सुरक्षित गर्भ समापन महिलाओं का हक, 10 गांवों में हेल्प डेस्क स्थापित
सुरक्षित गर्भ समापन महिलाओं का हक, 10 गांवों में हेल्प डेस्क स्थापित

सुरक्षित गर्भ समापन महिलाओं का हक, 10 गांवों में हेल्प डेस्क स्थापित

-ग्रामीण इलाकों में अनचाहे गर्भ को सुरक्षित तरीके से समाप्त करने को लेकर महिलायें हेल्प डेस्क से जुड़ी -अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भ समापन दिवस पर असुरक्षित गर्भ समापन से हो रही मौतों पर संस्था ने जतायी चिंता हमीरपुर, 28 सितम्बर (हि.स.)। मुख्यालय के गेस्ट हाउस में समर्थ फाउंडेशन व सहयोग लखनऊ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षित गर्भसमापन दिवस के अवसर पर सोमवार को यहां संस्था द्वारा इस दिशा में किए जा रहे कार्यों पर चर्चा के लिए मीडिया वर्कशाप का आयोजन किया गया। वर्कशाप में समर्थ फाउंडेशन के देवेंद्र गांधी ने बताया कि उनकी संस्था सहयोग लखनऊ के साथ मिलकर कुरारा ब्लाक के 10 गांवों में सुरक्षित गर्भ समापन पर कार्य कर रही है। इसकी वजह से दूरदराज की ग्रामीण इलाकों में अनचाहे गर्भ को सुरक्षित तरीके से समाप्त करने को लेकर समझ विकसित की जा रही है। उन्होंने बताया कि जिन हमीरपुर जिले के दस गांवों में कार्यक्रम चल रहा है, उनमें रिठारी, चकोठी, सरसई, डामर, शिवनी, खरौंज, बिलौटा भितरी आदि गांव में शामिल है। इन सभी गांवों में एक हेल्प डेस्क की स्थापना की गई है। जहां महिलाओं को परिवार नियोजन की अस्थाई विधियों के बारे में जागरूक कर उनका वितरण भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि इसके अच्छे परिणाम आ रहे हैं और बड़ी संख्या में महिलाएं व किशोरिया इस कार्यक्रम से जुड़ रही है। हेल्प डेस्क से परिवार नियोजन की अस्थाई विधियां माला एन, छाया टेबलेट, अंतरा इंजेक्श आदि के बारे में पहले तो स्वास्थ्य विभाग के जानकार लोगों के माध्यम से जानकारी दी जाती है, उसके बाद इसका वितरण कराया जाता है। इसके अलावा कंडोम और सैनेटरी पैड का डेस्क से वितरण भी किया जाता है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण इलाकों में अनचाहा गर्भ के समापन को लेकर आज भी लोग बगैर प्रशिक्षित चिकित्सीय कार्य में लगे लोगों के संपर्क में आकर पैसा भी बर्बाद करते हैं और जान भी जोखिम में डाल लेते हैं, मगर जब से उनकी संस्था ने कार्य करना शुरू किया, तब से इस पर कुछ हद तक रोक लगी है और जागरूकता भी बढ़ी है। हर साल 22 हजार लड़कियों और महिलाओं की हो रही मौत वर्कशाप में देवेंद्र गांधी ने देश के कुछ आंकड़े भी प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि हर साल देश में होने वाले 5.6 करोड़ गर्भसमापन में 2.5 करोड़ असुरक्षित होते है। इनमें 22000 लड़कियों और महिलाओं की मृत्यु होती है, जो की दुनिया भर में होनी वाली मातृत्व मृत्यु का 8 प्रतिशत है और अन्य 70 लाख महिलाओं को गंभीर या स्थायी नुकसान होता है। देवेंद्र गांधी ने बताया की लॉकडाउन के कारण परिवार नियोजन के अस्थाई साधन हासिल करने और उसके प्रयोग में काफी हद तक कमी देखी गई। कोविड के चलते सरकार द्वारा हेल्थ सेंटरों पर नसबंदी और आईयूसीडी की सेवाएं भी रोकी गई। बिना डॉक्टर के पर्चे पर मेडिकल स्टोर से मिलने वाली गर्भ निरोधक दवाई, कंडोम, आदि को प्राप्त करने में लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कानूनी पहलू भी देखें भारत में चिकित्सकीय गर्भ समापन कानून (मेडिकल टर्मीनेसन आफ प्रेगनेंसी अधिनियम 1971) के अन्तर्गत महिलाएं कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे महिला की जान को कोई खतरा हो, उसे शारिरिक या मानसिक नुकसान पहुंचने की आशंका हो, उसका बलात्कार हुआ हो, या फिर उसके पास कोई सामाजिक और आर्थिक कारण हो आदि में गर्भधारण के 20 हफ्तों तक गर्भपात सरकारी अस्पताल में या सरकार की ओर से अधिकृत किसी भी चिकित्सा केंद्र में अधिकृत व प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा गर्भसमापन करा सकती है। हिन्दुस्थान समाचार/पंकज-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in