नई शिक्षा नीति भारतीय जनमानस के करीब : डॉ. पाण्डेय
नई शिक्षा नीति भारतीय जनमानस के करीब : डॉ. पाण्डेय

नई शिक्षा नीति भारतीय जनमानस के करीब : डॉ. पाण्डेय

उच्च शिक्षण संस्थान नई शिक्षा नीति पर व्यापक चर्चा करायें : कुलपति प्रयागराज, 09 सितम्बर (हि.स.)। नई शिक्षा नीति भारतीय जनमानस से अधिक से अधिक संख्या में संवाद स्थापित करके बनाई गई है। इसलिए इसमें आध्यात्मिकता का सुर मिलता है। मानव संसाधन नहीं है, मनुष्य साधक है, शिक्षा साध्य है, सरकार साधना है। नई शिक्षा नीति इसे सम्भव बनाती है जो जनमानस के करीब है। यह बात मुख्य अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली के सचिव डॉ. बाल मुकुन्द पाण्डेय ने बुधवार को उप्र राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के समाज विज्ञान विद्याशाखा के तत्वावधान में आयोजित 'नई शिक्षा नीति की प्रासंगिकता एवं विशेषताएं' विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय ऑनलाइन वेबिनार में व्यक्त की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चेतना के जागरण में विश्वविद्यालयों की महती भूमिका है। हमारे विद्यालय- विश्वविद्यालय सामाजिक चेतना के केन्द्र होते थे। लेकिन, दुर्भाग्य से दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा में भारतीय शिक्षा को परिवर्तित कर दिया गया। क्योंकि व्यक्ति को विद्वान बनाने की जगह यन्त्र साधन बनाने पर जोर दिया गया। नई शिक्षा नीति व्यक्ति को ज्ञान और चेतना की ओर ले जाती है। मुख्य वक्ता उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने कहा कि भारत प्राचीन काल में शिक्षा का केंन्द्र था। लेकिन, कालान्तर में परिस्थितियां वैश्विक रूप से यूरोप केन्द्रित हो गई और हम अपने मूल से भटक गए। नई शिक्षा नीति हमें वापस अपने मूल की ओर ले जाता है। हम द्वन्द्व की स्थिति से निकल कर अब विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर हैं। 1781 से लगातार शिक्षा के विद्रूपीकरण का कार्य किया गया है। विशिष्ट अतिथि प्रो. के रतनम, सदस्य सचिव, आईसीएचआर एण्ड आईसीपीआर, नई दिल्ली ने कहा कि भारतीय चिन्तन में शिक्षा सदैव समाज का ही दायित्व रहा है। यह कभी भी राज्य का दायित्व नहीं रहा। नव शिक्षा नीति शिक्षा को समाज के लिए समाज के द्वारा विद्या शिक्षा में रूपान्तरित हो गई तथा कालान्तर में मात्र जीविकोपार्जन का विषय बन गई। अब पुनः शिक्षा को विद्या का स्वरूप देने का प्रयास किया गया है। कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि जब भी कोई नई नीति आती है तो जनमानस में उसके प्रति संदेह और जिज्ञासाएं होती है। अतः उस पर विचार विमर्श एवं संगोष्ठी आवश्यक है। यह प्रथम शिक्षा नीति है जो अधिकतम स्टेक होल्डर्स के सुझावों से निर्मित हुई है। यह राष्ट्रीय नीति है, दल या वर्ग की नीति नहीं है। शिक्षा समाज में कितनी पहुंच रही है, यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने सुझाव दिया कि उच्च शिक्षण संस्थानों में अपने पाठ्यक्रमों पर व्यापक चर्चा कराई जानी चाहिए तथा शिक्षा को व्यवहारिक धरातल पर उतर कर सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/संजय-hindusthansamachar.in

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