वानप्रस्थ अलगाव की भावना का नामः मधुसूदन आर्य

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हरिद्वार, 01 अप्रैल (हि.स.)। मानव अधिकार कल्याण समिति द्वारा वानप्रस्थ आश्रम में एक सेमिनार आयोजित किया गया, जिसमें वानप्रस्थ आश्रम के उपप्रधान मधुसूदन आर्य ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिन्दु धर्म के जीवन में चार प्रमुख आयाम हैं। ब्रह्यचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम। तीसरे भाग वानप्रस्थ आश्रम का अर्थ वन प्रस्थान करने वाले से है। मनुष्य की आयु 100 वर्ष मानकर प्रत्येक आश्रम 25 वर्षों का होता है। इस आश्रम में व्यक्ति के लिए गृहस्थ को त्यागकर समाज एवं देश के लिए योगदान देने की अपेक्षा की जाती है। उन्होंने बताया कि वानप्रस्थ आश्रम हिन्दू धर्म में चैदहवां संस्कार है। वानप्रस्थ अलगाव की भावना का नाम है। जीवन एक यात्रा है। उसमें हमें आगे बढ़ते जाना है। जो इंसान ग्रहस्थ के बाद स्वयं आगे चल देते हैं। उनकी मान मर्यादा प्रतिष्ठा बनी रहती है जो ऐसा नहीं करते उनकी हालत गृहस्थ में रहकर खराब हो जाती है। वानप्रस्थ आश्रम के प्रधान डीके शर्मा ने कहा कि प्राचीन ऋषियों ने सन्तान के माता-पिता के प्रति ऋण को जिसे वे पितृ ऋण कहते हैं, चुकाने के लिए एक दूसरा मार्ग बतलाया था। उन्होंने यह मार्ग नहीं बतलाया कि माता-पिता बूढ़े होकर घर में चौकी पर बैठ जाए और पुत्र उनकी पूजा करें। माता-पिता के लिए उन्होंने यहीं कर्तव्य बतलाया कि वे गृहस्थ के बाद वानप्रस्थ को जाए। उनकी सन्तान पितृ ऋण को चुकाने के लिए गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करे और अपने से उत्तम सन्तान संसार में छोड़ने का प्रयत्न करें। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. पंकज कौशिक ने बताया कि वानप्रस्थ का अर्थ है सब संबंधों-नातों को तोड़ देना। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत

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