बहुभाषीय जानकार व्यक्ति बहुआयामी व्यक्तित्व का स्वामी : प्रो. घनश्याम
बहुभाषीय जानकार व्यक्ति बहुआयामी व्यक्तित्व का स्वामी : प्रो. घनश्याम

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झांसी, 12 सितम्बर (हि.स.)। वैश्वीकरण के इस दौर में अगर आपको अपनी पहचान बनाये रखनी है तो उसके लिए बहु भाषाओं का ज्ञान भी आवश्यक है। दुभाषिये की मदद से आप साधारण वार्तालाप या प्रसंगों को तो समझ सकते हैं। जब तक भाषा पर पकड़ नहीं होगी तब तक आप संवाद के वास्तविक उद्देश्य तक नहीं पहुंच सकते। उक्त विचार मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा निदेशक छत्तीसगढ प्रो घनश्याम आयंगर ने अंग्रेजी विभाग बुन्देलखण्ड और उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में द प्रपोसेड मल्टीलिंगुलिस्म इन न्यू एजुकेशन पौलिसी 2020 एंड द स्टेटस ऑफ इंग्लिश एस अकोर लैंग्वेज विषय पर आयोजित वेबिनार में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारतीय लोग न ही विश्व में सबसे अधिक अंग्रेजी भाषा के जानकर के रूप में जाने जाते हैं बल्कि उचारण और व्याकरण भी हमारा सबसे बेहतर है। अध्यक्षता कर रहे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जेवी वैशम्पायन ने कहा कि ज्ञान किसी एक भाषा तक सीमित नहीं है। हर संस्कृति हर भाषा अपने आप में कुछ अलग अनूठा छुपाये है। मानव जीवन में कब किस की उपयोगिता हो कह नहीं सकते। इसलिए बहु भाषाओं की जानकारी रखना श्रेयस्कर है। वेबिनार के विशिष्ठ वक्ता श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय के प्रो. ए.वी द्विवेदी ने कहा कि अंग्रेजी भाषा फ्रेंच शब्द ‘लिंगुवा फ्रेंका’ का काम करती है। जिसका अर्थ है दो ऐसे लोगों के बीच में सेतु का काम करना जो अलग अलग भाषा के हैं। अंग्रेजी भाषा ऐसे समाज को जोड़ने का काम वैश्विक स्तर पर करती है। मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाएं परिवार और समाज से परिचय कराती है। वेबिनार की सह अध्यक्षता कर रहे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष प्रो. सीबी सिंह ने विषय प्रवर्तक के रूप में अपने विचारों को रखा। संयोजक डॉ. शिप्रा वशिष्ठ, डॉ. गुरदीप त्रिपाठी, फराज आलम सहित विश्वविद्यालय के शिक्षकगण और छात्र छात्राएं उपस्थित रहे। हिन्दुस्थान समाचार/महेश/विद्या कान्त-hindusthansamachar.in

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