यूरिया के घोल का फसलों पर करें छिड़काव, बेहतर होगी फसल
यूरिया के घोल का फसलों पर करें छिड़काव, बेहतर होगी फसल

यूरिया के घोल का फसलों पर करें छिड़काव, बेहतर होगी फसल

-एक हेक्टेयर फसल में मात्र 16 किलों यूरिया की होगी जरूरत -यूरिया की किल्लत से निजात दिलाने में जुटे साउथ कैंपस के कृषि वैज्ञानिक मीरजापुर, 11 सितम्बर (हि.स.)। धान व गेहूं की फसलों में यूरिया का छिड़काव करने के लिए अब किसानों को प्रति हेक्टेयर चार से पांच बोरी यूरिया की जरूरत नहीं होगी। किसान अब मात्र 12 से 16 किलो यूरिया का घोल बना कर इन फसलों पर छिड़काव करें तो धन की बचत होने के साथ ही रासायनिक उर्वरकों की अधिक खपत से क्षति होने वाली मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बेहतर बनाए रखने में मदद मिलेगी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के बरकछा स्थित राजीव गांधी दक्षिणी परिसर के कृषि वैज्ञानिकों ने यह सलाह किसानों को दी है। कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं कृषि वैज्ञानिक प्रो. श्रीराम सिंह की मानें तो पर्णिय छिड़काव से यूरिया की मात्रा जहां कम लगती है। वहीं फसलों को तत्काल पोषक तत्व भी आसानी से मिल जाता है और मात्र 24 घंटे के अंदर फसलों में वृद्धि शुरू हो जाती है। प्रो. श्रीराम सिंह का कहना है कि फसलों में यूरिया की टापड्रेसिंग(सूखी यूरिया का छिड़काव) करने से 60 फीसदी मात्रा नष्ट हो जाती है। फसलों को मात्र 40 फीसदी यूरिया मिल पाती है। वह भी जड़ के सहारे पौधों के पत्ती तक पहुंचने में सप्ताह भर से अधिक समय लग जाता है। इससे फसलों की वृद्धि में काफी विलंब होता है। वहीं यूरिया के पर्णिय छिड़काव से फसल उर्वरक की शत प्रतिशत मात्रा का उपभोग कर लेती है। पौधों में भोजन बनाने की प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण विधि से होती है। पौधों अपना भोजन पत्तों के सहारे बनाते है। ऐसे में पत्तों पर उर्वरक का छिड़काव करने से काफी लाभ होता है। साथ ही फसल की पैदावार भी बेहतर होती है। यहीं नहीं दाने भी मोटे और चमकीलें होते है। वहीं दूसरी तरफ यूरिया के लिए समितियों पर लंबी लाइन भी नहीं लगानी पड़ेगी। साथ ही धन भी काफी कम लगेगा। रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से बंजर हो रही भूमि प्रो. श्रीराम सिंह का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति जहां नष्ट हो रही है। वहीं भूमि के बंजर होने का खतरा उत्पन्न हो रहा है। भूमि की उर्वरा शक्ति को मजबूत करने वाले मित्र कीट भी रसायनों के प्रभाव से नष्ट हो रहे है। इनमें केंचुआ प्रमुख है। केंचुआ मिट्टी को भूर-भूरा बनाते है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। साथ ही मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता में वृद्धि होती है। हिन्दुस्थान समाचार/गिरजा शंकर/उपेन्द्र-hindusthansamachar.in

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