हि.स.)। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल एवं मंडल मुख्यालय नैनीताल में रंगमंच की गौरवशाली परंपरा रही है। सोलहवीं शताब्दी में कुमाऊं में चंदवंश के राज्य में राजा रुद्रचंद देव द्वारा संस्कृत के दो नाटकों की रचना और उनके मंचन के प्रमाण मिलते हैं। बाद में 1860 में अल्मोड़ा तथा 1880 में नैनीताल में रामलीला का प्रारंभ हुआ, जो कि कुमाऊं में नाटक की समृद्धशाली परंपरा की एक तरह से बुनियाद है। ब्रिटिश शासनकाल में नैनीताल के यूनाइटेड प्रोविन्स की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने के दौर में भी यहां बसे अंग्रेजों के मनोरंजन के लिए अंग्रेजी, विशेषकर शेक्सपियर के नाटकों का मंचन तब ‘नाच घर’ कहे जाने वाले वर्तमान कैपिटल सिनेमा हॉल में प्रारंभ हुआ। लकड़ी के बने इस ‘नाचघर’ के जलने के बाद 1922 में नगर में अत्याधुनिक शैले हॉल की स्थापना के साथ यहां अंग्रेजी नाटकों का मंचन होने लगा। तब शैले हॉल का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि उसकी भव्यता से नाटक निखर उठता था लेकिन आज शैले हॉल की खस्ता हालत अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। यह कहना है नगर के वरिष्ठ रंगकर्मी जहूर आलम का। उन्होंने ‘नैनीताल में रंगमंच’ विषय पर कुमाऊं विश्वविद्यालय की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ द्वारा फेसबुक लाइव के जरिए आयोजित ऑनलाइन चर्चा में यह मत रखा। उन्होंने कहा कि नैनीताल में रंगमंच की स्थापना के साथ देश-दुनिया में नैनीताल को विशेष पहचान दी है। उन्होंने कहा कि नैनीताल में रंगमंच को जीवित रखने में शारदा संघ, सीआरएसटी, डीएसबी, युगमंच, प्रयोगांक, मंच आदि संस्थाओं की बड़ी भूमिका रही है। 1976 में कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति प्रो. डीडी पंत के निर्देशन में तत्कालीन डीएसबी संघटक महाविद्यालय में नाट्य प्रतियोगिता की समृद्ध परम्परा प्रारंभ हुई जो कि 1983-84 तक अनवरत जारी रही। जहूर ने नैनीताल में रंगमंच को जीवित रखने में स्व. चंद्रशेखर पंत, बृजेंद्र लाल शाह, तारा दत्त सती, लेनिन पंत, केसी अवस्थी, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, सुरेश गुरूरानी, केपी शाह, ललित तिवारी, इदरीस मलिक व मदन मेहरा आदि के योगदान को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों तक ‘नैनीताल शरदोत्सव’ में भी नाट्य प्रतियोगिताओं को स्थान दिया गया लेकिन अब अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से रंगमंच को वह सम्मान नहीं दिया जाता, जो फिल्मी सितारों को दिया जाता है। नैनीताल की समृद्ध नाट्य परंपरा का ही परिणाम है कि अब तक इस शहर के 18 विद्यार्थियों का राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली (एनएसडी.) और 8 विद्यार्थियों का फिल्म प्रशिक्षण संस्थान पुणे (एफटीआई) के लिए चयन हो चुका है। उन्होंने नैनीताल में रंगमंच की अत्यंत समृद्ध गौरवशाली परंपरा पर वृहद शोध की जरूरत भी जताई, जिससे इसका अभिलेखीकरण हो सके और उन्हें दस्तावेज के रूप में सुरक्षित रखा जा सके। इस दौरान आलम ने ‘नारे बना के हाथ उठाए हुए हैं लोग चेहरों पे इश्तेहार लगाए हुए हैं’ सहित कुछ गजलें भी सुनाईं। कार्यक्रम में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. शिरीष कुमार मौर्य, शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत सहित वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हरिसुमन बिष्ट, बल्ली सिंह चीमा, गीता गैरोला, डॉ. सिद्धेश्वर सिंह, शैलेय, रमेश चंद्र पंत, कुसुम भट्ट, मुकेश नौटियाल, विजया सती, अमिता प्रकाश, स्वाति मेलकानी, प्रबोध उनियाल, चिंतामणि जोशी, ज्ञान पंत, डॉ. गिरीश पांडेय श्प्रतीकश्, डॉ. तेजपाल सिंह, पृथ्वी लक्ष्मी राज सिंह, डॉ. कमलेश कुमार मिश्रा, खेमकरण सोमन, डॉ. प्रेम मेवाड़ी, मीनू जोशी, डॉ. डी.एस. मर्तोलिया, ध्रुव टम्टा, गोविंद नागिला, हिमांशु पांडे, शरद जोशी, प्रदीप गुणवंत, मुकेश लाम्बा, कमलाकांत पांडे, अनिल बिनवाल, करुणा बबली, रीना पंत, हेमा जोशी, गीता तिवारी, दीपा पांडे, शेखर पाखी, तारा शर्मा, पंकज शाह, हिमांशु मेलकानी, मंजुल जोशी, शेखर उप्रेती, डीके शर्मा, प्रमोद प्रकाश साह, कौशल्या चुनियाल आदि साहित्य-प्रेमी सम्मिलित हुए। हिन्दुस्थान समाचार/नवीन जोशी/मुकुंद-hindusthansamachar.in

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