हाईकोर्ट ने गांव सभा की कार्य प्रणाली में विसंगतियों पर सरकार से मांगा जवाब
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हाईकोर्ट ने गांव सभा की कार्य प्रणाली में विसंगतियों पर सरकार से मांगा जवाब

गांव सभा के प्रस्तावों पर सदस्यों के हस्ताक्षर की अनिवार्यता न होने के चलते बड़े स्तर पर दुरूपयोग प्रयागराज, 23 अक्टूबर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में सभा द्वारा पारित प्रस्तावों पर सदस्यों के हस्ताक्षर की अनिवार्यता न होने को लेकर कानूनी खामियों पर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने कहा कि संविधान के भाग 9 में 73 वे संविधान संशोधन द्वारा गांव सभा को पूर्ण संवैधानिक स्तर मिल गया है। ऐसे में इसके क्रियाकलापों में संविधान की मंशा के अनुरूप कार्य न होकर मनमानी तरीके से हो रहे कार्यों पर कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया और प्रदेश के अपर महाधिवक्ता से कहा कि वह बताएं कि गाँव सभा में पारित हो रहे प्रस्तावों पर सदस्यों के हस्ताक्षर बगैर उनकी सहमति कैसे मानी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रस्तावों के दुरुपयोग करने पर जिम्मेदारी कैसे तय होगी। यह आदेश चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर व जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने जौनपुर के मुकेश सिंह की जनहित याचिका पर दिया है। याची के अधिवक्ता आर.के सिंह ने याचिका दायर कर कहा है कि गांव सभा की हरेक मीटिंग में भाग लेने के लिए सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित कराई जाय और मीटिंग के प्रस्तावों पर सदस्यों के हस्ताक्षर की अनिवार्यता का प्रावधान रखा जाय। कहा गया है कि इन कमियों के चलते गांव सभा स्तर पर प्रदेश में खुब दुरूपयोग हो रहा है। और यही वजह है कि गांव सभा स्तर पर आपराधिक घटनाओं में दिनों दिन वृद्धि होती जा रही है। पंचायत राज नियमावली में कमी के चलते संविधान की भावनाओं के अनुरूप गांव सभा में कार्य नहीं हो रहा है। कोर्ट ने इस जनहित याचिका पर यूपी सरकार से जवाब तलब किया है और सुनवाई के लिए 20 नवम्बर की तिथि नियत की है। हिन्दुस्थान समाचार/आर.एन/दीपक-hindusthansamachar.in

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