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सेवानिवृत अधिकारियों ने बंगाल हिंसा की एनआईए जांच की मांग की

देहरादून, 27 मई (हि.स.)। उत्तराखंड के सेवानिवृत न्यायपालिका, प्रशासनिक सेवा, सशस्त्र बलों एवं राजनयिक पदाधिकारियों के मंच ने पश्चिम बंगाल में विशिष्ट लक्षित नागरिकों पर व्यापक हिंसा के विरोध में आम जन की सुरक्षा को लेकर वहां की सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। इन अधिकारियों ने 'बंगाल बचाओ' अभियान के तहत राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से एनआईए जांच की मांग की है। गुरुवार को वर्चुअल पत्रकार वर्ता में एक साथ सेवानिवृत अधिकारियों ने पश्चिम बंगाल की हिंसा को चिंताजनक बताते हुए ममता सरकार के कार्य को लोकतंत्र विरोधी बताया है। राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में पदाधिकारियों ने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने वाले लोगों के विरूद्व प्रतिशोध हिंसा, हत्या और आगजनी करने वालों के विरुद्व एनआईए को जांच सौंपने की मांग की है। मंच ने चिन्ता व्यक्त की है कि हिंसा के शिकार लोगों को जान बचाने के लिए पड़ोसी राज्यों में भागकर शरण लेनी पड़ी है, लेकिन वहां की सरकार निष्ठुर बनी है। ऐसे में आमजन की सुरक्षा खतरों से भरी हुई है। नैनीताल हाई कोर्ट के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश बी.सी. काण्डपाल ने बताया कि पश्चिम बंगाल के 23 में से 16 जिले हिंसा से बुरी तरह प्रभावित हैं। महिलाओं सहित 25 लोग हिंसा में मारे गए हैं। 15 हजार से अधिक हिंसा की घटनाऐं हुई हैं। चार हजार से पांच हजार लोग कथित रूप से सीमावर्ती प्रदेशों में पलायन कर चुके हैं। ऐसे शरणार्थी बने लोगों के लिए राहत पैकेज की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विशेष पोशाक और एक पार्टी के लोगों द्वारा प्रतिशोध की भावना से हिंसा करने वालों तथा उन लोक सेवकों के विरुद्व भी कार्रवाई हो जो निष्पक्ष कार्यवाही में विफल रहे हैं। एनआईए द्वारा जांच जरूरी है, क्योंकि मामला देश की संस्कृृति और अखंडता पर राष्ट्रीय हमला का है। सेवा निवृत्त मेजर जनरल रणवीर यादव ने कहा कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का मामला है लेकिन नव निर्वाचित सरकार पश्चिम बंगाल में हिंसा रोकने, हिंसा की निष्पक्ष जांच करने एवं दोषियों के विरुद्व कार्रवाई करने में पूर्णतः असफल रही है, जबकि नागरिकों की पूर्ण सुरक्षा का जिम्मा राज्य सरकार का होता है। किसी भी प्रकार की जान, माल या सम्पत्ति के नुकसान की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। हिन्दुस्थान समाचार/राजेश

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