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बारिश के बाद घोड़ों की लीद, मलबे, गंदगी से पटी सरिताताल

-ग्रामीण फिर भी पानी पीने को मजबूर नैनीताल, 24 मई (हि.स.)। करीब 10 वर्ष पूर्व तत्कालीन सिंचाई मंत्री मातबर सिंह कंडारी ने जिला-मंडल मुख्यालय के निकट कालाढुंगी रोड पर स्थित सड़ियाताल झील का नाम, इसकी छवि को सुधारने के लिए बदलकर सरिताताल कर दिया था। इधर जुलाई 2019 में तत्कालीन डीएम सविन बंसल ने सरिताताल को कमोबेश सड़ियाताल में पाकर सिचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता का वेतन काटने और सरिताताल की दशा एक सप्ताह में सुधारने के आदेश दिए थे। लेकिन सरिताताल अपनी सड़ियाताल वाली छवि से बाहर नहीं निकल पा रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार गत दिनों हुई बारिश के बाद सरिताताल में एक बार फिर बारापत्थर स्थित नगर के घोड़ा स्टेंड के घोड़ों की लीद, जलागम क्षेत्र के पॉलीटेक्निक, नारायण नगर, चारखेत आदि क्षेत्र की आबादी का कूड़ा, मलबा और कीचड़ भर गया है, और ताल का पानी इतना गंदला हो गया है कि झील के पास दुर्गंध से खड़े होना भी मुश्किल हो गया है। दुर्भाग्य यह है कि यह पानी क्षेत्र के खुर्पाताल, जोग्यूड़ा, बजून व बेलुवाखान क्षेत्र के कुर्पाखा आदि गांवों की करीब 6-7 हजार की आबादी को बिना किसी शोधन संयत्र के पेयजल के लिए उपलब्ध कराया जाता है। खुर्पाताल के लगातार दो बार ग्राम प्रधान रहे मनमोहन कनवाल ने बताया कि पूर्व में खुर्पाताल झील ग्राम पंचायत के अधीन थी। तब हर बरसात से पहले झील के डांठ यानी गेट खोलकर गंदले पानी को खुला बहने के लिए छोड़ दिया जाता था। 2003-04 में झील के सौंदर्यकरण के कार्य सिंचाई विभाग से करवाए गए, तब से सिंचाई विभाग ने मूलतः एक प्राकृतिक पेयजल स्रोत वाली इस झील को ग्राम पंचायत को वापस देने की जगह अपने कब्जे में ले लिया है और क्षेत्रीय ग्रामीणों के विरोध के बावजूद यहां नाव, बैलून व रेस्टोरेंट आदि व्यवसायिक गतिविधियों को ठेके पर देकर विभाग प्रतिवर्ष लाखों रुपये की आय भी अर्जित करता है। वन विभाग भी इसके नीचे स्थित वॉटर फॉल से लाखों रुपये कमाता है। नीचे सरकारी-लीज की भूमि पर वैध-अवैध निर्माण कर अनेक रेस्टोरेंट भी चल रहे हैं, लेकिन मूलतः क्षेत्रीय ग्रामीणों का प्राकृतिक पेयजल स्रोत के रूप में सरिताताल की पहचान समाप्त हो गई है, जबकि झील की दुर्दशा ऐसी है कि वह अपने पुराने सड़ियाताल के स्वरूप में ही लौट आई है। कनवाल ने बताया कि ऐसी स्थिति में क्षेत्रीय ग्रामीणों में किसी बीमारी, महामारी का खतरा भी उत्पन्न हो गया है। इस बारे में सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता से संपर्क करने का कई बार प्रयास किया गया, परंतु फोन नहीं लगा। हिन्दुस्थान समाचार/डॉ.नवीन जोशी

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