त्रिपिंडी श्राद्ध ऑनलाइन नहीं हो सकता, भौतिक उपस्थिति से ही संभव
त्रिपिंडी श्राद्ध ऑनलाइन नहीं हो सकता, भौतिक उपस्थिति से ही संभव

त्रिपिंडी श्राद्ध ऑनलाइन नहीं हो सकता, भौतिक उपस्थिति से ही संभव

वाराणसी, 05 सितम्बर (हि.स.)। पितृ पक्ष में पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता जताने और अकाल मृत्यु प्राप्त करने वालों पितरों की मुक्ति के लिए ऑनलाइन तर्पण तो संभव है लेकिन ऑनलाइन त्रिपिंडी श्राद्ध संभव नहीं।पिंडदान भौतिक उपस्थिति में तीर्थ पुरोहित या कर्मकांडी ब्राम्हण के देखरेख में ही संभव है। शनिवार को 'हिन्दुस्थान समाचार' से बातचीत में विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड के तीर्थ पुरोहित नीरज पांडेय ने बताया कि आजकल कोरोना संकट के चलते ऑनलाइन त्रिपिंडी श्राद्ध, सोशल मीडिया या जूम एप आदि के जरिये कराने की बात चल रही है। लेकिन ये संभव ही नहीं है। त्रिपिंडी श्राद्ध ऑनलाइन करने से गलतियां होने की पूरी संभावना रहती है। ऐसे में इसका फल नही मिलता। उन्होंने बताया कि त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद तमाम व्याधियों से मुक्ति मिलती है। इसलिए लोग यहां पिशाचमोचन कुंड पर आते है। उन्होंने बताया कि सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। सनातन धर्म में मान्यता है कि पितृ पक्ष में आकर कर्मकांडी ब्राह्मण से पूजा करवाने से मृतक को प्रेत योनियों से मुक्ति मिलती है। उन्होंने बताया कि घर या ननिहाल में किसी के जन्म से पूर्व परिवार के सदस्य की अकाल मृत्यु हो जाती है। और उसका दाह–संस्कार उचित तरीके से नहीं किया गया होता है तो ऐसी स्थिति में यह पितृदोष उत्पन्न होता है। इसके अलावा यदि किसी कि भूमि या संपत्ति पर आपने बल पूर्वक अधिकार किया हो, जाने– अनजाने आपके पूर्वजों ने किसी की हत्या की हो या किसी को इतना सताया हो कि उस दुःख के कारण उसकी मृत्यु हो गयी हो तो आने वाली पीढ़ी में पितृ दोष स्वतः उत्पन्न हो जाता है। ऐसे में अपने पूर्वज को प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाने के लिए ही त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दीपक-hindusthansamachar.in

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