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संन्यासी और बैरागी अखाड़ों में धर्म ध्वजा महत्वपूर्णः विद्यानंद सरस्वती

हरिद्वार, 03 मार्च (हि.स.)। संन्यासी और बैरागी अखाड़ों में धर्म ध्वजा महत्वपूर्ण होती है । इसकी रक्षा के लिए सर्वस्व बलिदान कर देना एक संन्यासी का परम कर्तव्य होता है। धर्मध्वजा का एक निश्चित तथा पारम्परिक विधान है। उसी का पालन करते हुए इसकी विधिवत स्थापना की जाती है। यह कहना है जूना अखाड़े के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व प्रवक्ता श्रीमहंत विद्यानंद सरस्वती का। उन्होंने बताया कि धर्म ध्वजा बावन हाथ ऊंची होती है। इसमें बाबन बंध लगाये जाते हैं। इसे चार रस्सियां (आम्नाएं) कहते हैं। धर्म ध्वाज को के इन सहारे स्थिर किया जाता है। इन चारों आम्नाओं पर अखाड़े की चारों मढ़ियों, 13 मढ़ी, 4 मढ़ी, 14 मढ़ी और 16 मढ़ी के श्रीमहंत अपना शिविर स्थापित कर इसकी रक्षा के लिए नागा संन्यासी योद्धा तैनात कर देते हैं। उन्होंने बताया मुगल काल में नागा संन्यासियों की मुस्लिम आक्रान्ताओं और राजाओं के खूनी संघर्ष होते थे। इनमें विजय प्राप्त कर लेने के बाद नागा फौज धर्म ध्वजा स्थापित करती थी। यह उनकी विजय का प्रतीक होती थी। धर्म ध्वजाओं को कोई हानि न हो या कोई ध्वस्त न कर दे, इसलिए उसके चारों आम्नाओं या तनियों पर नागा सैनिक दिनरात तैनात रहते थे। श्रीमहंत विद्यानंद सरस्वती बताते हैं कि बावन हाथ ऊंची धर्मध्वाजा वास्तव में बावन मढ़ियों, बावन शक्ति पीठ, बावन सिद्व पीठ की परिकल्पना है। इसका उददेश्य पूरे देश की सनातन धर्म शक्ति का सामूहिक सांगठिनक एकता प्रदर्शित करना है। उन्होंने कहा आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए चारों दिशाओं में चार मठों ज्योतिषपीठ, शारदापीठ, गोर्वधन पीठ तथा द्वारिकापीठ की स्थापना कर चार शंकराचायर्य बनाए थे। इन चारों पीठ को चार आम्नाओं से जोड़ा गया। धर्म ध्वजा की चार रस्सियां इन्ही आम्नाओं का प्रतीक हैं जो कि पूरब, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण को एक सूत्र में बांधकर धर्म की रक्षा करती है। उन्होंने कहा कि अब मुगलकालीन परिस्थितियां नहीं हैं, लेकिन परम्परा कायम है। धर्म ध्वजा की स्थापना उसकी रक्षा तथा परम्परा को अब भी उसी भव्यता से निभाया जाता है। कुम्भ मेले का वास्तवित शुभारम्भ धर्मध्वजा स्थापित हो जाने के बाद ही होता है। समापन भी धर्मध्वजा उतारने (तनी ढीली करना) से होता है। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत/मुकुंद

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