पीएचडी कर शुरू की गेंदा की खेती, चालीस हजार खर्च कर कमाए दो लाख
पीएचडी कर शुरू की गेंदा की खेती, चालीस हजार खर्च कर कमाए दो लाख

पीएचडी कर शुरू की गेंदा की खेती, चालीस हजार खर्च कर कमाए दो लाख

-गोंडा के युवा किसान ने कहा, गेंदा के फूल में है अच्छी आमदनी, खाद तो न के बराबर होता है प्रयोग -बाजार भी जाने की नहीं पड़ती जरूरत, खेत से ही माली लेकर चले जाते हैं फूल को लखनऊ, 24 दिसम्बर (हि.स.)। प्रधानमंत्री के किसानों की आय दोगुनी करने की बात से प्रेरित होकर गोंडा के एक युवा ने कम खर्च में अधिक आमदनी करने की नियत से एक एकड़ में गेंदा का फूल लगवाया। सितंबर माह से निकल रहे फूल से एक एकड़ खेत में दो लाख रुपये से अधिक का फूल बिक चुका है और खर्च लगभग चालिस हजार रुपये है। यही नहीं इस युवा किसान ने सात एकड़ में केले की फसल भी लगा रखी है। जिले के मनकापुर तहसील अंतर्गत अलीनगर गांव निवासी डाॅक्टर अनिल श्रीवास्तव ने बताया कि घर में रहकर ही कुछ करने की ठान ली। इसके बाद खेती का विचार आया। परंपरागत खेती में तो कुछ आमदनी है नहीं, इस कारण फल, सब्जी आदि की खेती के बारे में विचार करने लगा और इस पर जानकारी हासिल की। डाॅ. अनिल ने वनस्पति विज्ञान से पीएचडी किया है। पीएचडी करने के बाद अपने गांव में ही कुछ करने की ठान ली और शुरू कर दी खेती। उन्होंने बताया कि गोंडा में उप निदेशक उद्यान अनीस श्रीवास्तव से मिला। उन्होंने गेंदा के फूल की खेती की सलाह दी। उसके बारे में विस्तार से बताया। फिर हमने एक एकड़ में अगस्त माह में गेंदा का फूल लगाया। गेंदा के फूल की खेती में खर्च ना के बराबर है। उन्होंने बताया कि इसका बीज बनारस से लाया हूं। इसमें पूसा बंसती और पूसा नारंगी किस्म के पौधे लगाये गये हैं। अब इसका अंतिम समय चल रहा है। फिर प्रतिदिन 40 किलो निकल जाते हैं। उन्होंने बताया कि इसमें चार ट्राली कंपोस्ट की खाद और एक बोरी डीएपी डाला गया है। बीस हजार रुपये का बीज लिया था। इसके बाद जो लेबर खर्च आते हैं, वह फूल बिकता जाता है और उन्हें देता रहता हूं। घर से खर्च वहीं बीस हजार रुपये हुए थे और जुताई का खर्च लगा था। इसके बाद मजदूर वगैरह को देने के बाद अब तक डेढ लाख रुपये की बचत हो चुकी है। अनिल श्रीवास्तव ने बताया कि फिर एक एकड़ में गेंदा का फूल लगाने जा रहा हूं। शादी के मौसम में इसकी अच्छी बिक्री हो जाती है। इसको तोड़कर बाजार ले जाने की भी जरूरत नहीं है। माली खेत पर ही आते हैं और वहीं से लेकर चले जाते हैं। बाजार ले जाने की अपेक्षा वे कुछ कम दाम लगाते हैं लेकिन वहां तक ले जाने का खर्च बच जाता है। इस कारण सब जोड़ने के बाद बराबर ही बैठता है। हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/दीपक-hindusthansamachar.in

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