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जंगलों की आग की एनजीटी में गूंज

-सामाजिक कार्यकर्ता राजेश सिंह कोली राजा ने भेजा पत्र - इस दौरान वन्य प्राणियों की मौत पर जताई चिंता पौड़ी, 10 अप्रैल (हि.स.)। वनाग्नि में वन्य प्राणियों की मौत पर सामाजिक कार्यकर्ता राजेश सिंह कोली राजा अफसरशाही और सरकार पर गंभीर सवाल उठाते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को पत्र लिखा है। राजा जनपद पौड़ी के विकास खंड कल्जीखाल के पयासू गांव में रहते हैं। कोली ने लिखा है-' उत्तराखंड के जंगल अक्टूबर-नवम्बर, 2020 से लगातार जल रहे हैं। वन विभाग नियंत्रित करने में पूरी तरह विफल है। जंगलों की आग से इस पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा मूल वन्य जीव अकाल मौत मर रहे हैं। इसका कोई आकलन तक नहीं किया जा रहा है। वन विभाग के लापरवाही पूर्ण कार्य से लगाता है कि वन्यजीवों की सुनियोजित रूप हत्या की जा रही है। खरगोश,शेर, केंचुआ,अजगर, कीट-पतंगे, तितलियां और पक्षियों की तमाम प्रजातियां समाप्त हो गई हैं। वन विभाग जंगली जानवरों के गैरकानूनी रूप से मारे जाने पर कार्रवाई करता है, लेकिन वनाग्नि में इसका आकलन तक नहीं कर रहा है। वनाग्नि को लेकर सरकार, मंत्री व अधिकारियों का व्यवहार या कार्यशैली दोषपूर्ण हैं। वन मंत्री के खिलाफ उचित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। वनाग्नि की रोकथाम में विफल अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।' इस सिलसिले में मुख्य वन संरक्षक (गढ़वाल) सुशांत पटनायक का कहना है कि जंगलों की आग में वन्यजीवों के मरने को लेकर कोई आकलन विभाग स्तर पर नहीं हुआ है। किसी स्तर पर यह आकलन सामने आता है तो कार्रवाई भी अमल में लाई जाएगी। उधर युवा वन्य जीव वैज्ञानिक डा. योगेंद्र सिंह ने कहा कि उत्तराखंड के वनों में पहाड़ के निचले छोर से आग लगाई जाती है, जो ऊपर की ओर बढ़ते ही लगातार भीषण रूप ले लेती है। ऐसे में वन्यजीव एक समय ऐसी स्थिति में आ जाते हैं कि वह कहीं भाग नहीं पाते हैं। इससे उनकी अकाल मौत हो जाती है। वनाग्नि से जैव विविधता प्रभावित हो जाती है। या यूं कहें कि एक जीवन चक्र नष्ट हो जाता है। हिन्दुस्थान समाचार/राज/मुकुंद

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