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चीन के दखल से दक्षिण एशिया की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ाः प्रो. अर्चना

-चमन लाल डिग्री कॉलेज में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में व्यक्त किया मत हरिद्वार, 06 मार्च (हि.स.)। दक्षिण एशिया को भौगोलिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से एक ही इकाई के रूप में देखा जाना चाहिए। वर्तमान में बाहरी ताकतों के बढ़ते प्रभाव में इस इकाई को छिन्न-भिन्न कर दिया है। इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बहाली में भारत की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह उद्गार चमन लाल महाविद्यालय लंढौरा में दक्षिण एशिया में राजनीतिक स्थिरता एवं विकास में भारत की भूमिका विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अर्चना शर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि चीन के दखल से दक्षिण एशिया की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा की 80 के दशक में भारत ने म्यांमार और तिब्बत जैसे क्षेत्रों से अपना ध्यान हटाया। इसका फायदा चीन ने उस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा कर उठाया। इस क्षेत्र में चीन का दखल बढ़ गया और इससे दक्षिण एशिया की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। चीन की ओर से बढ़ते हुए खतरे को भारत भांप नहीं पाय। इसीलिए चीन आज विश्व में महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। दक्षिण एशिया में शांति के लिए आवश्यक है कि भारत खुद को शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित करे। इसी उम्मीद से केवल दक्षिण एशियाई देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भारत की ओर देखती है। वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद से आई डॉक्टर दीपिका सारस्वत ने परिषद की स्थापना उसके उद्देश्यों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंच पर वैचारिक पक्ष रखता है। डोकलाम विवाद में भारत ने कूटनीतिक स्तर पर बिना लड़े चीन को पीछे धकेल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को मजबूत किया है। पिछले कुछ समय में दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका मजबूत हुई है। इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सतीश कुमार ने कहा कि दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र को भारतीय उपमहाद्वीप के नाम से जाना जाता है। आज शक्ति का प्रतिस्थापन पश्चिम से पूर्व की ओर हो रहा है भारत और चीन की गिनती शक्तिशाली राष्ट्रों में होने लगी है। विशिष्ट वक्ता डॉक्टर संजय मिश्रा ने सार्क में भारत की भूमिका को बहुत बड़ा बताया। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशियाई देशों के संगठन सार्क की स्थापना दक्षिण एशिया में विकास की गति को बढ़ाने के लिए हुई। भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते संबंध दक्षिण एशिया में स्थिरता और विकास में भाषा के रूप में सामने आ रहे हैं। सार्क देशों में भारत आर्थिक राजनीतिक और सैनिक रूप से सर्वाधिक शक्तिशाली है। इसीलिए सार्क देशों में इसकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। प्राचार्य डॉक्टर सुशील उपाध्याय ने कहा कि भारत में होने वाली गतिविधियां दक्षिण एशिया को गहरे तक प्रभावित करती हैं। संगोष्ठी में शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए। इस अवसर पर डॉ नीशू कुमार द्वारा संपादित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। इसका विषय दक्षिण एशिया में राजनीतिक स्थिरता में विकास में भारत की भूमिका है। इस अवसर पर ईश्वर चंद्र शर्मा, राम कुमार शर्मा, प्रो. अर्चना शर्मा मेरठ विश्वविद्यालय, प्रो. सतीश कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय एवं डॉ. राकेश कुमार राणा उपस्थित रहे। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत/मुकुंद

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