आचार्य गद्दी और परम्पराओं को बचाने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाऊंगा: आचार्य प्रज्ञानंद
- स्वामी कैलाशानंद के पट्टाभिषेक पर संशय के छाए बादल हरिद्वार, 06 जनवरी (हि.स.)। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के आचार्य महामण्डलेश्वर पद पर होने वाले स्वामी कैलाशांनद गिरि के पट्टाभिषेक पर संशय के बादल छाने लगे हैं। अखाड़े के आचार्य स्वामी प्रज्ञानंद गिरि महाराज परम्पराओं के विपरीत हो रहे पट्टाभिषेक के खिलाफ न्यायालय में जाने का मन बना चुके हैं। उनका कहना है कि एक आचार्य के होते हुए उसके त्यागपत्र दिए बिना दूसरे को कैसे आचार्य बनाया जा सकता है। इस सबंध में आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी प्रज्ञानंद महाराज ने कहा कि अखाड़े को पद पर बैठाने का अधिकार है, किन्तु किसी को अपमानित करने का अधिकार अखाड़े को नहीं है। उनका कहना था कि यदि अखाड़ा उनसे कहता तो वह स्वेच्छा से त्यागपत्र दे देते, किन्तु अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। प्रज्ञानंद महाराज ने कहा कि अखाड़ा यदि स्वामी कैलाशानंद को आचार्य बनाने का इच्छुक था तो वह स्वंय कैलाशांनद को दीक्षा देकर आचार्य बना सकते थे, किन्तु अखाड़े ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा कि आचार्य पद को वे किसी भी सूरत में बिकने नहीं देंगे। आचार्य गद्दी और परम्पराओं को बचाने के लिए वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे। आचार्य गद्दी निरंजनी अखाड़े की है। वह किसी व्यक्ति विशेष की नहीं है। मैं उसकी गरिमा को किसी भी सूरत में गिरने नहीं दूंगा। यह लड़ाई मेरी नहीं है बल्कि निरंजनी अखाड़े के प्रत्येक साधु की है। यदि नहीं लड़ता हूं तो निरंजनी का साधु कहीं जाएगा तो उसकी महिमा गिरेगी। उसको लोग हेय दृष्टि से देखेंगे। लोग निरंजनी अखाड़े के साधु को कहेंगे की यह तो सौदागर लोग हैं। यह बिचौलिये और पैसे को तवज्जों देते हैं। ऐसे में सामान्य साधु का अपमान होगा। उन्होंने कहा कि मैं पद के लिए नहीं लड़ रहा हूं। ना मैंने पद मांगा था और न ही मुझे पद की लालसा है। अखाड़े के पदाधिकारियों ने मुझसे आकर आचार्य पद स्वीकार करने का आग्रह किया था। स्वामी कैलाशानंद महाराज के दीक्षा लेने को भी उन्होंने परम्पराओं को गलत बताया। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य दसों नामों को संन्यास दे सकते हैं। स्वामी कैलाशांनद ने आश्रम नामा से संन्याय लिया है। इस कारण से आश्रम नामा के संन्यास देने पर गिरि नामा हो जाना आश्चर्य की बात है। उनका कहना था कि हंस परम्परा का साधु परमहंस को संन्यास नहीं दे सकता और न ही परमहंस साधु को चोटी हंस परम्परा का साधु काट सकता है। स्वामी प्रज्ञानंद ने कहा कि जब उन्हें आचार्य पद पर बैठाया गया था उस समय शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज मौजूद थे। किन्तु यहां तो परम्पराओं का निर्वहन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि मैं फिलहाल जनता की अदालत में हूं और न्यायालय की शरण में भी जाऊंगा। वर्तमान में सन्यास परम्परा में ह्रास का कारण वैराग्य और साधना की कमी है। बिना वैराग्य के साधु बनने का नतीजा आज सबके सामने है। उन्होंने कहा कि पूर्व आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी पूर्णानंद गिरि महाराज विद्वान संत थे। अखाड़े की कार्यशैली को देखकर उन्होंने पद से त्यागपत्र दिया। आचार्य गद्दी की परम्परा और गरिमा को बचाने के लिए मैं हर संभव लड़ाई लडूृंगा। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत-hindusthansamachar.in